हाल ही में संसद की स्थायी समिति की बैठक में राहुल की गैर मौजूदगी से लेकर अन्य कई अहम मुद्दों पर बवाल शुरू हुआ। इस पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कांग्रेस की घेराबंदी की थी और सीधे राहुल गांधी से जवाब मांगा था। गांधी पर लगातार हो रहे हमले के बाद भी पार्टी मजबूती से अपना पक्ष नहीं रख पाई।
कमजोर प्रचारतंत्र ने कांग्रेस को काफी पीछे धकेल दिया है। इसकी सबसे बड़ी वजह है कि वार-पलटवार के अग्रिम योद्धाओं की भूमिका निभा रहे युवा न तो मीडिया में ढंग से बात रख पा रहे हैं और न ही अपने ऊपर हो रहे हमलों की धार कुंद कर पा रहे हैं।
वहीं सोशल मीडिया में पार्टी का रणनीति बिखरी हुई है। ज्यादातर कमान संभाल रहे युवाओं की बहाली राहुल गांधी के समय हुई और सोनिया गांधी के दोबारा कमान संभालने के बावजूद वे अभी तक पद पर बने हुए हैं। दूसरी ओर, कई महारथी पार्टी से या तो किनारा कर चुके हैं या हाशिए पर जा चुके हैं।
राहुल गांधी ने अपनी टीम में कई अनुभवी चेहरों के साथ युवाओं को भी जगह दी थी। पार्टी का मानना था कि इस राजनीतिक अनुभव का लाभ पार्टी को होगा और युवाओं के संग मिलकर वे प्रचारतंत्र में जान डाल देंगे। लेकिन कई ऐसे पदाधिकारी हैं, जो अपने को साबित नहीं कर पाए बावजूद अपनी जगहों पर कायम हैं।
वहीं 2019 के चुनाव में बने हालात के बाद कई नेताओं ने अपने पद छोड़ दिए थे। ये नेता पहले केंद्रीय मंत्रिमंडल व इसके बाद केंद्रीय टीम में 3-4 साल से सक्रिय थे। इस वजह से एक विशेष टीम ही केंद्रीय नेतृत्व से सीधे संपर्क में है, जो पूर्व कांग्रेस अध्यक्ष राहुल गांधी पर लगातार हो रहे हमले के बाद भी पार्टी का पक्ष मजबूती से सामने नहीं रख पा रही है और सवाल सीधे केंद्रीय नेतृत्व पर उठ रहे हैं।
कांग्रेस प्रचार की सीधी कमान पार्टी के वरिष्ठ नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला के हाथों में है। पार्टी में सक्रिय एक गुट कह रहा है कि राहुल गांधी एक बार फिर से अध्यक्ष की भूमिका में होंगे। यह युवाओं की मांग है और इससे भविष्य में कांग्रेस को बल मिलेगा। लेकिन दूसरे दलों के नेता राहुल गांधी की सक्रियता को लेकर ही उन्हें घेर रहे हैं। हाल ही में संसद की स्थायी समिति की बैठक में राहुल की गैर मौजूदगी से लेकर अन्य कई अहम मुद्दों पर बवाल शुरू हुआ। इस पर भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने कांगे्रस की घेराबंदी की थी और सीधे राहुल गांधी से जवाब मांगा था।
सुरजेवाला हरियाणा की राजनीति में अधिक सक्रिय : रणदीप सिंह सुरजेवाला सीधे तौर पर हरियाणा की राजनीति से जुड़े रहे हैं। केंद्रीय नेतृत्व में सक्रिय होने के बाद भी उनकी अधिक सक्रियता हरियाणा में बनी रही है। पार्टी सूत्र बताते हैं कि अब तक कांगे्रस में ऐसे नेताओं को ही इस काम का जिम्मा दिया जाता था, जो सीधे तौर पर दिल्ली से जुड़े होते थे। इस वजह से मीडिया में उनकी सक्रियता अधिक रहती थी और इस सक्रियता की बदौलत ही कई तकनीकी मामलों में मीडिया से ही नेताओं को सुझाव व जानकारियां भी मिल जाती थी। बीते दिनों केंद्रीय कांग्रेस में यह दूरी साफ नजर आई है। इस दूरी ने मीडिया के मोर्चे पर पार्टी के पक्ष को कमजोर किया है।
टीम में ज्यादातर चेहरे नए : सुरजेवाला लंबे समय से केंद्रीय टीम में सक्रिय हैं और उन्होंने कई नए व युवा चेहरों को मौका दिया है। ये चेहरे पार्टी के युवा चेहरे तो बने लेकिन कांग्रेस की नीतियां व पक्ष मजबूत तरीके से सामने नहीं रख पाए।
ये सभी अपने-अपने कार्य क्षेत्र में अनुभव रखते हैं और इनके पास हिंदी-अंग्रेजी बोलने का बेहतर अनुभव है। इसे इस टीम का मजबूत पक्ष माना जा रहा था लेकिन राजनीतिक अनुभव की कमी इस टीम में लगातार दिखी है। इस स्थिति में मीडिया में तालमेल स्थापित करने के लिए पार्टी में अलग-अलग गुट बने। इस वजह से एक विशेष टीम तक ही पार्टी पहुंची। जो कांग्रेस के लिए नुकसानदायक साबित हो रही है। हालांकि अब कुछ सक्रिय चेहरों से स्थिति को पाटने की कोशिश की जा रही है।
राहुल गांधी ने अपनी टीम में कई अनुभवी चेहरों के साथ युवाओं को भी जगह दी थी। पार्टी का मानना था कि इस राजनीतिक अनुभव का लाभ पार्टी को होगा और युवाओं के संग मिलकर वे प्रचारतंत्र में जान डाल देंगे। लेकिन नए व युवा चेहरों का फॉर्मूला कारगर नहीं हुआ।
कांग्रेस प्रचार की सीधी कमान
पार्टी के वरिष्ठ नेता रणदीप सिंह सुरजेवाला के हाथों में है। पार्टी में सक्रिय एक गुट कह रहा है कि राहुल गांधी एक बार फिर से अध्यक्ष की भूमिका में होंगे। यह युवाओं की मांग है और इससे भविष्य में कांग्रेस को बल मिलेगा। लेकिन दूसरे दलों के नेता राहुल गांधी की सक्रियता को लेकर ही उन्हें घेर रहे हैं।