दरअसल पौड़ी गढ़वाल में हुए अंकिता हत्याकांड के बाद राजस्व पुलिस की कार्यशैली पर जबरदस्त सवाल उठे है। तब से राज्य सरकार राजस्व पुलिस के अस्तित्व को समाप्त करने को लेकर गहरे चिंतन मनन में लग गई। पुष्कर सिंह धामी सरकार ने राज्य की सबसे पुरानी राजस्व पुलिस व्यवस्था को चरणबद्ध तरीके समाप्त करने की प्रक्रिया शुरू करने का फैसला किया।
धामी सरकार के इस निर्णय से राज्य की 161 साल पुरानी राजस्व पुलिस व्यवस्था समाप्त हो जाएगी। देश में उत्तराखंड अकेला ऐसा सूबा है, जहां राजस्व पुलिस व्यवस्था लागू है, उत्तराखंड के 61 फीसद क्षेत्र में राजस्व पुलिस व्यवस्था है। पुलिसकर्मियों की बजाए पटवारी इन क्षेत्रों की कानून और सुरक्षा व्यवस्था देखते हैं। ब्रिटिश हुकूमत के दौरान लागू की गई इस राजस्व पुलिस व्यवस्था को अब राज्य सरकार ने बदलने की तैयारी की है।
बीते सोमवार को उत्तराखंड की अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने राज्य की कानून व्यवस्था को लेकर एक उच्चस्तरीय समीक्षा बैठक की, जिस बैठक में उत्तराखंड की राजस्व पुलिस व्यवस्था को नागरिक पुलिस में बदलने के लिए चरणबद्ध तरीके के अपनाने के निर्देश दिए गए। राज्य के 13 जिलों में से 11 जिलों के जिलाधिकारियों को इस संबंध में विस्तृत आख्या रिपोर्ट प्रस्तुत करने के निर्देश दिए गए हैं। उत्तराखंड के 13 जिलों में से 2 जिलों हरिद्वार और उधम सिंह नगर को छोड़कर बाकी सभी पर्वतीय जिलों में राजस्व पुलिस व्यवस्था लागू है।
यम्केश्वर विकासखंड भी शामिल
उत्तराखंड के राजस्व पुलिस क्षेत्रों के जिन गांवों में नागरिक पुलिस व्यवस्था लागू की जाएगी, उनमें गढ़वाल मंडल के पौड़ी जिले का यम्केश्वर विकासखंड भी शामिल है। पौड़ी गढ़वाल की रहने वाली अंकिता भंडारी की मौत का केंद्र बना यम्केश्वर विकासखंड का गांव गंगा भोगपुर तल्ला भी शामिल है।
यहां पर भाजपा से निष्कासित नेता और पूर्व राज्य मंत्री विनोद आर्य के बेटे पुलकित आर्य के वमंत्रा रिसार्ट की कर्मचारी अंकिता भंडारी की हत्या की गई थी। अंकिता की हत्या के बाद उत्तराखंड की राजस्व पुलिस के ऊपर सवालिया निशान लगे थे। इस मामले में लापरवाही बरतने और मामले को रफा-दफा करने के आरोप में राजस्व पुलिस के 2 पटवारियों का निलंबन और निष्कासन किया गया था। इस घटना ने उत्तराखंड नहीं बल्कि पूरे देश को हिला कर रख दिया था।
धामी सरकार की कवायद
पौड़ी गढ़वाल के अंकिता हत्याकांड के बाद राज्य के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने राजस्व पुलिस की समीक्षा के निर्देश दिए थे और पुष्कर सिंह धामी की अध्यक्षता में राज्य मंत्रिमंडल की बैठक में उत्तराखंड से चरणबद्ध तरीके से राजस्व पुलिस व्यवस्था को समाप्त करने का निर्णय लिया गया था और अब जिसे लागू करने के लिए उत्तराखंड के शासन स्तर पर लगातार उच्चस्तरीय बैठकों का क्रम जारी है उत्तराखंड की अपर मुख्य सचिव राधा रतूड़ी ने कहा कि राज्य के राजस्व पुलिस व्यवस्था को नागरिक पुलिस व्यवस्था में तब्दील करने के लिए पहले चरण में 6 महीने के भीतर राजस्व पुलिस क्षेत्र के 6 थानों और 20 चौकियों में नागरिक पुलिस की तैनाती की जाएगी।
