देश में यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर माहौल बनने लगा है। जिस विवाद पर पहले सिर्फ मंथन रहता था, अब चर्चा काफी आगे बढ़ चुकी है। माना जा रहा है कि इस मॉनसून सत्र में मोदी सरकार यूनिफॉर्म सिविल कोड पर बिल ला सकती है। अगर ऐसा होता है तो ये देश की सियासत में एक बड़ा नाटकीय मोड़ साबित होने वाला है। लेकिन सवाल ये उठता है कि क्या लोकसभा और राज्यसभा में बीजेपी को UCC पर पर्याप्त समर्थन मिल सकता है?
अब इसका सबसे आसान जवाब तो लोकसभा और राज्यसभा के नंबर गेम को जान दिया जा सकता है। लेकिन पहले कई दलों की सियासी विचारधारा को समझना भी जरूरी है। ये विचारधारा ही वो फैक्टर है जो बीजेपी को यूसीसी पर या तो बड़ा झटका दे सकती है या फिर एक बड़ी राहत। ऐसे में तमाम पार्टियों का यूसीसी पर क्या रुख है, ये जानना पड़ेगा।
UCC पर कांग्रेस की विचारधारा और नेहरू का स्टैंड
देश की सबसे पुरानी पार्टी कांग्रेस यूनिफॉर्म सिविल कोड को लेकर कन्फ्यूज कही जा सकती है। इसका कारण ये है कि पार्टी के अंदर ही कई ऐसे गुट हैं जो यूसीसी का समर्थन करते हैं, वहीं कई लोग ऐसे भी सामने आए हैं जो पूरी तरह इस कानून के विरोध में हैं। यानी कि पार्टी सामने से आकर तो जरूर खिलाफ में बयान दे रही है, लेकिन कुछ नेता अंदरखाने इस बिल का स्वागत कर रहे हैं।
उदाहरण के लिए हिमाचल प्रदेश में कांग्रेस सरकार में मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने यूसीसी को अपनी तरफ से पूरा समर्थन दे दिया है। साफ कहा गया है कि वे इस पहल को पसंद कर रहे हैं। अब सेफ खेलते हुए अगले ही बयान में उनकी तरफ से मोदी सरकार की टाइमिंग पर जरूर सवाल उठा दिया गया है। दूसरी तरफ बात जब कांग्रेस महासचिव जयराम रमेश की आती है, उन्होंने दो टूक कहा है कि यूनिफॉर्म सिविल कोड की ना जरूरत है ना ही कोई वर्तमान में इसकी इच्छा रखता है। वहीं अभिषेक मनु सिंघवी का तर्क रहता है कि लोगों में ऐसी धारणा नहीं बननी चाहिए कि अल्पसंख्यकों पर हिंदुओं के कानून लागू कर दिए जाएंगे। अब ये स्टैंड बताने के लिए काफी है कि एक ही पार्टी यूसीसी के समर्थन में भी है, विरोध में भी खड़ी है और कुछ शंकाएं भी जाहिर कर रही है।
वैसे ये तो अभी की कांग्रेस है जो यूनिफॉर्म सिविल कोड पर ज्यादा विरोध करती दिख रही है। बात अगर देश के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू की जाए, तो पता चलता है कि वे यूनिफॉर्म सिविल कोड के सिद्धांत के खिलाफ नहीं थे। एक समय देश के पहले कानून मंत्री डॉक्टर भीम राव आंबेडकर के उस विचार से नेहरू भी सहमत थे जहां यूसीसी लाने की बात कही गई थी। लेकिन उस समय क्योंकि संविधान सभा यूसीसी के लिए तैयार नहीं थी, ऐसे में भारी विरोध हुआ और यूनिफॉर्म सिविल कोड कानून बनने से रह गया।
विपक्षी एकता के कप्तान नीतीश, UCC पर क्या रुख?
