सुप्रीम कोर्ट ने बुलडोजर एक्शन से जुड़े मामले पर आज कुछ जरूरी बातें कही हैं। कोर्ट ने कहा है कि संपत्ति के मालिक को 15 दिन का पूर्व नोटिस दिए बिना और कानूनी दिशानिर्देशों का पालन किए बिना कोई भी बुलडोजर एक्शन नहीं किया जाना चाहिए। सरकार मनमाने ढंग से कार्रवाई नहीं कर सकती है। कोर्ट ने कहा कि सरकार को यह साबित करना होगा कि जिस घर को गिरा रहे हैं, क्यों अवैध है। यदि गलत तरीके से घर\निर्माण को तोड़ा गया है तो जिसका घर है उसे मुआवजा भी दिया जाए। कानून का पालन नहीं करने वाले शख्स पर कार्रवाई भी हो सकती है। अदालत ने कहा कि हमारा यह आदेश अनुच्छेद 142 के तहत है।
क्या है अनुच्छेद142?
संविधान का आर्टिकल 142 सुप्रीम कोर्ट को कुछ विशेषाधिकार देता है। जिसके तहत वह किसी भी मामले में फैसला लेने के लिए आज़ाद होता है। सुप्रीम कोर्ट के जज अपने विवेकाधिकार का इस्तेमाल कर ऐसा कोई भी फैसला दे सकते हैं, जो संविधान का उल्लंघन ना करता हो। यानी जिन मामलों में कानून नहीं बना है, उन मामलों को लेकर सुप्रीम कोर्ट अपने विवेक के आधार पर फैसला दे सुना सकता है या आदेश दे सकता है।
सुप्रीम कोर्ट ने कही महत्वपूर्ण बातें
- सुप्रीम कोर्ट बुलडोजर कार्रवाई पर फैसला सुनाते हुए कहा कि इस तरह की कार्रवाई जो मनमाने ढंग से की गई हैं संविधान के मूल्यों और कानूनी अधिकारों उल्लंघन करती हैं। कोर्ट ने जोर देकर कहा कि न्यायिक प्रक्रियाओं को दरकिनार नहीं किया जा सकता है।
- कार्यपालिका न्यायाधीश बनकर यह निर्णय नहीं ले सकती कि कोई व्यक्ति दोषी है और इसलिए उसकी आवासीय या व्यावसायिक संपत्ति को ध्वस्त करके उसे दंडित नहीं कर सकती। कार्यपालिका द्वारा ऐसा कोई भी कार्य उसकी सीमाओं का उल्लंघन होगा।
- कानून का शासन लोकतांत्रिक सरकार की नींव है। महिलाओं, बच्चों और बुजुर्गों को रात भर सड़कों पर घसीटते हुए देखना सुखद दृश्य नहीं है।
- यदि किसी व्यक्ति का घर केवल इसलिए ध्वस्त कर दिया जाता है क्योंकि वह आरोपी या दोषी है और कानून का पालन नहीं किया जाता है यह असंवैधानिक होगा।
- आश्रय का अधिकार अनुच्छेद 21 का हिस्सा है। यदि लोगों को घर से निकालना है, तो प्राधिकारियों को यह साबित करना होगा कि संपत्ति को आंशिक रूप से ध्वस्त करने के बजाय उसे ध्वस्त करना ही एकमात्र विकल्प है।
- जो सरकारी अधिकारी कानून को अपने हाथ में लेते हैं और मनमानी करते हैं, उन्हें जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए।