राजग सरकार की ओर से किसी भी मंत्री या मुख्यमंत्री के इस्तीफे की संभावना से साफ इनकार देने के बाद अब मंगलवार को शुरू होने वाले संसद के मानसून सत्र में सत्ता पक्ष और विपक्ष का टकराव तय नजर आ रहा है।सरकार का मानना है कि उसे घबराने या भयभीत होने की जरूरत नहीं है। जबकि प्रधानमंत्री नरेंद मोदी ने सभी मुद्दों पर चर्चा की पेशकश की है ।
मानसून सत्र के एक दिन पहले स्पष्ट हो गया कि सरकार और विपक्ष के बीच संसद में सुषमा स्वराज, वसुंधरा राजे और शिवराज सिंह चौहान से जुड़े विवादों को लेकर टकराव होगा। कांग्रेस ने साफ कहा कि जब तक आरोपों से घिरे भाजपा नेता इस्तीफा नहीं देते, संसद नहीं चलने दी जाएगी। उधर सरकार का कहना है कि कोई भी इस्तीफा नहीं देगा और वह किसी अल्टीमेटम के आगे नहीं झुकेगी। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष से सहयोग मांगते हुए इच्छा जताई कि किसी भी मुद्दे पर चर्चा की जा सकती है। उन्होंने कहा कि संसद की कार्यवाही चलाना साझा जिम्मेदारी है।
मॉनसून सत्र से पहले दो सर्वदलीय बैठकें हुईं। एक संसदीय कार्य मंत्री एम वेंकैया नायडू और दूसरी लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने बुलाई थी। दोनों ही बैठकों में गतिरोध दूर नहीं हुआ। ललित मोदी और व्यापमं घोटाले को लेकर पैदा हुए विवाद की बात करें तो विपक्ष अपनी बात पर कायम है। कांग्रेस ललित मोदी प्रकरण में विदेश मंत्री सुषमा स्वराज और राजस्थान की मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे के इस्तीफे की मांग कर रही है ।
शिक्षा को लेकर कथित फर्जी दावे से जुड़े मामले में मानव संसाधन विकास मंत्री स्मृति ईरानी का इस्तीफा भी मांगा जा रहा है। व्यापमं घोटाले को लेकर मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान का इस्तीफा मांगा जा रहा है तो चावल घोटाले को लेकर छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री रमण सिंह के इस्तीफे की मांग हो रही है।
नायडू की बैठक में राज्यसभा में नेता प्रतिपक्ष गुलाम नबी आजाद ने कहा कि संसद की कार्यवाही सुचारू रूप से चलाने के लिए इस्तीफे आवश्यक हैं। इसे नकारते हुए नायडू ने कहा कि किसी का अल्टीमेटम स्वीकारने का प्रश्न ही नहीं पैदा होता। इस्तीफे का सवाल कहां से पैदा हुआ है। कोई सरकार पर अपनी शर्तें नहीं थोप सकता। सरकार की बात की जाए तो किसी केंद्रीय मंत्री ने कोई गैर कानूनी या अनैतिक कार्य नहीं किया है।
कांग्रेस की मांग ठुकराए जाने पर आजाद ने सरकार को ‘मोटी खाल’ वाला करार दिया। उन्होंने पूर्व की कांग्रेस नेतृत्व वाली यूपीए सरकार का उदाहरण देते हुए कहा कि तत्कालीन रेल मंत्री पवन कुमार बंसल और महाराष्ट्र के पूर्व मुख्यमंत्री अशोक चव्हाण ने आरोप लगने के बाद इस्तीफा दे दिया था। हालांकि मोदी ने सभी दलों से अपील की कि वे संसद का समय चर्चा में लगाएं। दोनों सदनों की कार्यवाही चलाना सबकी साझा जिम्मेदारी है। उन्होंने विवादास्पद भूमि विधेयक पर सबको साथ लेकर चलने की अपील की ।
