सेना के ब्रिगेड कैंप पर हमले के बाद भारत बड़े पैमाने पर पलटवार करने की सोच रहा है। द इंडियन एक्सप्रेस को सरकार में सूत्रों ने बताया है कि ‘बदला’ लेने के लिए ‘निशानों’ की एक पूरी लिस्ट तैयार की जा रही है। इसमें लाइन ऑफ कंट्रोल के पास जिहादी मिलिट्री इंफ्रास्ट्रक्चर पर हमले से लेकर घुसपैठियों की मदद करने वाली पाकिस्तानी सेना की पोजिशंस भी शामिल हैं। सूत्रों के मुताबिक, रविवार सुबह राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहाकार अजीत डोभाल ने टॉप इंटेलिजेंस और सेना के अधिकारियों के साथ बैठक की, जहां उन्हाेंने प्रधानमंत्री के समक्ष रखे जाने वाले विकल्प मांगे। सेना के वरिष्ठ सूत्रों के मुताबिक, उत्तरी कमान ने एलओसी के जरिए घुसपैठ में मदद करने वाली पाकिस्तानी सेना की पोजिशंस को स्पेशल फोर्सेज के जरिए निशाना बनाने की योजना बनानी शुरू कर दी है। नई दिल्ली एलओसी के पार चल रहे ट्रेनिंग कैंपों, उरी हमले के जिम्मेदार कमांडर्स को निशाना बनाने के लिए खुफिया सेवाओं की मदद लेने की भी सोच रही है।
रविवार को हुई बैठक में इंटेलिजेंस ब्यूरो (IB), रिसर्च एंड एनालिसिस विंग (RAW) और डायरेक्टरेट जनरल ऑफ मिलिट्री ऑपरेशंस (DGMO) के प्रतिनिध मौजूद रहे। एक टॉप मिलिट्री कमांडर ने द इंडियन एक्सप्रेस को बताया- ”हम अपने सैनिकों की हत्या का बदला जरूर लेंगे लेकिन पेशेवर सैन्य मूल्यांकन के बाद और अपने हिसाब से तय किए गए समय पर। राजनीतिक मजबूरियों या प्राइम-टाइम न्यूज साइकिल के दबाव में नहीं।” उरी हमले पर मिले जानकारी की समीक्षा के लिए खुफिया सेवाओं की कई बैठकें सोमवार को होनी हैं। सूत्रों ने कहा कि डिफेंस इंटेलिजेंस एजेंसी ने ऐसी बातचीत पकड़ी जिसके बाद DGMO ने कहा कि हमला जैश-ए-मोहम्मद ने किया था। जैश ने ही इस साल 2 जनवरी को पठानकोट स्थित एयर फोर्स बेस पर भी हमला किया था।
[jwplayer dX6GMnzQ]
उरी हमले से जुड़ी सभी खबरें पढ़ने के लिए क्लिक करें
हालांकि, उरी में हमला शुरू होने के कुछ घंटों के भीतर पकड़ी गई जिहादी बातचीत के आधार पर, माना जा रहा है कि आईबी और भारतीय सेना के XV corps ने सरकार को बताया है कि हमले में लश्कर-ए-तैयबा का भी हाथ हो सकता है। आतंकियों ने कहां सीमा पार की, इसके बाद में श्रीनगर में सेना के सूत्रों का मानना है कि ये आतंकी सप्ताहांत में हाजी पीर पास से आए होंगे। सूत्रों के अनुसार, अजीत डोभाल द्वारा की जा रही है तैयारियां 2008 में 26/11 मुंबई आतंकी हमलों के बाद की सबसे बड़ी तैयारी है। तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर में लश्कर-ए-तैयबा के कैंपों पर हवाई और मिसाइल हमले करने की सोची थी, लेकिन बाद में उन्होंने विचार त्याग दिया क्योंकि सेना और खुफिया सेवाओं ने कहा कि वे सफलता की गारंटी नहीं ले सकतीं।