अंतरराष्ट्रीय बाजार में जीवाश्म ईंधन की आपूर्ति को लेकर आंशिक उतार-चढ़ाव का भारतीय ऊर्जा बाजार पर खासा असर पड़ता है। रूस जीवाश्म ईंधन (कोयला, तेल और गैस) का सबसे बड़ा निर्यातक है। यह विश्व का सबसे बड़ा तेल (क्रूड और उत्पादों) निर्यातक है और दुनियाभर के बाजारों में रोजाना आठ मिलियन बैरल (बी/डी) तेल की आपूर्ति करता है।

रूस सिर्फ पाइपलाइन से 210 बीसीएम (बिलियन क्यूबिक मीटर) प्राकृतिक गैस का निर्यात करता है। रूस दुनिया के 10 चोटी के कोयला उत्पादकों में भी शामिल है। अंतरराष्ट्रीय बाजार में रूसी तेल, गैस और कोयले की थोड़ी सी भी कमी या आपूर्ति बाधित होने का असर भारतीय ऊर्जा क्षेत्र पर पड़ता है और यह असर कीमत के साथ-साथ मात्रा के रूप में भी होता है। कच्चा तेल तेल की कीमत में उतार-चढ़ाव का संकट भारत की अर्थव्यवस्था के लिए सबसे बड़ी चुनौती है।

भारत के लिए चुनौती

भारत में खपत पर कोई नियंत्रण नहीं है। ऐसे में आपूर्ति में थोड़ी भी कमी से भारतीय बाजार लड़खड़ाने लगते हैं। रूस द्वारा एक मिलियन बैरल प्रतिदिन तक उत्पादन में कमी के असर को थोड़े समय तक तो संभाला जा सकता है, पर आपूर्ति में ज्यादा कमी के प्रभाव को संभालने के लिए आपूर्ति मजबूत करना होता है। रूस से आपूर्ति में अनुमानित कमी लगभग चार मिलियन बैरल प्रतिदिन है।

ओपेक (तेल उत्पादक और निर्यातक देश) द्वारा उत्पादन में बढ़ोतरी कर इस नुकसान के 40 फीसद से कम की भरपाई की जा सकती है। भारत में वर्ष 2020-21 में पेट्रोलियम उत्पादों को लेकर आत्मनिर्भरता अनुपात 15.6 फीसद था, जिसका मतलब है कि पेट्रोलियम उत्पाद की अपनी लगभग 85 प्रतिशत जरूरतों को पूरा करने के लिए भारत आयात पर निर्भर है। व्यापार संतुलन पर ऊर्जा के व्यापक प्रभाव को देखते हुए, भारत की ऊर्जा नीति व्यापार संतुलन, विशेष रूप से इसके ऊर्जा आयात बिल पर पड़ने वाले प्रभावों के प्रबंधन से जुड़ी है।

कच्चे तेल की कीमतों में प्रति बैरल 10 अमेरिकी डालर की वृद्धि होने पर भारत के कुल तेल बिल में 15 बिलियन अमेरिकी डालर की बढ़ोतरी हो जाती है। इससे भारत का चालू खाता घाटा जीडीपी का लगभग 0.4-0.6 फीसद बढ़ जाता है और 1.9 बिलियन अमेरिकी डालर से अधिक के अतिरिक्त सब्सिडी खर्च के साथ राजकोषीय हेडरूम कम हो जाएगा।

मूल्य और मात्रा का संकट

प्राकृतिक गैस के मामले में भारत को मूल्य और मात्रा दोनों ही तरह के संकटों का सामना करना पड़ सकता है, विशेष रूप से इसके स्पाट गैस आयात के मामले में। प्राकृतिक गैस के लिए भारत का आत्मनिर्भरता अनुपात वर्ष 2021-22 में 50.9 फीसद था। लगभग 50 फीसद आयातित गैस एलएनजी (तरलीकृत प्राकृतिक गैस) में से करीब 75 से 80 फीसद लंबी अवधि के अनुबंधों के माध्यम से प्राप्त की जाती है और बाकी गैस की स्पाट खरीद यानी हाजिर ख़रीद की जाती है।

अंतरराष्ट्रीय बाजार में गैस और तेल की कीमतों में लगातार बढ़ोतरी बने रहने से लंबी अवधि के अनुबंधों के लिए मोल-भाव में कीमतें बढ़ सकती हैं। कच्चे तेल की कीमतें जब कम थीं, तब वर्ष 2020 में ब्रेंट क्रूड फ्यूचर्स के 10 फीसद कमी (जो तेल और गैस की कीमत के बीच संबंध की व्याख्या करता है और जापानी क्रूड काकटेल (जेसीसी) की कीमतों से बढ़ता है) के साथ तेल से संबंधित अनुबंध किए गए थे।

