Export to America: उत्तर प्रदेश अब अमेरिका को हथियारों की सप्लाई करने वाला पहला राज्य बनने जा रहा है। यहां 100 साल बाद फिर वेब्ले-455 का निर्माण होगा। इसके लिए भारत में वेब्ले बनाने के लिए स्याल मैन्यूफैक्चरर प्राइवेट लिमिटेड के साथ समझौता किया गया है। पहले इसका निर्माण ब्रिटेन में किया जाता था। यह हथियार एंटीक रिवॉल्वर की कैटेगरी में आता है। पिछले दिनों ही अमेरिका ने इसके 10 हजार पीक का ऑर्डर दिया था। अमेरिका के अलावा ब्राजील और यूरोपीय देशों में भी इसकी भारी मांग है।

भारत में बैन है यह हथियार

वेब्ले रिवॉल्वर 100 साल से भी अधिक पुरानी है। जब भारत में ईस्ट इंडिया कंपनी आई तो वह इसे यूरोप से अपने साथ यहां ले आई। यह हथियार भारत में बैन है। वेब्ले स्काट इंडिया के निदेशक मनिंदर स्याल ने बताया कि भारत में 455 बोर की रिवाल्वर प्रतिबंधित है लेकिन अमेरिका में वेब्ले-455 की भारी मांग है। इसे देखते हुए यूपी में पहली बार अमेरिका को करीब 10 हजार वेब्ले-455 का निर्यात किया जाएगा। इसके निर्माण के लिए लाइसेंस जल्द जारी हो जाएगा।

क्या है इस हथियार का इतिहास

ब्रिटिश राज में इस हथियार का निर्माण 1887 में शुरू हुआ था। पहली बार इसे ग्लोबल कंपनी वेब्ले ने बाजार में उतारा था। 1924 तक इसका निर्माण होता रहा। इसके बाद निर्माण बंद कर दिया गया। दूसरे विश्व में भी इसका इस्तेमाल किया गया। अब एक बार फिर भारत में वेब्ले ने स्याल मैन्यूफैक्चर प्राइवेट लिमिटेड के साथ समझौता किया है। कंपनी के निदेशक मनिंदर स्याल का कहना है कि वेब्ले ने यूपी को अपना मुख्यालय बना लिया है। इसके निर्माण के साथ ही अमेरिका का बाजार भी अब भारत के लिए खुल गया है।

क्या है इसकी खासियत

भारत में जब इस रिवॉल्वर का निर्माण शुरू किया गया तो 1924 तक इसके 1.25 लाख से अधिक पीस बनाए गए। इसका इस्तेमाल 1963 तक जारी रहा। 1.1 किलो की इस रिवॉल्वर की लंबाई 11.25 इंच है। इसके बैरल की लंबाई 6 इंच होती है। इससे एक मिनट में 20 से 30 राउंड फायर किए जा सकते हैं। इसकी इफेक्टिव रेंज 46 मीटर बताई जाती है। इस रिवॉल्वर का इस्तेमाल प्रथम और द्वितीय विश्व युद्ध में हो चुका है। इसके अलावा वियतनाम, कोरिया, इंडोनेशिया से लेकर भारत-चीन युद्ध में भी इसका इस्तेमाल हो चुका है।