पश्चिम बंगाल के पंचायत चुनाव को लेकर खासा बवेला खड़ा हुआ है। 274 सीटों पर होने वाले चुनाव में विपक्षी दलों के कैंडिडेट्स को नामांकन दाखिल नहीं करने दिया गया। लिहाजा सभी सीटों पर केवल तृणमूल के उम्मीदवार दिखाई दे रहे हैं। कलकत्ता हाईकोर्ट उन सारी याचिकाओं की सुनवाई कर रहा है जो इस सिलसिले में दाखिल की गई हैं। लेकिन चीफ जस्टिस को जब खेल का पता चला वो हत्थे से उखड़ गए।

दरअसल चीफ जस्टिस शिवगनामन और जस्टिस अजय कुमार गुप्ता इंडिपेंडेंट वोटर्स की तरफ से दाखिल एक याचिका की सुनवाई कर रहे थे। इसमें कहा गया था कि उनके ब्लाक से केवल तृणमूल के कैंडिडेट ही मैदान में हैं। दूसरे उम्मीदवारों को नामांकन ही दाखिल नहीं करने दिया गया। ऐसे तो वोटर्स के उस अधिकार का ही हनन हो जाएगा जिसमें लोगों को अपनी पसंद के मुताबिक मनमाफिक प्रतिनिधि चुनने का मौका मिलता है। खास बात है कि जो याचिका चीफ जस्टिस की बेंच के सामने आई उसका पैटर्न कुछ वैसा ही था जैसे एक कैंडिडेट की PIL में था। वो रिट कलकत्ता हाईकोर्ट की ही जस्टिस अमृता सिन्हा की बेंच के सामने लगी थी। चीफ जस्टिस के संज्ञान में ये मामला लाया गया कि विपक्षी ये सारा खेल कर रहे हैं।

चीफ जस्टिस बोले- एक मसले पर दो जज फैसला सुनाते हैं तो भी उनकी भाषा नहीं मिलती

चीफ जस्टिस ने अपनी टिप्पणी में कहा कि अगर वो कोई फैसला सुनाते हैं तो उसकी भाषा अलग होती है। उसी मसले पर जस्टिस अजय गुप्ता कोई फैसला सुनाते हैं तो उसकी भाषा उनसे अलग ही होगी। लेकिन वोटर्स और कैंडिडेट की तरफ से दाखिल जनहित याचिका को देखा जाए तो बहुत कुछ मिल रहा है। दोनों याचिकाओं के 7-8 पैरे और 8 ग्राउंड तकरीबन एक जैसे हैं। उनका कहना था कि वोटर्स किसी के माउथ पीस हैं। चीफ जस्टिस का कहना था कि वोटर्स और कैंडिडेट की याचिका को देखकर लगता है कि जैसे बहुत सारा मैटर कट पेस्ट करके मसौदा तैयार किया गया है।

रिटर्निंग अफसर की मनमानी के खिलाफ सीबीआई जांच बिठा चुका है हाईकोर्ट

गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल पंचायत चुनाव में तृणमूल की मनमानी को लेकर कई सारी याचिकाएं हाईकोर्ट में दायर की गई हैं। इनमें कहा गया है कि राज्य चुनाव आयोग ने सरकार के निर्देश पर विपक्षी दलों के उम्मीदवारों को परचे दाखिल करने से रोका है। कुछ मामलों में तो रिटर्निंग अफसरों ने नामांकन पत्रों से छेड़छाड़ कर उन्हें बेमतलब का साबित कर दिया। हाईकोर्ट ने याचिकाओं का संज्ञान लेकर कड़े फैसले भी जारी किए हैं। रिटर्निंग अफसर की हरकत से हाईकोर्ट की जस्टिस अमृता सिन्हा इतनी ज्यादा गुस्से में आ गईं कि उन्होंने सीबीआई जांच की सिफारिश कर डाली।