पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव में भाजपा को मात देने के लिए सत्ताधारी तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) नई रणनीति बना रही है। पार्टी प्रमुख ममता बनर्जी ने भगवा दल की चुनौती से निपटने के लिए 35 फीसदी वोट बैंक वाली जातियों पर फोकस किया है।

इतना ही नहीं पार्टी हाल ही में झारखंड में हुए विधानसभा चुनाव से भी सबक लेते हुए तैयारियों की दिशा में अपने कदम आगे बढ़ा रही हैं। मालूम हो कि झारखंड विधानसभा चुनाव में पांच साल शासन के बाद भाजपा को हार का मुंह देखना पड़ा था।

नई रणनीति के तहत टीएमसी बंगाल के माओवाद प्रभावित रहे जंगलमहल क्षेत्र में कुर्मी और आदिवासी वोटों को अपने खेमे में लाने में जुट गई है। जंगलमहल क्षेत्र में पुरुलिया, बांकुरा और पश्चिमी मिदनापुर के वन क्षेत्र वाले इलाके आते हैं। इसमें 6 लोकसभा सीटें आती हैं।

कुर्मी वोटरों को साधने के लिए ममता की पार्टी जंगलमहल क्षेत्र में माओवाद समर्थित लालगढ़ आंदोलन का लोकप्रिय चेहरा रहे छत्रधर महतो को आगे कर सकती है। पार्टी इस कदम के जरिये 35 फीसदी से अधिक वोटरों के अपने पक्ष में आने की उम्मीद कर रही है।

मालूम हो कि इन दोनों समुदायों के वोट की बदौलत ही भाजपा ने इस क्षेत्र की चार लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की थी। भाजपा ने साल 2018 में इस क्षेत्र में हुए पंचायत चुनावों में 150 सीटें भी हासिल की थीं। इतना ही नहीं साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा की जीत में ओबीसी और आदिवासी वोटों ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।

इस समुदाय को भाजपा के प्रति राजनीतिक रूप से निष्ठावान माना जाता है। टीएमसी के एक नेता ने कहा कि महतो समुदाय के समर्थन वाली पार्टी ऑल स्टूडेंट झारखंड स्टूडेंट यूनियन (आजसू) भाजपा से अपना गठबंधन तोड़ चुकी है।

इस पार्टी का पश्चिम बंगाल के झारग्राम, मिदनापुर, बांकुरा और पुरुलिया जिले में अच्छा खासा प्रभाव है। यह हमारे लिए अच्छा संकेत है। टीएमसी नेता के अनुसार ऐसे में महतो समुदाय वोट का एक बड़ा हिस्सा उनके पाले में शिफ्ट हो सकता है।

वहीं, बंगाल भाजपा का कहना है कि वह आजसू के साथ गठबंधन टूटने और झारखंड चुनाव के परिणाम को लेकर बहुत ज्यादा चिंतित नहीं है।