प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 27 जून को भोपाल में एक रैली में कहा कि एक घर में दो कानून से देश नहीं चल पायेगा। भारत के संविधान में भी नागरिकों के समान अधिकार की बात की गई है। इसके बाद से ही यूनिफार्म सिविल कोड (Uniform civil Code) को लेकर देश भर में चर्चा शुरू हो गई है। लॉ कमीशन ने समान नागरिक सहिता पर सुझाव मांगे हैं। लॉ कमीशन ने धार्मिक संस्थाओं के प्रमुख और आम नागरिकों से सुझाव भेजने का आग्रह किया है। इसी बीच गोवा सिविल कोड को लेकर भी चर्चा शुरू हो गई है। आजादी से पहले से लागू इस कानून को लेकर आरएसएस का बयान भी सामने आया है। RSS के राष्ट्रीय कार्यकारिणी सदस्य इंद्रेश कुमार ने कहा कि गोवा में इतने सालों में इससे कोई दिक्कत नहीं हुई है तो यूसीसी के पूरे देश में लागू होने से भी लोगों को कोई परेशानी नहीं होगी। आखिर गोवा सिविल कोड क्या है, इसे विस्तार से समझते हैं।
समान नागरिक संहिता क्या है?
एक देश एक कानून के विचार पर आधारित है समान नागरिक सहिता। यूनिफार्म सिविल कोड आने के बाद देश के सभी धर्म समुदाय के लोगों के लिए एक ही कानून होगा। यूनिफॉर्म सिविल कोड में संपत्ति के अधिग्रहण और संचालन, विवाह, तलाक और बच्चा गोद लेने आदि को लेकर सभी धर्म और समुदायों के लिए एक समान कानून बनाया जाना है। भारतीय संविधान में आर्टिकल-44 के तहत सरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड पर कानून बना सकती है।
गोवा सिविल कोड क्या है?
गोवा अकेला ऐसा राज्य है जहां यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू है। गोवा सिविल कोड को समझने के लिए इतिहास के पन्नों को पलटना पड़ेगा। दरअसल 1867 में जब गोवा पुर्तगाल के कब्जे में था उस वक्त गोवा में समान नागरिक संहिता कानून लाया गया। इसे 1869 में लागू किया गया। तब इसे पुर्तगाल सिविल कोड कहा गया। साल 1961 में जब गोवा पुर्तगाल से आजाद होकर भारत का हिस्सा बना तो गोवा में पुर्तगाल द्वारा लगाए हुए पुर्तगाल सिविल कोड को भारत सरकार ने गोवा, दमन और दीव एडमिनिस्ट्रेशन एक्ट, 1962 के सेक्शन 5(1) में जगह दे दी। यानी आजाद भारत के हिसाब से देखें तो गोवा में भारत सरकार की सहमति से यूनिफॉर्म सिविल कोड 1962 में लागू हुआ।
गोवा नागरिक संहिता कानून सभी धर्मों पर एक समान लागू होता है। इसमें पत्नी को पति की संपत्ति में बराबर का हकदार दिया गया है। वहीं मां बाप को अपनी संपत्ति बच्चों में बराबर बांटनी होगी। यानि संपत्ति में जितना अधिकार बेटे को मिलेगा उतना ही अधिकार बेटी को भी मिलेगा। वहीं शादी की बात करें तो एक वैवाहिक इंसान बिना कानूनी रूप से तलाक लिए दूसरी शादी नहीं कर सकता है। गोवा में पति पत्नी दोनों की कमाई को मिलाकर टैक्स लिया जाता है।
UCC पर सुप्रीम कोर्ट का क्या है रुख?
पहली बार सुप्रीम कोर्ट ने 1985 में शाह बानो केस में कहा कि ये बेहद दुखद है कि आर्टिकल-44 मृत प्राय अक्षर बन कर रह गया है। कोर्ट ने कहा कि संविधान में प्रावधान है कि नागरिकों के लिए समान नागरिक संहिता बनाई जाए लेकिन सरकारी स्तर पर इसके बनाये जाने का साक्ष्य नहीं मिलता है। फिर साल 1995 में सरला मुद्गल केस में सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया था कि आखिरकार सरकार संविधान निर्माताओं की इच्छा कब पूरी करेगी, उनकी इच्छापूर्ति में कितना वक्त लगेगा। साल 2003 में जॉन बलवत्तम केस में कोर्ट ने कहा कि यह दुखद है की आजतक आर्टिकल 44 नहीं लागू किया गया है। संसद को अभी भी इस दिशा में कदम उठाना चाहिए। इसके बाद 2017 में भी सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि हम भारत सरकार को निर्देशित करते हैं कि वह उचित विधान बनाने पर विचार करे। 2019 के जोस पाउलो केस में भी सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि देश में समान नागरिक आचार संहिता लागू करने के लिए अभी तक कारगर प्रयास नहीं किया गया है।