राष्ट्रीय शिक्षा नीति (एनईपी)-2020 में महत्त्वपूर्ण प्रावधान ‘एकेडमिक बैंक आफ क्रेडिट’ (अकादमिक अंक हस्तांतरण) योजना को लागू करने में विश्वविद्यालय आनाकानी कर रहे हैं। केंद्रीय शिक्षा मंत्रालय की वेबसाइट पर उपलब्ध सूचना के मुताबिक देश के करीब 1,100 विश्वविद्यालयों में से केवल 288 विश्वविद्यालय ही क्रेडिट हस्तांतरण की सुविधा विद्यार्थियों को उपलब्ध करा रहे हैं।
दूसरे शब्दों में कहें तो देश के 74 फीसद विश्वविद्यालयों ने क्रेडिट हस्तांतरण की सुविधा शुरू ही नहीं की है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) की ओर से ‘एकेडमिक बैंक आफ क्रेडिट’ योजना को सक्रिय रूप से लागू करने के लिए लगातार विश्वविद्यालयों को कहा जा रहा है।
एनईपी-2020 के प्रावधानों के मुताबिक हर विद्यार्थी अपनी मर्जी के मुताबिक पढ़ाई कर सकता है। मान लीजिए कोई विद्यार्थी अपनी स्रातक की पढ़ाई पहले साल के बाद ही छोड़ देता है तो उसके द्वारा पढ़े गए विषयों के क्रेडिट ‘एकेडमिक बैंक आफ क्रेडिट’ में जमा रहेंगे और जब कभी वह विद्यार्थी अपनी पढ़ाई फिर से शुरू करना चाहता है तो वह उन क्रेडिट का उपयोग कर सकता है। इसके अलावा एक विश्वविद्यालय में पढ़ने वाला विद्यार्थी कोई एक पेपर किसी अन्य विश्वविद्यालय से करना चाहता है तो यह भी तभी संभव है जबकि सभी विश्वविद्यालय ‘एकेडमिक बैंक आफ क्रेडिट’ से सक्रिय रूप से जुड़े हों। लेकिन ऐसा नहीं हो पा रहा है।
शिक्षा मंत्रालय के उच्च शिक्षा पर अखिल भारतीय सर्वेक्षण (एआइएसएचई) 2020-2021 के मुताबिक देश में 4.14 करोड़ विद्यार्थी उच्च शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। वहीं, ‘एकेडमिक बैंक आफ क्रेडिट’ की वेबसाइट के मुताबिक अभी तक केवल 1.37 करोड़ विद्यार्थियों की ही ‘एकेडमिक बैंक आफ क्रेडिट’ पर आइडी बनी है। यह वेबसाइट आंकड़ों का लगातार अपडेट करती है। इस वेबसाइट के मुताबिक देश के 1469 उच्च शिक्षण संस्थान ‘एकेडमिक बैंक आफ क्रेडिट’ से जुड़ गए हैं लेकिन इनमें से ज्यादातर ने अभी अपने विद्यार्थियों की आइडी ही नहीं बनाई है।
‘एकेडमिक बैंक आफ क्रेडिट’ की वेबसाइट के मुताबिक 52 केंद्रीय विश्वविद्यालयों ने ‘एकेडमिक बैंक आफ क्रेडिट’ को अपनाया है लेकिन केवल 18 विश्वविद्यालयों ने ही विद्यार्थियों की आइडी बनाई है। इन 18 में से अलीगढ़ मुसलिम विश्वविद्यालय (एएमयू) ने केवल एक विद्यार्थी की ही ‘एकेडमिक बैंक आफ क्रेडिट’ आइडी बनाई है जबकि एएमयू में 35 हजार से अधिक विद्यार्थी पढ़ रहे हैं।
इसी तरह बनारस हिंदू विश्वविद्यालय में पढ़ रहे 38 हजार से ज्यादा विद्यार्थियों में से केवल 138 विद्यार्थियों की ही आइडी बनाई है। केंद्रीय गुजरात विश्वविद्यालय ने केवल दो विद्यार्थियों, नगालैंड विश्वविद्यालय ने 113 विद्यार्थियों और अंग्रेजी एवं विदेशी भाषा विश्वविद्यालय-हैदराबाद ने 34 विद्यार्थियों की ही आइडी बनाई है। डीयू और इग्नू ने किया बेहतर काम
‘एकेडमिक बैंक आफ क्रेडिट’ को लागू करने में दिल्ली विश्वविद्यालय (डीयू) और इंदिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विश्वविद्यालय (इग्नू) ने अच्छा काम किया है। इग्नू ने 3,23,384 विद्यार्थियों और डीयू ने 44,028 विद्यार्थियों की आइडी बना दी है। अगरतला विश्वविद्यालय ने अपने कुल 34,972 विद्यार्थियों में से 11,041 की आइडी तैयार कर दी है।
एकेडमिक बैंक आफ क्रेडिट एक ‘वर्चुअल स्टोर-हाउस’ है, जो हर विद्यार्थी के डेटा का रिकार्ड रखेगा। इसके लिए कालेज और विश्वविद्यालय को ‘एकेडमिक बैंक आफ क्रेडिट’योजना में अपना पंजीकरण करना होगा। इसके बाद वहां पढ़ने वाले हर विद्यार्थी का डेटा जमा होना शुरू हो जाएगा।
ढांचागत सुविधाओं की कमी
बड़ी संख्या में विश्वविद्यालयों का कहना है कि उनके यहां पर ‘एकेडमिक बैंक आफ क्रेडिट’ को सही तरह से लागू करने की ढांचागत सुविधाओं की कमी है। पश्चिम बंगाल की जादवपुर विश्वविद्यालय के एक अधिकारी के मुताबिक उनके विश्वविद्यालय में अभी यह तय नहीं हुआ है कि स्रातक पाठ्यक्रम के विद्यार्थियों को किस साल में ‘बाहर’ आने का अवसर दिया जाएगा।
इसके अलावा उन्होंने बताया कि उनके विश्वविद्यालय में इसे लागू करने के लिए पर्याप्त सुविधाएं भी नहीं है। कुछ विश्वविद्यालयों ने अभी तक अपनी कार्यकारी समिति और विद्वत समिति में इस प्रस्ताव को पास नहीं किया है जिसकी वजह से उन विश्वविद्यालयों में ‘एकेडमिक बैंक आफ क्रेडिट’ अभी तक लागू नहीं हुआ है।