मृणाल वल्लरी
भारतीय व अंतरराष्ट्रीय भाषाओं को प्रकाशित करने वाले वाणी प्रकाशन ने ‘भारतीय ज्ञानपीठ ट्रस्ट’ के साथ भारतीय ज्ञानपीठ के विश्व प्रसिद्ध प्रकाशनों का एकाधिकारिक प्रकाशन अधिकारों के लिए करार किया है। वाणी प्रकाशन समूह ने दुनिया भर में समृद्ध और प्रतिष्ठित साहित्य हिंदी व अंग्रेजी पाठकों को उपलब्ध कराने के उद्देश्य से ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित पुस्तकों को विशेष रूप से प्रकाशित करने की जिम्मेदारी ली है।
वाणी प्रकाशन के प्रबंध निदेशक व समूह चेयरमैन अरुण माहेश्वरी ने इस करार के बाबत कहा, ‘भारतीय ज्ञानपीठ ट्रस्ट के प्रकाशनों की जिम्मेदारी वास्तव में गहन सम्मान का विषय है। भारतीय ज्ञानपीठ ट्रस्ट की नींव 1943 से ज्ञान की विलुप्त शाखाओं को प्रकाशित करने व भारतीय भाषाओं में साहित्य को सम्मानित करने के लिए समर्पित रही है। भारतीय ज्ञानपीठ की गरिमा और प्रतिष्ठा अविरल और विश्वव्यापी है’।
अरुण माहेश्वरी ने कहा कि यह तय करना हमारी निजी योजना और नेतृत्व का हिस्सा रहा है कि प्रत्येक भाषा के साहित्य को वह ख्याति प्राप्त हो जिसकी वह हकदार है। भारतीय ज्ञानपीठ के गौरवशाली इतिहास के साथ जुड़ कर वाणी प्रकाशन समूह गौरवान्वित और उत्साहित है।
भारतीय ज्ञानपीठ ट्रस्ट का मानना है कि वह 1943 में स्थापना के बाद से ही ज्ञान के संवर्द्धन उद्देश्यों की पूर्ति के प्रति समर्पित भाव से कार्य करता आ रहा है। ट्रस्ट का शोध और प्रकाशन कार्यक्रम उत्कृष्टता के पुनरुत्थान के साथ प्रारंभ हुआ। इस कार्यभार को वाणी प्रकाशन समूह के साथ आगे बढ़ाते हुए हम गर्व और जिम्मेदारी की भावनाओं का अनुभव कर रहे हैं।
उन्होंने कहा कि वाणी प्रकाशन की स्थापना छह दशक पूर्व हिंदी साहित्य के प्रचार-प्रसार के लिए की गई थी। उस समय अंग्रेजी भाषा बौद्धिक व लोकप्रिय रूप से प्रसिद्ध थी। वाणी प्रकाशन ने उस भाषाई असंतुलन को खत्म करने की सफल कोशिश की। माहेश्वरी कहते हैं कि सत्तर के दशक के बाद हिंदी साहित्य के इतिहास में वाणी प्रकाशन समूह द्वारा प्रकाशित पुस्तकों का जनभाषा हिंदी को समृद्ध बनाने में खासा योगदान रहा है।
ज्ञानपीठ पुरस्कार देश के प्रतिष्ठित साहित्यिक सम्मानों में से माना जाता है। यह पुरस्कार स्थापित करने का विचार ट्रस्ट के संस्थापक साहू शांति प्रसाद जैन व उसके बाद रमा जैन ने रामधारी सिंह दिनकर, हरिवंश राय बच्चन और लक्ष्मी चंद्र जैन सहित प्रमुख साहित्यिक स्वरों के साथ मिलकर बनाया था। पहला पुरस्कार 1965 में जी शंकर कुरुप (मलयालम भाषा) को प्रदान किया गया था। तब से अब तक यह प्रतिष्ठित पुरस्कार भारतीय भाषाओं के लेखकों को प्रदान किया जाता है।
अरुण माहेश्वरी ने कहा कि यह हमारे लिए दोहरी खुशी का समय है। वाणी प्रकाशन से प्रकाशित दया प्रकाश सिन्हा के नाटक ‘सम्राट अशोक’ को 2021 का साहित्य अकादेमी पुरस्कार दिया गया है। ‘सम्राट अशोक’ के पुरस्कृत होने के साथ नाट्य-लेखन व शोध को भी प्रतिष्ठा मिली है।