उपराष्ट्रपति पद के लिए इंडिया गठबंंधन के उम्मीदवार बी सुदर्शन रेड्डी पर अमित शाह ने हाल में नक्सलवाद का ‘समर्थन’ करने का आरोप लगाया था। अमित शाह के आरोपों पर सुदर्शन रेड्डी ने एक इंंटरव्यू में जवाब भी दिया था। अब 18 सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के समूह ने कहा कि ऊंचे पद पर बैठे व्यक्ति द्वारा सुप्रीम कोर्ट के फैसले की “पूर्वाग्रहपूर्ण गलत व्याख्या” से न्यायाधीशों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ने की आशंका है।
अमित शाह की टिप्पणी को दुर्भाग्यपूर्ण करार देते हुए उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर सहित 18 सेवानिवृत्त न्यायाधीशों के समूह ने कहा, “सलवा जुडूम मामले में उच्चतम न्यायालय के फैसले की सार्वजनिक रूप से गलत व्याख्या करने वाला केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह का बयान दुर्भाग्यपूर्ण है। यह फैसला न तो स्पष्ट रूप से और न ही लिखित निहितार्थों के माध्यम से नक्सलवाद या उसकी विचारधारा का समर्थन नहीं करता है।”
बयान पर हस्ताक्षर करने वालों में उच्चतम न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश ए के पटनायक, न्यायमूर्ति अभय ओका, न्यायमूर्ति गोपाल गौड़ा, न्यायमूर्ति विक्रमजीत सेन, न्यायमूर्ति कुरियन जोसेफ, न्यायमूर्ति मदन बी लोकुर और न्यायमूर्ति जे चेलमेश्वर शामिल हैं। उन्होंने कहा, “किसी उच्च राजनीतिक पदाधिकारी द्वारा उच्चतम न्यायालय के किसी फैसले की पूर्वाग्रहपूर्ण गलत व्याख्या से सर्वोच्च न्यायालय के न्यायाधीशों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ सकता है और न्यायपालिका की स्वतंत्रता को नुकसान पहुंच सकता है।”
अमित शाह ने क्या कहा था?
गृह मंंत्री शाह ने शुक्रवार को केरल में कहा था, “सुदर्शन रेड्डी वही व्यक्ति हैं जिन्होंने नक्सलवाद की मदद की। उन्होंने सलवा जुडूम पर फैसला सुनाया। अगर सलवा जुडूम पर फैसला नहीं सुनाया गया होता, तो नक्सली चरमपंथ 2020 तक खत्म हो गया होता।”
अमित शाह की इस टिप्पणी के बाद उपराष्ट्रपति पद उम्मीदवार बी सुदर्शन रेड्डी ने एक इंटरव्यू में कहा, “मैं भारत के माननीय गृह मंत्री के साथ सीधे तौर पर इस मुद्दे पर नहीं उलझना चाहता। उनका संवैधानिक कर्तव्य और दायित्व वैचारिक मतभेदों के बावजूद, प्रत्येक नागरिक के जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति की रक्षा करना है।” सुदर्शन रेड्डी ने यह कहा कि उनकी इच्छा है कि अमित शाह 40 पन्नों का फैसला पढ़ें। उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि अगर उन्होंने फैसला पढ़ा होता, तो शायद वह यह टिप्पणी नहीं करते।
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