पहाड़ के जंगलों में लगी भीषण आग की लपटों की तपिश बढती ही जा रही है। इस साल इस आग ने विकराल रूप धारण कर लिया है। पूरा पहाड़ धुंए की चादर में लिपटा है। प्रशासनिक अमला स्थानीय लोगों की मदद से आग पर काबू पाने में जुटा है। लेकिन गर्मी और तेज हवाएं आग को दहका रही हैं।
रविवार सुबह से वायुसेना के एमआइ-17 हेलिकॉप्टर ने नैनीताल जिले के जंगलों में आग बुझाने का काम शुरू कर दिया। हेलिकॉप्टर भीमताल की झील से पांच हजार लीटर पानी भरकर जंगल की आग बुझाने के काम में जुट गया है। प्रशासन रिहायशी इलाकों की आग बुझाने को प्राथमिकता दे रहा रहा है। इस काम में वन विभाग के साथ-साथ राजस्व, पुलिस, होमगार्ड, पीआरडी, ग्राम्य विकास और दूसरे महकमों के कर्मचारी लगाए गए हैं। नैनीताल के जिला मजिस्ट्रेट दीपक रावत ने आग को देखते हुए सभी अफसरों की छुट्टियां रद्द कर दी हैं। जिले की तीस न्याय पंचायतों के लिए तीस नोडल अधिकारी तैनात किए गए हैं।
अप्रैल में कुमाऊं के जंगलों में आग लगने की करीब 325 घटनाएं हुईं। इससे करीब 675 हेक्टेयर जंगल जलकर खाक हो गया। आग से वन संपदा और जैव विविधता को भारी नुकसान पहुंचा है। वन्य जीव जान बचाने के लिए इधर-उधर भाग रहे हैं। आग से पहाड़ का तापमान चार-पांच डिग्री बढ़ गया है। कई इलाकों बीएसएनएल की केबिल जल गई है। आग में कई लोगों के मरने और दजर्नों लोगों के झुलसने की खबर है। वन क्षेत्रों की कई नर्सरियां जल गई हैं। जंगलों में शाक और झाड़ियों के जलने से पानी के सोते सूखने, भू कटाव बढ़ने और पेड़ों के विकास पर बुरा असर पड़ने की आशंका है। इससे भविष्य में पारिस्थितिकी संकट उत्पन्न हो सकता है।
पहाड़ के जंगलों में आग लगना एक स्थायी समस्या है। 2005 से 2015 के बीच कुमाऊं में वनों में आग लगने की करीब 2238 घटनाएं दर्ज की गईं। इसमें तकरीबन 5356.77 हेक्टेयर वन आग की भेंट चढ़ गए थे। आग की इन घटनाओं में करोड़ों रुपए मूल्य की वन संपदा जलकर स्वाहा हो गई।
इस साल लंबे समय से बारिश नहीं होने से मौसम बेहद शुष्क है। तेज हवाएं चल रहीं हैं। इससे आग की मारक क्षमता बढ़ गई है। इससे जंगल बारूद की ढेर की तरह आग में धधक रहे हैं। आमतौर पर तीन-चार साल पर जंगल में आग का प्रकोप तेज होता है। लेकिन इस साल की आग ने पिछले सारे रेकार्ड तोड़ दिए हैं।
उत्तराखंड का भौगोलिक क्षेत्रफल 53483 वर्ग किलोमीटर है। इसमें 64.79 फीसद यानि 34651.014 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र है। 24414.408 वर्ग किलोमीटर वन क्षेत्र जंगलात विभाग के नियंत्रण में है। वन विभाग के नियंत्रण वाले वन क्षेत्र में से करीब 24260.783 वर्ग किलोमीटर आरक्षित वन क्षेत्र है। बाकी 139.653 वर्ग किलोमीटर जंगल वन पंचायतों के नियंत्रण में हैं। वन विभाग के नियंत्रण वाले जंगलों में से 394383.84 हेक्टेयर में चीड़ के जंगल हैं तो 383088.12 हेक्टेयर में बांज के वन हैं। वहीं 614361 हेक्टेयर में मिश्रित जंगल है। जबकि तकरीबन 22.17 फीसद क्षेत्र वन रिक्त है। चीड़ के जंगल आग के मामले में अत्यंत संवेदनशील होते हैं। चीड़ की सूखी पत्तियां आग में घी का काम करती हैं।
प्रदेश सरकार ने आग से निपटने के लिए अग्निशमन कर्मचारियों की तादात तीन हजार से बढ़कर छह हजार करने और एनडीआरएफ की टीमें लगाने का एलान किया है। लेकिन ज्यादातर अग्निशमन कर्मचारी अप्रशिक्षित दिहाड़ी मजदूर हैं। एनडीआरएफ बेशक एक दक्ष बल हो। लेकिन उसे पहाड़ के जंगलों में लगी आग से निपटने के तरीके समझने में वक्त लग सकता है।

जंगलों को आग से बचाने की बुनियादी जिम्मेदारी वन विभाग की है। लेकिन प्रदेश का वन विभाग वनों को आग से महफूज रखने के लिए बनी विभागीय कार्ययोजना की बात करने से कतरा रहा है। इस कार्ययोजना में जंगल की आग से निपटने के सभी कारगर उपाय तय किए होते हैं। इसके लिए बाकायदा बजट का प्रावधान होता है। लेकिन वन विभाग समय रहते कार्ययोजना पर अमल नहीं करता है। जबकि उत्तराखंड के वन महकमे में आला अफसरों की भरमार है। उत्तर प्रदेश में जहां एक प्रमुख वन संरक्षक पूरे प्रदेश की जिम्मेदारी संभालते थे, अलग राज्य बनने के बाद उत्तराखंड में प्रमुख और मुख्य वन संरक्षक स्तर के करीब ढाई दर्जन अधिकारी हैं। वहीं जमीनी स्तर पर कर्मचारियों की भारी कमी है।
प्रदेश के राजस्व का एक बड़ा हिस्सा वनोपज से आता है। लेकिन दुर्भाग्य से यहां के जंगलों की आमदनी का एक छोटा सा हिस्सा ही वनों की हिफाजत में खर्चा जाता है। वन महकमें के हिस्से आने वाली रकम का एक बड़ा हिस्सा विभाग के कर्मचारियों की तनख्वाह पर खर्च होता है। वनों की हिफाजत और पौध रोपण के काम में नाममात्र का पैसा खर्च होता है। हर साल पहाड़ के जंगलों में आग लगती है। लेकिन इसे आर्थिक औ्र पारिस्थितिकी के नजरिए से नहीं देखा जाता। अव्यावहारिक वन कानूनों ने वनोपज पर स्थानीय निवासियों का अधिकार खत्म कर दिया है। इस वजह से ग्रामीणों और वनों के बीच की दूरी बढ़ी है। जंगलों से आम आदमी का सदियों पुरान रिश्ता कायम किए बिना जंगलों को आग और इससे होने वाले नुकसान से बचाना सरकार और वन विभाग के बूते से बाहर है। लेकिन इस जमीनी हकीकत को स्वीकारने का साहस फिलहाल किसी में नहीं है।