भारत का प्रतिनिधिमंडल हाल ही में अफगानिस्तान की अंतरिम तालिबानी सरकार से मिला है। भारत ने इस मुलाकात को मानवीय मदद बताया है। अफगानिस्तान के साथ संबंध बहाली को लेकर भारत फूंक-फूंककर कदम रख रहा है। तालिबान की सरकार तो चाहती है कि पहले की तरह रक्षा और राजनयिक संबंध बहाल हो जाएं। भारत में अफगानी रंगरूटों का सैन्य प्रशिक्षण शुरू कर दिया जाए। वहां की परियोजनाओं, स्वास्थ्य सेवाओं में भारत की आर्थिक मदद बहाल कर दी जाए। भारत सरकार जल्दबाजी के मूड में नहीं है। वजह साफ है। तालिबान के पाकिस्तान के साथ संबंध, पश्चिम एशिया की कूटनीति और कश्मीर के हालात। इन तीनों मुद्दों को लेकर जब तक भारत सरकार, तालिबानी नेतृत्व की ओर से आश्वस्त नहीं हो जाती, तब तक कोई ठोस फैसला सामने नहीं आएगा।
संपर्क बहाली के समीकरण
तालिबान के कब्जे के बाद पहली बार भारत अफगानिस्तान पहुंचा है। बीते हफ्ते भारत की ओर से वरिष्ठ राजनयिक जेपी सिंह के नेतृत्व में एक प्रतिनिधिमंडल अफगानिस्तान पहुंचा। काबुल में उन्होंने तालिबान के नेताओं से मुलाकात की। अफगानिस्तान की अंतरिम सरकार के विदेश मंत्री आमिर खान मुत्ताकी से भी भारतीय प्रतिनिधिमंडल मिला और अफगानिस्तान में चल रही भारतीय परियोजनाओं का हाल देखा। दरअसल, तालिबान के सत्ता संभालने से पहले भारत पर्दे के पीछे से उसके संपर्क में रहा है। अब सीधे भारत अफगानिस्तान में पैठ कर रहा है। दरअसल, चीन और पाकिस्तान भी अफगानिस्तान में अपनी पकड़ बनाने में लगे हैं।
हाल में जब भारतीय प्रतिनिधिमंडल ने तालिबानी नेताओं के साथ मुलाकात की तो ठीक उसी दिन चीन के राजदूत डिंग यिनां ने भी तालिबान के उप विदेश मंत्री शेर मोहम्मद अब्बास से मुलाकात की। अगर चीन और पाकिस्तान तालिबान के करीब हो जाते हैं तो इसका बड़ा नुकसान भारत को ही होगा। तालिबान के जरिए पाकिस्तान भारत में आतंकवाद बढ़ा सकता है, तो वहीं चीन आर्थिक मोर्चे पर भारत को नुकसान पहुंचा सकता है। पुराने तलिबान के साथ भारत का अनुभव अच्छा नहीं रहा है, लेकिन नया तालिबान लगातार इस बात को कहता रहा है कि वह भारत के खिलाफ अपनी जमीन को इस्तेमाल नहीं होने देगा। इसके साथ ही तालिबान ने कहा है कि वह कश्मीर जिहाद को समर्थन नहीं देगा।
क्या चाहता है तालिबान
भारतीय प्रतिनिधिमंडल के लौटने के बाद तालिबान के रक्षा मंत्री मुल्ला याकूब ने कहा कि उन्हें भारत के साथ रक्षा संबंध बहाल करने में कोई समस्या नहीं है, लेकिन उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि पहले दोनों सरकारों के बीच राजनयिक संबंध बहाल होने चाहिए। अगर दोनों सरकारों के बीच संबंध सामान्य हो जाते हैं तो तालिबान, अफगान सुरक्षा बलों को प्रशिक्षण के लिए भारत भेजने के लिए तैयार है। मुल्ला याकूब ने भारत सरकार से यह भी मांग की है कि वह काबुल में अपने दूतावास को फिर से खोले और तालिबान के राजदूत को नई दिल्ली में अफगानी दूतावास संभालने की अनुमति दे। रक्षा मंत्री ने कहा कि अगर भारत अपने राजनयिक कर्मचारियों को अफगानिस्तान वापस भेजता है तो तालिबान किसी भी तरह की सुरक्षा गारंटी देने के लिए तैयार है।