इसके लिए सभी जिलाधिकारियों व वरिष्ठ पुलिस अधीक्षकों को जल्द से जल्द विस्तृत प्रस्ताव भेजने के निर्देश दिए गए हैं। उधर बीते सोमवार को उच्चतम न्यायालय में इस मामले की सुनवाई में राज्य सरकार ने मंत्रिमंडल में लिए गए फैसले को फेस किया और जिस पर उच्चतम न्यायालय ने छह माह के भीतर नागरिक पुलिस की तैनाती करने के निर्देश दिए।
दायरे में 7500 गांव
उत्तराखंड के 7500 गांव राजस्व पुलिस के दायरे में आते हैं। पहले चरण में सरकार की ओर से 7500 गांवों में से 1500 से अधिक गांवों को नागरिक पुलिस के दायरे में लाने की योजना तैयार की गई है। इसके बाद अगले चरणों में अन्य गांवों में भी नागरिक पुलिस की तैनाती की जाएगी। माना जा रहा है कि अगले दो-तीन सालों में उत्तराखंड राजस्व पुलिस से मुक्त हो जाएगा।
पहले चरण तैयारी
उत्तराखंड सरकार ने पहले चरण में राजस्व पुलिस वाले जिलों में छह नए पुलिस थाने और 20 नई पुलिस चौकियां स्थापित करने का फैसला लिया है। पहले चरण में पौड़ी जिले के यमकेश्वर, टिहरी जिले के छाम, चमोली जिले के घाट, नैनीताल जिले के खनस्यू, अल्मोड़ा जिले के देघाट और धौलझीना को थाना बनाया है। साथ ही प्रदेश में 20 नई चौकियां खोलने की तैयारी भी शुरू हो गई है।
जिसमें देहरादून जिले के लाखामंडल, पौड़ी जिले के बीरोंखाल, टिहरी जिले के गजा, कंडीखाल, चमीयाला, और चमोली जिले के नौटी, नारायणबगड़, उर्गम, रुद्रप्रयाग जिले के चोपता, दुर्गाधार, उत्तरकाशी जिले के संकरी, धोंतरी, नैनीताल जिले के औखलकांडा, धानाचूली, हेडाखान, धारी, अल्मोड़ा जिले के मजखाली, जागेश्वर, भैनखाल के साथ चम्पावत जिले के बाराकोट, में नई चौकियां खुलेंगी।
ब्रिटिश काल में लागू की गई थी राजस्व पुलिस व्यवस्था
उत्तराखंड में राजस्व पुलिस व्यवस्था हुकूमत के जमाने में 1861 में शुरू की गई थी। इस अनोखी व्यवस्था के तहत पटवारी, कानूनगो, तहसीलदार से लेकर जिलाधिकारी और मंडलायुक्त तक को राजस्व कामों के साथ-साथ ही पुलिस के कामकाज देखने होते है। राजस्व ग्रामों में कानून व्यवस्था की जिम्मेदारी राजस्व पुलिस की होती है, जिसके तहत पटवारी द्वारा अपराधों की जांच करना, मुकदमा दर्ज करना और अपराधियों को पकड़ने की जिम्मेदारी होती है। 1857 क्रांति के बाद अंग्रेजी सरकार ने 1861 में पुलिस एक्ट लागू किया इसके तहत उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में राजस्व पुलिस की तैनाती का फैसला लिया गया। 22 साल पहले 9 नवंबर 2000 को उत्तराखंड के नया राज्य बनने के बाद भी ब्रिटिश हुकूमत के समय लागू की गई राजस्व पुलिस व्यवस्था को नहीं बदला गया।