सुप्रीम कोर्ट ने समय से फीस ना दे पाने चलते आईआईटी एडमिशन से वंचित रह गए छात्र को बड़ी राहत दी है। सुप्रीम कोर्ट ने आर्टिकल 142 के तहत अपनी शक्ति का इस्तेमाल करते हुए निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को आईआईटी धनबाद में एडमिशन दिया जाना चाहिए। फीस की डेडलाइन खत्म होने के बाद में वह एडमिशन लेने से चूक गया था। कोर्ट ने कहा कि उसे आईआईटी धनबाद में एडमिशन दिया जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्ता जैसे स्टूडेंट कमजोर वर्ग से आते हैं। उनको एडमिशन लेने से रोका नहीं जा सकता है।

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस जेबी पारदीवाला और जस्टिस मनोज मिश्रा की बेंच ने निर्देश दिया कि याचिकाकर्ता को आईआईटी धनबाद में इलेक्ट्रिकल इंजीनियरिंग कोर्स की सीट पर एडमिशन दिया जाना चाहिए। कोर्ट ने कहा कि उसके लिए एक अलग सीट बढ़ाई जाए ताकि किसी दूसरे स्टूडेंट के एडमिशन में भी कोई समस्या नहीं आए। मुख्य न्यायाधीश डीवाई चंद्रचूड़ ने कहा कि हम ऐसे युवा प्रतिभाशाली लड़के को जाने नहीं दे सकते।

तीन महीने तक पिता ने काटे एससी-एसटी आयोग के चक्कर

स्टूडेंट उत्तर प्रदेश के एक दिहाड़ी मजदूर का बेटा है। स्टूडेंट ने 24 जून की शाम को 4.45 बजे तक गांव वालों से करीब 17,500 रुपये इकट्ठा कर लिए थे, लेकिन शाम को 5 बजे तक ही फीस भरने की डेडलाइन थी। वह ऑनलाइन पेमेंट नहीं कर पाया। तीन महीने तक पिता एससी-एसटी आयोग, फिर झारखंड और मद्रास हाईकोर्ट के चक्कर काटते रहे। आखिर में उन्होंने सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया।

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क्या है आर्टिकल 142?

अब आर्टिकल 142 की बात करें तो भारत का संविधान सुप्रीम कोर्ट को यह अधिकार देता है कि अदालत किसी भी मामले में पूर्ण न्याय के लिए आदेश पारित कर सकती है। अनुच्छेद का यह प्रावधान सुप्रीम कोर्ट के आदेश को पूरे देश में लागू करने का भी अधिकार देता है। बता दें कि इस अधिकार का इस्तेमाल करते हुए दिया गया आदेश बाकी मामलों के लिए एक नजीर नहीं बन सकता है। इस आर्टिकल की शक्ति विवेकाधीन है।