बिहार की जनता ने जो निर्णय दिया है वह राष्ट्रीय स्तर पर असर छोड़ने वाला है। 8 नवंबर, 2015 (रविवार) का दिन भाजपा विरोधी लहर के लिए याद रखा जाएगा। भाजपा विरोध का यह दौर अहम होगा, क्योंकि यह धर्मनिरेपक्ष-सांप्रदायिक की बहस को एक नए स्तर पर ले जाएगा। हमें संसद, खास कर राज्यसभा में नया ‘जोश’ देखने को मिल सकता है। कांग्रेस नेता एके एंटनी को लगता है कि ‘यह (बिहार में हार) 2014 से जारी भारतीय जनता पार्टी की जीत के सिलसिले (दिल्ली विधानसभा चुनाव को छोड़ कर) के अंत की शुरुआत है।’
जजों की नियुक्ति के लिए बनाए गए एनजेएसी को सुप्रीम कोर्ट द्वारा गैरकानूनी करार दिए जाने से लगे झटके के बाद न्यायपालिका और विधायिका के बीच वैसे ही अंसतुलन की स्थिति बनी लगती है। ऐसे में बिहार की हार के बाद जब इस महीने संसद की बैठक होगी तो संसद में हालात और बदतर होंगे। भाजपा को संसद चलाने में मुश्किल आएगी।
पर्यावरण मंत्री प्रकाश जावड़ेकर ने मतगणना से पहले मजाकिया लहजे में कहा भी था, ‘बिहार चुनाव परिणाम का असर यह होगा कि अगर महागठबंधन जीतता है तो वे संसद का शीतकालीन सत्र चलने नहीं देंगे।’ पर्यावरण, श्रम कानून, जमीन और जीएसटी जैसे मुद्दों पर सरकार को विपक्ष के साथ की जरूरत होगी, जो मिलना मुश्किल होगा। ये तो भाजपा की तात्कालिक मुश्किल होगी। लंबे समय में उसके सामने जो चुनौती आने वाली है, वह भाजपा विरोधी लहर मजबूत होने की है।
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