नागरिकता संशोधन कानून को लेकर पूरे देश में विरोध प्रदर्शन हो रहे हैं। ऐसे में मशहूर व्यंग्यकार और उर्दू लेखक मुजतबा हुसैन ने बुधवार (18 दिसंबर) को अपना पद्मश्री पुरस्कार लौटाने का फैसला किया। बता दें कि 87 वर्षीय हुसैन हास्य व्यंग्य पर आधारित करीब 25 किताबें लिख चुके हैं। वहीं, कई दशक से उर्दू व्यंग्य का चेहरा हैं। उन्होंने देश में लोकतांत्रिक महत्व के कम होने की बात कही। साथ ही, कहा कि आज देश के हालात खुश होने लायक नहीं हैं।
हुसैन ने कही यह बात: मुजतबा हुसैन ने इंडियन एक्सप्रेस को बताया, ‘‘मैंने पूरे जीवन में व्यंग्य लिखे, लेकिन मुझे लगता है कि आज मैं हंस नहीं सकता हूं। यकीनन मैं हंसने की स्थिति में नहीं हूं। गरीब आदमी की मुस्कान छिन गई है। किसान आत्महत्या कर रहे हैं। मैं देखता हूं कि आम आदमी तनाव में है। हर कोई परेशान है। ऐसे में मैं हंस नहीं सकता हूं।’’
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इन घटनाओं के गवाह हैं हुसैन: बता दें कि हास्य रस के लेखक मुजतबा हुसैन द्वितीय विश्व युद्ध व भारत-पाक विभाजन के गवाह हैं। उन्होंने कहा, ‘‘अतीत में हुईं उन घटनाओं से वर्तमान की तुलना नहीं की जा सकती है। गांधी, नेहरू, मौलाना आजाद व आंबेडकर जैसे हमारे पूर्वजों ने हमें आजादी और संविधान दिया। इसके बाद लोकतंत्र को फलने-फूलने में इतने साल लग गए, लेकिन इस वक्त इन सभी को नकार दिया गया है।’’
व्यंग्यकार ने यूं बयां किए अपने जज्बात: मुजतबा हुसैन ने अपने बेचैनी व्यक्त करते हुए कहा, ‘‘आज धर्म के नाम पर लोगों को बांटा जा रहा है। हर दूसरे कानून को लागू करने की जल्दबाजी क्यों है? यहां एकता पर कम और बांटने पर बातें ज्यादा हो रही हैं। कोई भी एकता पर बात नहीं करना चाहता। हर किसी के दिमाग में नफरत पनप रही है। हमारा देश इसे कबूल नहीं करेगा। गंगा-जमुनी तहजीब इस देश की प्रकृति है। मुझे उम्मीद है कि यह बरकरार रहेगी।’’
बाबरी विध्वंस से नहीं कर सकते बराबरी: उर्दू लेखक ने कहा कि बाबरी मस्जिद विध्वंस से आज हो रहे लोकतांत्रिक महत्व के विध्वंस की बराबरी नहीं कर सकते हैं। यह जितनी शांति व जल्दबाजी से किया जा रहा है, वह दुखद है। बता दें कि उर्दू साहित्य की हास्य शैली में योगदान के लिए मुजतबा हुसैन को 2007 में तत्कालीन राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम ने देश चौथा सर्वोच्च नागरिक पुरस्कार पद्मश्री दिया था।