आईआईटी मद्रास के प्रोफेसर्स ने जेएनयू विवाद पर राष्ट्रपति प्रणव मुखर्जी को खत लिखकर चिंता जताई है। साथ ही कहा गया है कि देश में उच्च शिक्षा के संस्थानों को ‘युद्ध क्षेत्रों’ में बदला जा रहा है। विरोध के नाम पर देश को बर्बाद व तोड़ने की बातें स्वीकार नहीं की जा सकती। आईआर्इटी मद्रास के 56 फैकल्टी सदस्यों ने कहा कि शैक्षणिक संस्थानों को छात्रवृत्ति के दुरुपयोग और घृणा से बचाने की जरूरत है। उन्होंने राष्ट्रपति से दखल देने की अपील की है।
पत्र में लिखा है,’अकादमिक स्वायत्ता के नाम पर गुस्सैल छात्रों को विचारधारा की लड़ाई नहीं छेड़नी चाहिए। साथ ही संस्थान का कैंपस भी समाज के नियमों के विपरीत घृणास्पद और लड़ाकू अभिव्यक्ति वाला नहीं हो सकता। विरोध के नाम पर देश को तोड़ने और बर्बाद करने की बात स्वीकार्य नहीं है, फिर चाहे वो यूनिवर्सिटी ही क्यों न हो। देश के कुछ अकादमिक लोग, राजनेता और मीडिया का एक हिस्सा उच्च शिक्षा के संस्थानों को युद्ध क्षेत्र बनाने में लगा हुआ है। हमें यह देखकर चिंता होती है।’
पत्र में आगे लिखा गया,’हम बौद्धिक स्वतंत्रता का समर्थन करते हैं। हमारा मानना है कि वैकल्पिक मत लोकतंत्र के लिए जरूरी है। हालांकि अकादमिक स्वतंत्रता का गलत मतलब निकालकर कैंपस के माहौल को दूषित किया जा रहा है।’ आईआईटी मद्रास के एक प्रोफेसर श्रीपद कर्मालकर ने बयान में बताया कि राष्ट्रपति से इस मामले में दखल देने को कहा गया है।