ब्रह्मांड हर पल फैल रहा है। यह सिद्धांत आइंस्टीन ने प्रतिपादित किया था। हालांकि, इस बात का सटीक प्रमाण नहीं मिला था। आस्ट्रेलिया के दो वैज्ञानिकों ने बिग बैंग के सबसे करीब पहुंच कर इसे साबित कर दिया है। ‘क्वेजर्स’ यानी शुरुआती आकाशगंगाओं के केंद्र में पाए जाने वाले गैस के चमकते विशाल अंधकूप (ब्लैक होल) होते हैं।

आस्ट्रेलिया की सिडनी यूनिवर्सिटी में पढ़ाने वाले प्रोफेसर जेरायंट लुईस ने इन रहस्यमयी आकाशीय पिंडों के एक राज का पता लगाया है। ‘क्वेजर्स’ को प्रोफेसर लुईस ने घड़ी के तौर पर इस्तेमाल किया और ब्रह्मांड के शुरुआती वक्त का पता लगाया। नासा के अनुसार, ‘क्वेजर’ बहुत अधिक चमक वाली एक खगोलीय वस्तु है जो कुछ आकाशगंगाओं के केंद्रों में पाई जाती है और एक अत्यंत बड़े ब्लैक होल में उच्च वेग से संचालित होती है। ये हमारी आकाशगंगा के संपूर्ण ऊर्जा उत्पादन से सैकड़ों या हजारों गुना अधिक ऊर्जा उत्सर्जित करने में सक्षम हैं।

वैज्ञानिक अल्बर्ट आइंस्टाइन की ‘जनरल थ्योरी आफ रिलेटिविटी’ के मुताबिक, ब्रह्मांड के शुरुआत के वक्त की गति हमें आज बहुत धीमी नजर आएगी। लेकिन समय में उतना पीछे जा पाना संभव नहीं हो पाया है, इसलिए आइंस्टाइन की कही बात का कोई ठोस प्रमाण उपलब्ध नहीं था। अब ‘क्वेजर्स’ को घड़ी की तरह इस्तेमाल कर वैज्ञानिकों ने इस पहेली को सुलझाने की कोशिश की है। ‘सिडनी इंस्टीट्यूट फार एस्ट्रोनामी’ के प्रोफेसर जेरायंट लुईस की यह खोज इस दिशा में अहम मानी जा रही है।

जेरायंट लुईस अपनी शोध रपट में कहते हैं, जब ब्रह्मांड की उम्र कोई एक अरब साल रही होगी, तो हम पाएंगे कि समय पांच गुना धीमा था। अगर आप उस शिशु ब्रह्मांड में होते तो एक सेकंड आपको एक सेकंड जितना ही लगता, लेकिन अब 12 अरब साल दूर से देखें तो वह पांच गुना ज्यादा लंबा नजर आएगा।

यह शोध पत्र ‘नेचर एस्ट्रोनामी’ नामक पत्रिका में प्रकाशित हुआ। इस शोध में प्रोफेसर लुईस के साथ आकलैंड विश्वविद्यालय के डा ब्रेंडन ब्रूअर थे। उन्होंने करीब दो सौ ‘क्वेजर्स’ से मिले आंकड़ों का अध्ययन किया। प्रोफेसर लुईस के मुताबिक, आइंस्टाइन की वजह से हम जानते हैं कि समय और दूरी आपस में जुड़े हुए हैं।

बिंग बैंग के साथ समय की शुरुआत होने से ही ब्रह्मांड लगातार फैल रहा है। यह विस्तार बताता है कि आज से जब हम ब्रह्मांड की शुरुआत को नापेंगे तो वह बहुत धीमा चलता नजर आएगा। अपने शोध में हमने बिग बैंग के एक अरब साल बाद को लेकर यह स्थापित किया है। पहले भी खगोलविद समय के इस अंतर को स्थापित करते रहे हैं, लेकिन अब तक वे ब्रह्मांड की आधी आयु यानी लगभग छह अरब साल पहले तक ही पहुंच पाए थे।

इसके लिए अब तक सुपरनोवा यानी विस्फोट से गुजर रहे सितारों को घड़ी की तरह इस्तेमाल किया गया था। हालांकि सुपरनोवा बहुत अधिक चमकदार होते हैं, लेकिन उन्हें इतनी दूरी से देख पाना मुश्किल होता है। इस शोध के लिए वैज्ञानिकों ने 190 ब का दो दशकों से ज्यादा समय तक अध्ययन किया है। उन्होंने हरे, लाल और इंफ्रारेड में अलग-अलग प्रकाश रंगों की वेवलेंथ का आकलन किया और ‘क्वेजर्स’ के एक-एक पल को नापा। नए आंकड़ों और विश्लेषण से यह साबित हो गया है कि आइंस्टाइन ने जो अनुमान लगाया था, वह सही था।