आदर्श गुप्ता
जो चम्बल का इलाका कभी पूरी दुनिया में खेती किसानी की जगह डकैती, लूट और खून-खराबे के लिए कुख्यात था उसी इलाके के लोग आज खेती किसानी से अच्छा कमाई कर रहे हैं। यहां की जमीन नई कृषि तकनीकों और प्रबन्धन से किसानों को मालामाल कर रही हैं। 70 के दशक में बनी चम्बल नहर के पानी से मिली सिंचाई की सुविधा से शुरू हुई सरसों की खेती ने यहां के किसानों की आर्थिक स्थिति बदलने की शुरुआत की थी और अब खेती की नर्ई तकनीकों ने उनके जीवन में नई आर्थिक क्रांति के बीज रोप दिए हैं।
अभी जो तरीका प्रचलन में है उसमें आम तौर पर दो फसलों के बीच में एक-दो महीने ऐसे होते हैं जिनमे किसान अपने खेत खाली छोड़ देते हैं लेकिन अब ऐसी तकनीक किसानों के लिए उपलब्ध है जिससे वे इन खाली महीनो में भी चट पट होने वाली फसलों की बुआई कर के लाखों रुपए की कमाई कर सकते हैं। किसानों का कहना है कि अब तक सिर्फ मालवा में ही खेती को लाभ का धंधा कहा जाता था लेकिन यह कहना पूरी तरह से निराधार है, किसान कहीं का भी हो अगर मन में ठान लें और तकनीक को समझ ले तो। क्या मालवा और क्या मुरैना? बेहतर खेती तो कहीं भी की सकती है।
ऐसा ही एक उदाहरण बीते दिनों मुरैना विकासखण्ड के ग्राम महाटोली में देखने को मिला जहां के एक किसान हरिकिशन शर्मा ने अपने अगली फसल के लिए खाली पड़े खेत में दो महीने में तरबूज उगाकर आठलाख रुपए से ज्यादा की कमाई करके अन्य किसानों के लिए आमदनी का एक रास्ता खोल दिया। किसान हरिकिशन ने बताया कि उनके बाप-दादा के जमाने से यहां परंपरागत बाजरा की फसल के बाद गेहूं की फसल के लिए खेतों को खाली छोड़ देते थे। इस साल मुरैना के उद्यानिकी बिभाग के लोगों ने उनसे संपर्क किय।
मालवा से बीज मंगा कर वहां होने बाले तरबूज के 40 हजार पौधे उनके खेत में मार्च के अंत में सरसों की फसल काट लेने के बाद लगाए गए। विभाग ने तरबूज के खेत की सिंचाई के लिए ड्रिप विद मल्चिंग तकनीक को अपनाने की सलाह दी थी, जिसके लिए उन्होंने अपनी कुल 2.30 हेक्टेयर जमीन में 3 लाख 42 हजार 385 रुपए की कीमत का ड्रिप संयंत्र लगाया। मध्य प्रदेश सरकार ने इस पर उन्हें 1 लाख 10 हजार 828 रुपए का अनुदान दिया। उन्होंने अपनी जमीन में एक कंपनी के तरबूज बीज किस्म-रेडकिंग प्लस को लगाया जिसकी मालवा इलाके में बहुत ख्याति है। किसान का कहना था कि वे आठ लाख रुपए कीमत का तरबूज बाजार में बेच चुके हैं और गेहूं की बुआई शुरू होने से पहले एक दो लाख के तरबूज और बेंच लेंगे। यह उन खेतों का कमाल है जिन्हें मेरे पिता-बाबा मई और जून दो माह के लिए खाली छोड़ देते थे, जिनका मैंने सदुपयोग किया।
हरिकिशन ने जिले के किसानों को सलाह दी है कि खेती मालवा में ही नहीं बल्कि मुरैना में भी बेहतर तरीके से की जा सकती है। इसके लिए ड्रिप पद्धति से खेती करेंगे तो खेत में खरपतबार कम होेगी। खाद भी घोल बनाकर ड्रिप पद्धति से खेतों में डाला जाएगा तो वह सही रूप से पौधों की जड़ों में पहुंचेगा। ड्रिप पद्धति का 50 फीसद खर्चा शासन वहन कर रहा है। 50 फीसद किसान को वहन करना पड़ता है। हरिकिशन ने जिले के कृषकोें से कहा है कि वे भी परंपरागत खेती को छोड़कर वैज्ञानिक पद्धति से खेती को करना शुरू करें ।खेती घाटे का नहीं बल्कि लाभ का धंधा अवश्य साबित होगी।