भारतीय रिज़र्व बैंक (RBI) ने 2000 रुपये के नोटों को वापस लेने की घोषणा कर दी है। यह 2016 में की गयी ऐतिहासिक नोटबंदी के बाद पेश किए गए थे। हालांकि आरबीआई का कहना है कि फिलहाल 2000 के नोट लीगल टेंडर बने रहेंगे और 30 सितंबर तक नोट बदले जा सकते हैं। एक बार में 20 हज़ार रुपए ही बदले जा सकेंगे। शुक्रवार (20 मई) को हुई इस घोषणा के बाद नोटबंदी को लेकर एक बार फिर चर्चा शुरू हो गयी, अलग-अलग तरह के सवाल किए जा रहे हैं, हालांकि आरबीआई का कहना है कि आम लोगों को इससे घबराने की ज़रूरत नहीं है।

इससे पहले कब-कब सरकारों ने ऐसे फैसले लिए हैं?

भारत में कागजी मुद्रा जारी होने की शुरुआत अठारहवीं शताब्दी के मध्य में हो गयी थी। नोटों की शुरुआती श्रृंखला 10, 20, 50 और 100 के मूल्यवर्ग के साथ विक्टोरिया पोर्ट्रेट श्रृंखला थी। 1867 में इस श्रृंखला को अंडरप्रिंट श्रृंखला से बदल दिया गया था। 1 अप्रैल 1935 को भारतीय रिजर्व बैंक की स्थापना के बाद 1938 में 1000 रुपये और 10,000 रुपये के मूल्यवर्ग के नोटों की शुरुआत हुई। ये उच्च मूल्यवर्ग के नोट 1946 तक प्रचलन में रहे और इसके बाद देश की पहली नोटबंदी के बाद इन्हें बंद कर दिया गया।

1000 रुपये और 10,000 रुपये के नोट 1954 में फिर से शुरू किए गए थे हालांकि 1978 में जनता पार्टी के नेतृत्व वाली गठबंधन सरकार ने इन नोटों को एक बार फिर से बंद कर दिया था। यह कदम भारत में डिमोनेटाइजेशन का दूसरा दौर था।

इसके बाद 1987 में 500 रुपये के नोटों को फिर से शुरू किया गया, फिर साल 2000 में 1000 रुपये के नोटों को पेश किया गया। महात्मा गांधी (MG) श्रृंखला के करेंसी नोट 1996 में जारी किए गए थे जिन्हें बाद में MG श्रृंखला 2005 के करेंसी नोटों से बदल दिया गया था।

2016 में मोदी सरकार द्वारा लिया गया नोटबंदी का फैसला एक बड़ा फैसला माना जाता है क्योंकि 500 और 1000 के नोटो को इस दौरान बंद किया गया था। इसका उद्देश्य मोदी सरकार ने काले धन पर चोट करना बताया था। भारत के इतिहास में सभी डिमोनेटाइजेशन में यह सबसे अधिक विवादित रहा है । 2018 में आरबीआई की एक रिपोर्ट के अनुसार विमुद्रीकृत बैंक नोटों का लगभग 99.3 प्रतिशत (15.3 लाख करोड़ रुपये) बैंकों में जमा किया गया था। नोटबंदी के बाद 500 और 2000 रुपए के नए नोट चलन में आए थे।