भारत की चिंता और तालिबान
मुल्ला याकूब ने भारतीय दल को आश्वस्त किया कि तालिबान सरकार की तरफ से पाकिस्तान या भारत को एक-दूसरे के खिलाफ अफगानिस्तान की जमीन इस्तेमाल करने की अनुमति नहीं दी जाएगी और उन्होंने उम्मीद जताई कि दोनों देश अपने मतभेदों को वार्ता और बातचीत के माध्यम से हल करेंगे। तालिबान के रक्षा मंत्री के मुताबिक, उनका अल-कायदा से कोई संबंध नहीं है और अफगानिस्तान में आतंकवादी संगठन और कथित इस्लामिक स्टेट को कुचल दिया गया है। हालांकि, भारत को तालिबान पर पाकिस्तानी खुफिया एजंसी और चरमपंथी समूहों के प्रभाव के बारे में चिंता है। राजनयिक जेपी सिंह के दौरे के बाद तालिबान के विदेश मंत्रालय ने बयान में कहा था कि भारतीय अधिकारियों ने उनसे कहा है कि वे पहले की तरह अफगानिस्तान के साथ अच्छे संबंध चाहते हैं और अपनी सहायता जारी रखेंगे। दरअसल, जब से तालिबान सत्ता में आया है, तब से पाकिस्तान की खुफिया एजंसी अफगानिस्तान में भारत के हस्तक्षेप को समाप्त करने की योजना बना रही थी। भारतीय प्रतिनिधिमंडल के अफगानिस्तान दौरे से उसकी योजनाओं को गहरा झटका लगा है।क्या हैं आर्थिक समीकरण
अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था इन दिनों बेहद ही नाजुक दौर से गुजर रही है। बेरोजगारी और गरीबी बढ़ती ही जा रही है। अर्थशास्त्रियों ने चेताया है कि अगर वक्त रहते ठोस कदम नहीं उठाए गए तो अफगानिस्तान की अर्थव्यवस्था रसातल में डूब जाएगी। पिछले साल अगस्त में तालिबान के कब्जे के बाद अर्थव्यवस्था में तेजी से गिरावट आई है। तालिबान के आने के बाद भारत ने अपने सारे मिशन बंद कर दिए। भारत के साथ होने वाला व्यापार पूरी तरह से ठप पड़ गया। अफगानिस्तान में हमेशा से भारतीय चीनी की खपत होती रही है, वहीं भारत अफगान मसालों और सूखे मेवों, खासकर खुबानी और अंजीर के सबसे बड़े आयातकों में से एक है।
क्या कहते हैं जानकार
साल 2019-2020 में दोनों देशों के बीच 1.5 बिलियन डालर का व्यापार हुआ था, लेकिन 2021-22 के वित्तीय वर्ष में व्यापार में 40 फीसद की गिरावट आई। मुझे उम्मीद है कि भारतीय राजनयिकों के दौरे से काबुल में उचित स्तर पर भारत की स्थायी उपस्थिति का मार्ग प्रशस्त होगा। भारत को चीन और पाकिस्तान की गतिविधियों को ध्यान में रखकर वहां कदम उठाने होंगे। तालिबान चाहता है कि दुनिया उन्हें मान्यता दे और भारत इसमें अहम भूमिका निभा सकता है।
- विवेक काटजू, अफगानिस्तान में भारत के पूर्व राजदूत
भारतीय निर्यातकों ने समुद्री मार्ग से कराची बंदरगाह और वहां से सड़क मार्ग से अपना माल अफगानिस्तान भेजना जारी रखा है। तालिबान के आने के एक महीने बाद व्यापार फिर से चालू हो गया और अब हर महीने भारत से 60,000 टन चीनी निर्यात हो रहा है।
- राकेश सूद, अफगानिस्तान में भारत के पूर्व राजदूत