वे भारतीय जनता पार्टी को आरक्षण विरोधी करार दे कर अपने उस वोट बैंक को दोबारा हासिल करने की कोशिशों में जुट गए हैं, जिन्हें 2014 के लोकसभा चुनाव में वो गवां चुके हैं। उधर भाजपा ने इस मसले पर आयोग गठित कर विपक्ष के किए कराए पर पानी फेर दिया है।
उत्तर प्रदेश को यदि जातिगत आरक्षण के लिहाज से देखा जाए तो यहां दलित मतदाता 25 फीसद, ब्राह्मण दस फीसद, क्षत्रिय दस फीसद अन्य अगड़ी जातियां पांच फीसद और पिछड़ी जातियां 35 फीसद हैं। दो दशक से अधिक समय से उत्तर प्रदेश में जातियों को साध कर सियासत करने वाली बहुजन समाज पार्टी और समाजवादी पार्टी के लिए लगातार हार के बाद निकाय चुनाव इस मतदाता बिरादरी को वापस हासिल करने की वो सीढ़ी है, जिसके बल पर वो 2024 के लोकसभा चुनाव में कुछ बड़ा हासिल करने का सपना पाले हैं।
चार-चार बार प्रदेश में सरकार बनाने वाली सपा और बसपा के हाथों से उनका पारंपरिक वोट बैंक छटक चुका है। इस बात का अहसास समाजवादी पार्टी के अध्यक्ष रहे मुलायम सिंह यादव और बसपा प्रमुख मायावती को बहुत पहले ही हो चुका था कि उनका पारंपरिक मतदाता उनसे दूर जाने लगा है। इस लिए दोनों ही राजनीतिक दलों के आकाओं ने प्रदेश की 17 अति पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने का वादा किया था, लेकिन मुलायम सिंह यादव और मायावती इन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करा पाने में नाकाम रहे।
मुलायम सरकार ने 2005 में इन जातियों को अनुसूचित जातियों में शामिल करने का आदेश जारी किया था लेकिन उनके इस फैसले पर उच्च न्यायालय ने रोक लगा दी थी। जिसके बाद इन जातियों को शामिल करने का प्रस्ताव केंद्र सरकार को भेजा गया लेकिन उसके पहले ही प्रदेश में 2007 में सरकार बदल गई और मायावती की सरकार आते ही इस प्रस्ताव पर रोक लगा दी गई।
अखिलेश सरकार में भी इन 17 जातियों से किए गए वादे पूरे नहीं हुए। दिसंबर 2016 में अखिलेश सरकार ने इन जातियों को अनुसूचित जातियों में शामिल करने की कवायद की। लेकिन नाकाम रहे। जिसकी वजह से 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव और 2017, 2022 के विधानसभा चुनाव में ये जातियां भारतीय जनता पार्टी के पाले में जा खड़ी हुई।
जिन 17 जातियों को अनुसूचित जाति में शामिल करने के वादे क्षेत्रीय दलों ने किए थे, उनमें कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिन्द, भर, राजभर, धीमर, बाथम, तुरहा, गोड़िया, मांझी और मछुआरे शामिल हैं। इस 17 जातियों की प्रदेश में कुल आबादी 13 फीसद है। ये 13 फीसद वोट किसी भी राजनीतिक दल को बड़े अंतर से जीत दिला पाने की कुव्वत रखता है। उत्तर प्रदेश में राजभर 1.32 फीसद, कुम्हार और प्रजापति 1.84 फीसद औैर गोंड 0.22 फीसद हैं।
इनके अलावा बाकी की 13 जातियां निषाद समुदाय से आती हैं। इनमें निषाद, बिन्द, मल्लाह, केवट, कश्यप, भर, धीवर, बाथम, मछुआरा, कहार, धीमर, मांझाी, और तुरहा जातियां मिला कर दस फीसद हैं। इन 17 जातियों को योगी आदित्यनाथ की सरकार ने अनुसूचित जातियों में शामिल करने की सिफारिश की है। उत्तर प्रदेश में 20.07 फीसद दलित आबादी है। जाटव, वाल्मीकि, धोबी, कोरी, पासी, चमार, धानुक समेत 66 उपजातियां हैं। इन्हें प्रदेश में 21 प्रतिशत आरक्षण मिल रहा है, जबकि अन्य पिछड़ी जातियों को प्रदेश में 27 फीसद आरक्षण मिल रहा है।
यदि मुसलिम ओबीसी को भी शामिल कर लिया जाए तो प्रदेश में ओबीसी की आबादी 52 फीसद है। इन जातियों को साधने की कोशिश में लगे अखिलेश यादव और मायावती निकाय चुनाव में भाजपा को आरक्षण विरोधी करार दे कर मतदाताओं की इस बिरादरी को जो कभी उनके साथ खड़ी थी, वापस हासिल करने की पुरजोर कोशिश में हैं। लेकिन वो ये भूल गए हैं कि 2014 में दोनों दलों का साथ छोड़ कर भाजपा के पाले में जा चुके अन्य पिछड़ा वर्ग के मतदाताओं को वापस ला पाना इतना आसान अब नहीं है।