विशाखापट्टनम नगर निगम में मेयर के खिलाफ लाए गए अविश्वास प्रस्ताव की वोटिंग 19 अप्रैल को होनी है, लेकिन उससे पहले राजनीति ने एक अलग ही मोड़ ले लिया है। आंध्र प्रदेश की दो बड़ी पार्टियां—तेलुगू देशम पार्टी (TDP) और वाईएसआर कांग्रेस पार्टी (YSRCP)—अपने-अपने पार्षदों को मलेशिया और श्रीलंका के रिजॉर्ट्स में भेजकर ‘रिजॉर्ट पॉलिटिक्स’ को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर ले गई हैं। इसका मकसद है पार्षदों को विपक्षी दल के संपर्क से दूर रखना और क्रॉस-वोटिंग की संभावनाओं को खत्म करना।

विदेश यात्रा बना राजनीतिक हथियार

TDP ने अपने पार्षदों को मलेशिया रवाना किया है, जबकि YSRCP ने पहले तो उन्हें कर्नाटक में कैंप कराया, बाद में श्रीलंका शिफ्ट कर दिया। YSRCP के करीब 30 पार्षद फिलहाल श्रीलंका के अलग-अलग हिस्सों में हैं। पार्टी के डिप्टी मेयर खुद कोच्चि में डेरा डाले हुए हैं। वहीं, टीडीपी ने अपने समर्थक पार्षदों को विदेश में ‘सेफ जोन’ में रखा है ताकि आखिरी समय में कोई सियासी उलटफेर न हो।

पार्षदों की गिनती से लेकर गणित तक

विशाखापट्टनम नगर निगम (GVMC) में कुल 98 सीटें हैं, जिनमें से एक खाली है। वर्तमान में 97 पार्षद वोटिंग में हिस्सा ले सकते हैं, साथ ही 14 एक्स-ऑफिशियो सदस्य भी वोट डालेंगे। YSRCP के पास अभी 59 पार्षद हैं जबकि TDP के पास 29, और उसके सहयोगी JSP, भाजपा, सीपीआई और सीपीएम के पास एक-एक सदस्य हैं।

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हालांकि, पिछले कुछ महीनों में YSRCP के 25 से ज्यादा पार्षद TDP में जा चुके हैं। TDP का दावा है कि उसे 70 पार्षदों का समर्थन मिल चुका है, लेकिन अविश्वास प्रस्ताव पारित करने के लिए 74 वोट जरूरी हैं।

TDP का आक्रामक अभियान, YSRCP की टेंशन

2024 के विधानसभा और लोकसभा चुनावों में TDP और NDA गठबंधन ने विशाखापट्टनम में शानदार प्रदर्शन किया था। अब पार्टी नगर निगम पर भी कब्जा चाहती है। वहीं, YSRCP लगातार कमजोर हो रही है और उसे अपनी सरकार गंवाने के बाद अब नगर निकाय में भी हार का डर सता रहा है। पार्टी के अंदरूनी मतभेद भी सामने आ रहे हैं। कुछ पार्षदों ने विदेश यात्रा का विरोध करते हुए कैंप से दूरी बना ली है।

भारत में ‘रिजॉर्ट पॉलिटिक्स’ यानी विधायकों और पार्षदों को होटल या रिजॉर्ट्स में कैद करके रखना नया नहीं है। लेकिन विशाखापट्टनम का यह मामला पहली बार है जब पार्षदों को विदेश भेजा गया है। यह दिखाता है कि अब राजनीति केवल विचारधारा की नहीं, रणनीति और ‘हॉलीडे प्लानिंग’ की भी बन गई है। इस पूरे घटनाक्रम ने यह साफ कर दिया है कि सत्ता की लड़ाई में सैर-सपाटे भी अब एक अहम हथियार बन चुके हैं।