कांग्रेस की मांग है, ‘इस्तीफा नहीं तो सदन नहीं’। लेकिन अन्य दलों से उसे इस मांग पर समर्थन नहीं मिला। अन्य दलों का कहना है कि संसद की कार्यवाही नहीं चलने देना समाधान नहीं है। नायडू ने कहा कि 29 विपक्षी दलों ने कांग्रेस के रुख का समर्थन नहीं किया है।
कांग्रेस के लोकसभा में सचेतक के सी वेणुगोपाल ने कहा कि हम विधेयकों को पारित कराने में सरकार के सहयोग को तैयार हैं बशर्ते व्यापमं, ‘ललितगेट’ और भारत-पाक संबंध जैसे महत्वपूर्ण मुद्दों पर सार्थक कार्रवाई हो।
कांग्रेस, जद (एकी), सपा, बसपा, राजद, द्रमुक, वाम दल और राजग के घटक दलों सहित 29 पार्टियों के 42 नेताओं ने बैठक में हिस्सा लिया, जो दो घंटे चली। बैठक में तृणमूल कांग्रेस और अन्नाद्रमुक का कोई प्रतिनिधि उपस्थित नहीं था। नायडू ने कहा कि तृणमूल ने पहले सूचित कर दिया था कि कोलकाता में उनकी पार्टी की बैठक के कारण कोई प्रतिनिधि नहीं आ पाएगा लेकिन अन्नाद्रमुक की ओर से कोई सूचना नहीं आई।
राकांपा के तारिक अनवर का कहना था कि संसद की कार्रवाई चलने देनी चाहिए। बीजद के भृतुहरि महताब ने कहा कि व्यापमं घोटाले पर चर्चा की आवश्यकता है। महताब ने कहा कि वह चाहते हैं कि संसद का कार्य सामान्य रूप से चले। शिरोमणि अकाली दल के सुखदेव सिंह ढींढ़सा ने आजाद की ओर से उठाए गए मुद्दों पर चर्चा की आवश्यकता का उल्लेख करते हुए कहा कि जब संसद ही नहीं चलने दी जाएगी, तो ये सब कुछ कैसे होगा।
सपा के राम गोपाल यादव ने स्मरण कराया कि पिछले सत्रों में जब बाधा के कारण समय गंवाना पड़ा तो दोनों ही सदनों की बैठकें अतिरिक्त समय चलीं। शिवसेना के संजय राउत ने भारत-पाकिस्तान सीमा पर तनाव को लेकर चिंता व्यक्त की। उन्होंने कहा कि जो लोग संसद के कामकाज में बाधा पहुंचाकर चर्चा नहीं होने देंगे, उन्हें देश माफ नहीं करेगा। टीआरएस के केशव राव ने सभी मुद्दों पर विस्तार से चर्चा की मांग की।
बैठक में शामिल लोगों ने जिन विषयों पर चर्चा के सुझाव दिए, उनमें भारत-पाक संबंध, विदेश नीति, बढ़ती सामाजिक असमानता, किसानों की आत्महत्या, कृषि संकट, आंध्र प्रदेश पुनर्गठन कानून से जुड़े मुद्दे, प्रमोशन में अनुसूचित जाति व अनुसूचित जनजाति के लोगों को आरक्षण, तंबाकू किसानों की समस्याएं, सामाजिक आर्थिक व जाति जनगणना प्रमुख हैं। अन्य जिन मुद्दों पर चर्चा के सुझाव आए, वे दिल्ली सरकार और उपराज्यपाल के बीच गतिरोध, 2016 के ओलंपिक के लिए तैयारियां, सांसद निधि योजना, उच्च शिक्षा क्षेत्र से जुड़े मुद्दे, पूर्वोत्तर क्षेत्र से संबद्ध मुद्दे, जलवायु परिवर्तन व आंबेडकर के 125वें जन्म दिवस से जुड़े समारोह हैं।
कामकाज जरूरी
कांग्रेस की मांग है, ‘इस्तीफा नहीं तो सदन नहीं’। लेकिन अन्य दलों से उसे इस मांग पर समर्थन नहीं मिला। अन्य दलों का कहना है कि संसद की कार्यवाही नहीं चलने देना समाधान नहीं है।
चर्चा की पेशकश
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने विपक्ष से सहयोग मांगते हुए इच्छा जताई कि किसी भी मुद्दे पर चर्चा की जा सकती है। उन्होंने कहा कि संसद की कार्यवाही चलाना साझा जिम्मेदारी है।