अमेरिकी प्रशासन ने वर्ष 2019 के लिए प्रकाशित ‘अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट’ में नागरिकता संशोधन कानून (सीएए) और अनुच्छेद 370 पर भारत सरकार के फैसले पर हुए देशव्यापी विरोध-प्रदर्शनों का विस्तृत विवरण दिया है। अमेरिकी विदेश मंत्री माइकल आर पोम्पिओ द्वारा गुरुवार (11 जून) को जारी की गई इस रिपोर्ट में “धार्मिक रूप से प्रेरित भीड़, मॉब लिंचिंग और सांप्रदायिक हिंसा” का भी जिक्र किया गया है।
रिपोर्ट में कहा गया है, “भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सहित हिंदू-बहुसंख्यक दलों के कुछ अधिकारियों ने अल्पसंख्यक समुदायों के खिलाफ सोशल मीडिया पर भड़काऊ सार्वजनिक टिप्पणी या पोस्ट किए।” इस रिपोर्ट पर प्रतिक्रिया देते हुए भारत सरकार ने इसे सिरे से खारिज करते हुए इसे अमेरिकी सरकार की एक आंतरिक रिपोर्ट बताया है लेकिन साथ ही यह भी कहा है कि वाशिंगटन को कोई अधिकार नहीं है कि वो भारतीय मामले में कोई टिप्पणी करे।
पत्रकारों के सवाल का जवाब देते हुए विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अनुराग श्रीवास्तव ने कहा कि अमेरिकी विदेश विभाग ने 2019 की अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता रिपोर्ट प्रकाशित की है जो अमेरिकी संसद की विधायी आवश्यकता के लिए निकाला जाने वाला अमेरिका का आंतरिक दस्तावेज है। उन्होंने कहा है कि भारतीय नागरिकों के संविधान प्रदत्त अधिकारों के बारे में किसी विदेशी संस्था को बोलने का कोई अधिकार नहीं है।
श्रीवास्तव ने कहा, “भारत के जीवंत लोकतांत्रिक परंपराओं एवं व्यवहार से विश्व अच्छी तरह से परिचित है। भारत की सरकार एवं जनता देश की लोकतांत्रिक परंपराओं पर गर्व करते हैं। भारत में हमारे यहां सार्वजनिक विचार विनिमय की समृद्ध परंपरा है तथा संवैधानिक संस्थाएं एवं कानून धार्मिक स्वतंत्रता की सुरक्षा की गारंटी देता है।”
Coronavirus in India Live Updates:
उन्होंने कहा कि भारत का सैद्धांतिक रुख यह है कि हमारे नागरिकों के संविधान प्रदत्त अधिकारों के बारे में किसी विदेशी संस्था को कोई टिप्पणी करने का अधिकार नहीं है। अंतर्राष्ट्रीय धार्मिक स्वतंत्रता पर अमेरिकी कांग्रेस को अमेरिकी राज्य विभाग द्वारा सौंपी गई वार्षिक प्रतिवेदन में दुनिया के हर देश में धार्मिक स्वतंत्रता की स्थिति के बारे में उल्लेख किया गया है।
27 पन्नों की रिपोर्ट में कहा गया है, “दिसंबर में, (भारतीय) संसद ने नागरिकता संशोधन अधिनियम (CAA) पारित किया, जो अफगानिस्तान, बांग्लादेश और पाकिस्तान से आए हिंदू, सिख, बौद्ध, जैन, पारसी, और ईसाई प्रवासियों के लिए नागरिकता देने की वकालत करता है, जिन्होंने 31 दिसंबर, 2014 या उससे पहले देश में प्रवेश किया था लेकिन जो मुस्लिम, यहूदी, नास्तिक या अन्य धर्मों के प्रवासी सदस्य हैं, उन्हें यह सुविधा नहीं दी गई।”