निर्यातकों की तरफ से अपने संशोधित अनुबंधों में अधिक कमी की मांग करने की संभावना है। जर्मनी ने हाल ही में एलएनजी आपूर्ति के लिए कतर के साथ एक समझौते पर हस्ताक्षर किए हैं। मध्य पूर्व की एलएनजी के लिए यूरोप से बराबरी भारत द्वारा बातचीत के दौरान अपने मुताबिक मूल्य तय करने की संभावना को कम कर सकती है।

उतार-चढ़ाव के बीच सौदा

स्पाट बाजार के जरिए एलएनजी के आयात का मतलब है, कीमतों में बेतहाशा उतार-चढ़ाव के बीच सौदा करना। कोरोना महामारी के दौरान जब एशियाई स्पाट एलएनजी आयात के लिए बेंचमार्क जापान कोरिया मार्कर (जेकेएम) की एलएनजी की कीमत फरवरी, 2021 में 18 अमेरिकी डालर प्रति एमएमबीटीयू तक पहुंच गई थी तो भारत से स्पाट गैस की मांग लगभग खत्म हो गई थी।

भारतीय कंपनियों ने स्पाट बाजार की मौजूदा उच्च दरों पर आयात करने से बचने के लिए एलएनजी कार्गो को स्थगित कर दिया और उन्हें आगे भविष्य के लिए बढ़ा दिया। अप्रैल, 2020 में कोरोना महामारी से प्रभावित आर्थिक मंदी के कारण जापान कोरिया मार्कर (जेकेएम) लगभग दो अमेरिकी डालर प्रति एमएमबीटीयू तक गिर गया, लेकिन यही जेकेएम मार्च, 2022 में 35 अमेरिकी डालर प्रति एमएमबीटीयू से अधिक हो गया। यूक्रेन संकट और प्राकृतिक गैस आपूर्ति से संबंधित जोखिमों के चलते इसमें 1650 फीसद से अधिक की वृद्धि हुई।गैस आपूर्ति की स्थिति

भारत के औद्योगिक ग्राहक कोयले के स्थान पर पांच से छह अमेरिकी डालर प्रति एमएमबीटीयू की दर पर गैस का इस्तेमाल करना पसंद करते हैं, हालांकि उर्वरक और शहरी गैस वितरण जैसे कुछ क्षेत्रों को लगभग 10 अमेरिका डालर प्रति एमएमबीटीयू की कीमतें भी सहज लगती हैं। इस कीमत के बाहर भारत के बाजार में खरीदारी की संभावनाएं सीमित हैं।

एक ऐसी स्थिति में, जब अप्रैल, 2022 और मार्च, 2023 के मध्य कई मार्गों पर द्वारा गैस की आपूर्ति बंद हो जाती है, तो गैस की वैश्विक मूल्य वृद्धि की प्रबल संभावना है। ऐसा होने पर गैस का इस्तेमाल करने वाले भारतीय उद्योग, गैस की जगह पर वैकल्पिक जीवाश्म र्इंधन, जैसे मुख्य रूप से कोयला और पेट्रोलियम कोक की तरफ दोबारा लौटेंगे। अगर गैस की वैश्विक कीमतों में बढ़ोतरी लंबे समय तक बनी रहती है, तो इससे भारत की गैस का उपयोग 6 से 15 फीसद तक बढ़ाने का लक्ष्य प्रभावित होगा।

क्या कहते हैं जानकार

भारत सेमी कंडक्टर, सोलर पैनल और अन्य महत्त्वपूर्ण जरूरतों के लिए घरेलू उत्पादन को बढ़ावा देना चाहता है जिससे उसे इस तरह के रणनीतिक संकट का कभी सामना न करना पड़े। सरकार इसके लिए भारतीय-विदेशी उद्योगपतियों को निवेश के लिए आकर्षित कर रही है।

  • अजयशंकर, पूर्व ऊर्जा विशेष सचिव

अर्थव्यवस्था मजबूत होने और जीडीपी की विकास दर 9.5 फीसद होने पर भारत सुपर पावर बन सकता है। वर्ष 2040 तक भारत आबादी के मामले में चीन को पीछे छोड़ सकता है। भविष्य की इस मांग को सौर ऊर्जा से पूरा करने की दिशा में ठोस प्रयास होने चाहिए।

  • जीडी यादव, वाइस चांसलर, इंस्टीट्यूट आफ केमिकल टेक्नोलाजी, मुंबई</strong>