काम के बोझ का हवाला देते हुए हाल ही में चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने जजों की कमी को लेकर जो आंकड़ा दिया था, देश के कानून मंत्री उससे सहमत नहीं हैं। डीवी सदानंद गौड़ा का कहना है कि सीजेआई की ओर से की गई डिमांड की पुष्टि के लिए किसी तरह का वैज्ञानिक या प्रयोगसिद्ध आंकड़ा नहीं है। गौड़ा ने कहा कि जस्टिस ठाकुर जिस रिपोर्ट का हवाला देते हुए कह रहे हैं कि देश में 40 हजार जजों की जरूरत है, उसका आधार कोई साइंटिफिक रिसर्च नहीं है और वे जजों की कमी से जुड़े वास्तविक संख्या को लेकर किसी तरह की टिप्पणी नहीं करना चाहते।
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बता दें कि बीते 24 अप्रैल को सीजेआई ने सरकार से एक भावनात्मक अपील में कहा था कि न्यायपालिका में जजों की कमी से जल्द से जल्द निपटा जाए। ठाकुर ने यह भी कहा था कि सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ जैसे बड़े अभियानों की कामयाबी के लिए ऐसा होना जरूरी है। जस्टिस ठाकुर ने जब ये बातें कहीं थीं तो उस वक्त कार्यक्रम में पीएम नरेंद्र मोदी और कानून मंत्री भी मौजूद थे। सीजेआई के मुताबिक, देश में याचिकाओं की बाढ़ से निपटने के लिए देश में कम से कम 40 हजार जजों की जरूरत है।
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बुधवार को कानून मंत्री मोदी सरकार के दो साल के मौके पर एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित कर रहे थे। इसी मौके पर सीजेआई के बयान का जिक्र हुआ। सवाल पूछा गया कि क्या सरकार कभी 40 हजार जजों (निचली अदालतों से लेकर हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट) के लक्ष्य को छू पाएगी? गौड़ा ने कहा कि लॉ कमीशन ने 1987 में जो रिपोर्ट दी थी, वो कुछ एक्सपर्ट और जनता की राय पर आधारित थी। कानून मंत्री ने कहा, ‘रिपोर्ट में खुद उन्होंने कहा था कि इस बात का आकलन वैज्ञानिक डेटा के आधार पर किए जाने की जरूरत है। लेकिन कोई वैज्ञानिक डेटा उपलब्ध नहीं था। यहां तक कि हाल ही में इम्तियाज अली केस में सुप्रीम कोर्ट ने लॉ कमीशन को एक बार फिर इस मामले पर ध्यान देने को कहा है। उन्होंने फिर से कहा कि यह तब तक संभव नहीं है कि जब तक हमें साइंटिफिक डेटा न मिले।’
गौड़ा ने यह भी कहा कि देश में जजों की जरूरत कोर्ट पर काम के दबाव पर निर्भर करता है न कि जज और आबादी के अनुपात पर। गौड़ा के मुताबिक, सुप्रीम कोर्ट और हाई कोर्ट में जजों की रिक्तियों को भरने के लिए सरकार ने कोशिशें तेज की हैं।
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