सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार (4 मई) को केंद्र की उस याचिका को मंजूर कर लिया, जिसमें उसने उत्तराखंड विधानसभा में शक्ति परीक्षण करवाने की व्यवहार्यता के अदालत के सुझाव पर जवाब देने के लिए उससे दो दिन का समय मांगा था। अटार्नी जनरल मुकुल रोहतगी ने अदालत को बताया कि उन्होंने अदालत के सुझाव को केंद्र तक पहुंचा दिया है। सरकार इस पर गंभीरता से विचार कर रही है। इसके बाद न्यायमूर्ति दीपक मिश्रा व न्यायमूर्ति शिवकीर्ति सिंह ने मामले की सुनवाई शुक्रवार तक के लिए स्थगित कर दी।

पीठ ने अटार्नी जनरल की इस बात को रिकॉर्ड कर लिया कि केंद्र सरकार मामले में उपजा विवाद खत्म करने के लिए विधानसभा में शक्ति परीक्षण करवाने के इस अदालत के सुझाव पर गंभीरता से विचार कर रही है। पीठ ने कहा कि उसने हटाए गए मुख्यमंत्री हरीश रावत के वकील कपिल सिब्बल व अभिषेक मनु सिंघवी की इस बात पर भी गौर किया कि सरकार की ओर से सुझाव को मान लिए जाने पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। पीठ ने कहा कि सरकार सुझाव को मान लेती है तो यह लोकतंत्र के लिए अच्छा होगा।

मामले की सुनवाई छह मई के लिए स्थगित करते हुए पीठ ने कहा कि अगर एजी को सुझाव पर निर्देश नहीं मिलता है तब भी मामले की सुनवाई की जाएगी। यह भी संभावना है कि मामले को पूर्ण बहस के लिए संवैधानिक पीठ के पास भेज दिया जाए। पीठ का मानना था कि राष्ट्रपति शासन लगाने के अधिकतर मामलों में कुछ अहम सवाल तैयार करने के बाद मामला संवैधानिक पीठ के पास भेजा जाता रहा है।

सिब्बल और सिंघवी ने इस आदेश की रिकॉर्डिंग पर आपत्ति जताई और कहा कि यह शक्ति परीक्षण का मामला है जो रावत के लिए विश्वास मत जैसा है। इसे किसी भी तरह से अविश्वास मत नहीं कहा जा सकता। कांग्रेस की इस दलील पर रोहतगी ने आपत्ति जताते हुए कहा कि शीर्ष अदालत के आदेश के कारण राष्ट्रपति शासन लागू होने की वजह से रावत खुद को मुख्यमंत्री के तौर पर पेश कर विश्वास मत नहीं मांग सकते। उत्तराखंड में स्थिति ऐसी है, जहां दोनों ही पक्षों को अपना बहुमत साबित करने के लिए शक्ति परीक्षण का सामना करना होगा। सिंघवी ने कहा कि शक्ति परीक्षण उस दल के लिए नहीं हो सकता, जो सत्ता में है ही नहीं। जिस व्यक्ति को बहुमत साबित करने के लिए बुलाया जाना है वह मुख्यमंत्री रहा है।

न्यायाधीशों ने कहा कि हम रावत को बहुमत साबित करने के लिए कहकर पूर्व स्थिति बहाल नहीं करेंगे। एजी ने कहा कि शुक्रवार को जब सुनवाई शुरू हो, तब अदालत को शक्ति परीक्षण करने के तरीकों पर फैसला करना चाहिए। राष्ट्रपति शासन की घोषणा को खारिज करने वाले उत्तराखंड हाई कोर्ट के फैसले पर रोक लगाने वाला अंतरिम आदेश अगले आदेश आने तक जारी और प्रभावी रहेगा।

एजी ने कहा कि इस सुबह मुझे जो जानकारी मिली है, वह यह है कि हम शुक्रवार सुबह इसे देखेंगे और फिलहाल यही स्थिति है। सिब्बल व सिंघवी ने भी एजी की बात पर कोई आपत्ति नहीं जताई। पीठ ने मंगलवार को एजी से कहा था कि वे केंद्र से उत्तराखंड विधानसभा में उसके निरीक्षण में शक्ति परीक्षण करवाने की व्यवहार्यता के बारे में निर्देश लें और अदालत को सूचित करें। अदालत राज्य में राष्ट्रपति शासन हटाने के उत्तराखंड हाई कोर्ट के फैसले के खिलाफ दायर केंद्र की अपील पर सुनवाई कर रही थी।

शीर्ष अदालत ने 22 अप्रैल को उत्तराखंड हाई कोर्ट के उस आदेश पर 27 अप्रैल तक के लिए रोक लगा दी थी, जिसके जरिए उसने राष्ट्रपति शासन को रद्द कर दिया था। इस फैसले पर रोक लगाकर शीर्ष अदालत ने राज्य में केंद्र का शासन बहाल करते हुए वहां चल रहे राजनीतिक घटनाक्रम को नया मोड़ दे दिया था। अदालत ने 27 अप्रैल को इस रोक को अगले आदेशों तक के लिए बढ़ा दिया और केंद्र सरकार से पूछने के लिए सात सवाल भी तैयार किए। अदालत ने एजी को अन्य सवाल इसमें शामिल करने की छूट भी दी।

पीठ का पहला सवाल था- क्या राज्यपाल शक्ति परीक्षण के आयोजन के लिए अनुच्छेद 175 (2) के तहत मौजूदा तरीके से संदेश भेज सकते थे? पीठ ने यह भी पूछा कि क्या स्पीकर का विधायकों को अयोग्य करार देना संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए प्रासंगिक मुद्दा है। विधानसभा की कार्यवाही को न्यायिक जांच के दायरे से परे बताने वाली संवैधानिक व्यवस्था का हवाला देते हुए शीर्ष अदालत ने पूछा कि क्या राष्ट्रपति शासन लगाने के लिए सदन की कार्यवाही को आधार बनाया जा सकता है? अदालत का अगला सवाल था- राष्ट्रपति शासन की बात कब आती है? क्या शक्ति परीक्षण में देरी को राष्ट्रपति शासन लगाने का आधार बनाया जा सकता है?