सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अटॉर्नी जनरल से कहा कि वे उत्तराखंड विधानसभा में अपनी देखरेख में शक्ति परीक्षण करवाने की संभावना पर निर्देश लेकर अदालत को सूचित करें। राज्य में राष्ट्रपति शासन को रद्द करने वाले उत्तराखंड हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्र की अपील की सुनवाई को अदालत ने बुधवार तक के लिए स्थगित कर दिया।

न्यायमूर्ति दीपक मिश्र और न्यायमूर्ति शिव कीर्ति सिंह की पीठ ने याचिका पर सुनवाई के लिए मंगलवार दोपहर दो बजे का समय निर्धारित किया था। लेकिन मंगलवार को पीठ ने सुबह साढ़े दस बजे इस मामले से संबंधित पक्षों को बताया कि वह आज इस पर सुनवाई नहीं कर सकती क्योंकि न्यायमूर्ति सिंह दोपहर दो बजे चिकित्सीय प्रवेश परीक्षाओं से जुड़े मामलों की सुनवाई कर रही एक अन्य पीठ में शामिल होंगे।

इस संक्षिप्त सुनवाई के दौरान पीठ ने अपने सुझाव को दोहराया कि केंद्र को असल स्थिति का पता लगाने के लिए अपने निरीक्षण में विधानसभा में शक्ति परीक्षण करवाने पर विचार करना चाहिए। अदालत ने अटॉर्नी जनरल मुकुल रोहतगी से कहा कि वे इस मुद्दे पर निर्देश लें और अदालत को चार मई को इसके बारे में बताएं।

शीर्ष अदालत ने 22 अप्रैल को उत्तराखंड हाई कोर्ट के उस आदेश पर 27 अप्रैल तक के लिए रोक लगा दी थी, जिसमें राष्ट्रपति शासन लगाए जाने को निरस्त कर दिया गया था। इसके साथ ही राज्य में केंद्र के शासन की बहाली के साथ वहां चल रहे राजनीतिक नाटक में एक नया मोड़ आ गया था। बीते 27 अप्रैल को अदालत ने अगले आदेशों तक इस रोक को आगे बढ़ा दिया था। अदालत ने इसके साथ ही सात सवाल तय किए थे। इस दौरान अदालत ने अटॉर्नी जनरल को उन सवालों को भी शामिल करने का अधिकार दिया था, जिनका जवाब सरकार चाहती होगी।

पीठ ने अपने पहले सवाल में पूछा था, क्या राज्यपाल शक्तिपरीक्षण करवाने के लिए अनुच्छेद 175(2) के तहत मौजूदा तरीके से संदेश भेज सकते हैं? पीठ ने पूछा था कि क्या संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाए जाने के उद्देश्य के लिए स्पीकर द्वारा विधायकों को अयोग्य करार दिया जाना ‘प्रासंगिक मुद्दा’ है? विधानसभा की कार्यवाही को न्यायिक जांच के दायरे से बाहर बताने वाली संवैधानिक व्यवस्था का हवाला देते हुए शीर्ष अदालत ने यह भी पूछा था कि क्या राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए सदन की कार्यवाही पर गौर किया जा सकता है?

उत्तराखंड विधानसभा में विनियोग विधेयक के भाग्य के संदर्भ में दावों और जवाबी दावों पर गौर करते हुए अदालत ने कहा अगला सवाल यह है कि राष्ट्रपति की भूमिका कब सामने आती है? अदालत ने यह भी पूछा था, क्या शक्ति परीक्षण में हो रही देरी को राष्ट्रपति शासन लगाने की घोषणा के लिए आधार बनाया जा सकता है?