भू-धंसाव के कारण राज्य के कई पर्वतीय क्षेत्रों में स्थित कई मकानों में दरारें आ गई हैं, जिनमें उत्तरकाशी, श्रीनगर, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग, टिहरी, बागेश्वर और नैनीताल हैं। अंधाधुंध विकास के नाम पर ये शहर भी खतरे की जद में हैं। इन शहरों में कई मकानों में भू-धंसाव के कारण दरारें पड़ गई हैं, जिससे लोगों में दहशत का माहौल बना हुआ है।

जोशीमठ के बाद सबसे ज्यादा नाजुक हालात कर्णप्रयाग में है। जहां पर उत्तराखंड की आलवेदर रोड और ऋषिकेश कर्णप्रयाग की रेल लाइन बिछाने के लिए कई सुरंगों और पुलों का निर्माण हो रहा है। इस कारण यहां पहाड़ों को काटकर सुरंगे, सड़क और पुल बनाने का काम चल रहा है। यहां पेड़ काटने पड़े हैं और पहाड़ों को खोदा गया है। विस्फोट किए गए हैं, जिससे यहां के पहाड़ जोशीमठ की तरह दरकने लगे हैं।

कर्णप्रयाग क्षेत्र में 50 से ज्यादा मकान दरक गए हैं। इनमें से आधे से ज्यादा मकान रहने लायक नहीं बचे हैं। इस क्षेत्र के कई मकानों में इतनी ज्यादा दरार आ गई है कि वे गिरने की कगार पर हैं। इन खतरों के बावजूद इन दरके हुए मकानों में लोग रह रहे हैं।जानकारों के मुताबिक 2013 में आई केदारनाथ आपदा के बाद कर्णप्रयाग के अलग-अलग क्षेत्रों में जमीन धंसने की घटनाएं लगातार हो रही हैं।

कर्णप्रयाग में सब्जी मंडी जाने वाला रास्ता बुरी तरह टूट गया है। कर्णप्रयाग के बहुगुणा नगर के छह से ज्यादा मकानों में दरारें आ गई है। इस कारण पांच परिवार यहां से पलायन कर चुके हैं।वहीं, कर्णप्रयाग में अलकनंदा नदी की तरफ बने बाजार में 18 से ज्यादा दुकानों और मकानों में दरारें पड़ चुकी हैं।

अलकनंदा नदी के पास ही गांव जाखबंदाणी के कई घरों में दरारें आ गई हैं। इस क्षेत्र के अपर जिलाधिकारी ने बताया कि इस क्षेत्र में पिछले साल एक जांच एजंसी से सर्वेक्षण कराया था, तब यहां जमीन धंसने की बात सामने आई थी। श्रीनगर के दो मोहल्लों के 24 से ज्यादा घरों में दरारें आई हैं। स्थानीय लोगों का कहना है कि इस क्षेत्र में ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल लाइन बिछाने के लिए सुरंग बनाई जा रही है। कुमाऊंमंडल के बागेश्वर जिले के मुनस्यारी और कपकोट क्षेत्रों में 48 से ज्यादा गांव खतरे में हैं। भूस्खलन और भू-धंसाव के कारण कई मकानों में दरारें आ गई हैं।

इसी तरह नैनीताल में बलिया नाले के पास अंधाधुंध विकास के नाम पर लोगों ने मकान बना लिए हैं, जबकि यहां पर भूस्खलन तेजी से हो रहा है और 10 साल से जमीन धंसने की घटनाएं हो रही हैं। भू-वैज्ञानिकों के अनुसार यह क्षेत्र अत्यंत संवेदनशील है। उत्तराखंड के सीमांत जिले उत्तरकाशी के भटवाड़ी क्षेत्र में भी कई मकानों में भू-धंसाव के कारण दरारें पड़ गई है। उत्तरकाशी के गंगा भागीरथी क्षेत्र में नदी के कटाव के कारण 48 से ज्यादा मकान 2010 में नदी के कटाव के कारण ढह गए थे और गंगोत्री राष्ट्रीय राजमार्ग का एक बड़ा हिस्सा गंगा भागीरथी नदी में बह गया था।

उत्तरकाशी की तहसील के बड़कोट के वाडिया गांव वालों में भू-धंसाव के कारण दहशत है और इस गांव के 36 से ज्यादा मकानों तथा खेतों में मोटी-मोटी दरारें पड़ गई हैं। डर के कारण लोग मकानों में नहीं रह पा रहे हैं और ना ही खेती कर पा रहे हैं। वाडिया गांव यमुनौत्री राष्ट्रीय राजमार्ग के ऊपर है। इस गांव में सौ से ज्यादा परिवार रहते है। उत्तरकाशी जिला भागीरथी और यमुना घाटी क्षेत्रों में विभाजित है और ये दोनों क्षेत्र भूकम्पीय क्षेत्र में आने के कारण अत्यंत संवेदनशील है।

ऋषिकेश कर्णप्रयाग रेल लाइन निर्माण दंश रूद्रप्रयाग जिले का मरोड़ा गांव झेल रहा है। इस गांव में रेल लाइन बिछाने के लिए गांव की निचली सतह पर सुरंग निर्माण किया जा रहा है। इस कारण कई घरों में दरारें पड़ गई हैं। इस गांव में करीब 40 परिवार रहते थे। इनमें से लगभग आधे परिवार यहां से पलायन कर गए हैं। रूद्रप्रयाग के जिलाधिकारी मयूर दीक्षित का कहना है कि मरोड़ा गांव के विस्थापित परिवार को चिन्हित कर उन्हें मुआवजा दिए जाने की कार्यवाही चल रही है।

आइआइटी रूड़की के सिविल विभाग के प्रोफेसर सतेन्द्र कुमार मित्तल का कहना है कि जोशीमठ, कर्णप्रयाग, रुद्रप्रयाग, उत्तरकाशी तथा उत्तराखंड के कई अन्य पर्वतीय क्षेत्रों में भू-धंसाव की जो घटनाएं हो रही है, वे अधिकांशत: मानवजनित हैं। उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्र बिना किसी सुनियोजित तरीके से किए गए विकास की भेंट चढ़ रहे हैं।उत्तराखंड गंगा, यमुना, शारदा, सरयु, अलकनंदा, महाकाली, धौली गंगा तथा अन्य नदियों का उद्गम स्थल है और भूकंपीय क्षेत्र होने के कारण अत्यंत संवदेनशील हैं।

भारतीय पर्यावरण विज्ञान अकादमी के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रोफेसर बीडी जोशी का कहना है कि देवप्रयाग से लेकर बदरीनाथ तक सड़कमार्ग का लगभग दो सौ किलोमीटर का क्षेत्र अत्यंत संवेदनशील है और इस क्षेत्र की यह पर्वतीय श्रृंखला कच्ची और कम उम्र की है। यहां पर पक्की चट्टानें ना के बराबर है्ं।रेत और भूस्खलन के मलबे से यह पर्वतीय क्षेत्र निर्मित है और हिमालय उत्तर पूर्व की ओर खिसक रहा है। उसके दबाव से यह पहाड़ियां बनीं। उनका कहना है कि भू-गर्भीय सर्वेक्षण यह बताता है कि लंबे वर्षाें तक यह पर्वतीय क्षेत्र अस्थिर बना रहेगा। साथ ही इनकी धारक क्षमता बहुत कम होती है और ज्यादा दबाव पड़ने के कारण यहां पर मकान और जमीन दरकने लगते हैं।