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार इस समय विपक्षी एकता में व्यस्त चल रहे हैं। लेकिन बात जब यूसीसी की आती है, उनकी पार्टी ने कभी भी इसका खुले तौर पर विरोध नहीं किया है। खुद नीतीश कुमार ने एक बयान में कहा था कि यूसीसी को तो लोगों के लिए रीफॉर्म के तौर पर देखा जाना चाहिए, उन्होंने सिर्फ इतनी अपील की थी कि इसे जल्दबाजी में लागू ना किया जाए। अब उसी तर्ज पर जेडीयू नेता केसी त्यागी ने कह दिया है कि उनकी पार्टी यूसीसी का विरोध नहीं करती है, बस एक मांग है कि सभी को साथ लेकर चला जाए। यानी अगर संसद में इस मुद्दे पर उचित मंथन हो जाए, सरकार अपने तर्क समझाने में कामयाब हो जाए, उस स्थिति में शायद जेडीयू भी विपक्ष को कोई बड़ा सरप्राइज दे सकती है।
आम आदमी पार्टी और उद्धव गुट का मिला समर्थन
अब जेडीयू को लेकर तो अभी संशय की स्थिति है, लेकिन माना जा रहा है कि इस बार यूनिफॉर्म सिविल कोड पर आम आदमी पार्टी मोदी सरकार को सपोर्ट कर सकती है। ऐसा इसलिए क्योंकि पार्टी ने खुद ही साफ कर दिया है कि वो इस विचार के खिलाफ नहीं है। आप नेता संदीप पाठक ने कह दिया है कि पार्टी सैद्धांतिक तौर पर यूसीसी का समर्थन करती है, मानती है कि इसे लागू होना चाहिए। कुछ दूसरे दल की तरफ आप ने भी सभी के साथ चर्चा की बात जरूर कर दी है। उद्धव गुट भी इस समय बीजेपी से खफा चल रहा है, लेकिन यूसीसी पर समर्थन देने की बात कर गया है। ये नहीं भूलना चाहिए कि बालासाहेब ठाकरे यूनि्फॉर्म सिविल कोड के एक बड़े पक्षधर थे।
लेफ्ट पार्टियों की बात करें तो उनके विरोध के अपने कारण हैं। एक तरफ वे मानकर चल रहे हैं कि यूसीसी के जरिए एक विशेष समुदाय को टारगेट किया जा सकता है, वहीं ये भी कहना है कि जो काम संसद में होना चाहिए, लॉ कमिशन का हस्तक्षेप होना ठीक नहीं। इसी कड़ी में आरजेडी, टीएमसी भी यूनिफॉर्म सिविल कोड के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद कर रही है।
लोकसभा में सब ठीक, राज्यसभा ना बिगड़ दे बीजेपी का खेल
अब तमाम पार्टियों की विचारधारा की बात तो हो गई, लेकिन लोकसभा और राज्यसभा में क्या समीकरण बैठने वाले हैं, ये समझना भी जरूरी है। लोकसभा में बीजेपी के पास पूर्ण बहुमत है, 300 से ज्यादा का आंकड़ा साथ है। ऐसे में काफी आसानी से यूसीसी बिल को पारित करवाया जा सकता है। लेकिन सारा खेल राज्यसभा में जाकर फंसता है जहां पर बीजेपी के पास अपने दम पर बहुमत नहीं है, उसके सहयोगी दलों को भी मिला दिया जाए तो भी जादुई आंकड़ा नहीं पहुंचता। इसी वजह से राज्यसभा में बीजेपी की जुगाड़ू पॉलिटिक्स की असली परीक्षा होने जा रही है।
असल में राज्यसभा में इस समय कुल सदस्यों की संख्या 237 चल रही है, ऐसा इसलिए है क्योंकि आठ सीटें रिक्त पड़ी हैं। इसी वजह से बहुमत का आंकड़ा भी 119 पर चल रहा है, यानी कि अगर कोई भी बिल पारित करवाना है, तो इतना समर्थन तो जुटाना ही पड़ेगा। अब यूसीसी पर बीजेपी को ज्यादा से ज्यादा 108 सदस्यों का समर्थन मिल सकता है। अब कुछ दिन पहले की बात करते तो ये आंकड़ा 109 रहता क्योंकि बीजेपी के पास राज्यसभा में तब 92 सदस्य थे। लेकिन हाल ही में क्योंकि सांसद हरद्वार दुबे का निधन हो गया, ऐसे में एक सीट कम हो गई।
विपक्ष ही ना लगा दे बीजेपी की नैया पार!
अब सिंपल गणित ये कहती है कि बीजेपी को किसी भी तरह 11 और सांसदों का समर्थन चाहिए, उसी स्थिति में यूनिफॉर्म सिविल कोड लागू हो पाएगा। लेकिन ये समर्थन आएगा कहां से? इस समय आम आदमी पार्टी और उद्धव गुट ने कह दिया है कि वो यूसीसी का समर्थन करते हैं। ऐसे में अगर AAP के 10 सांसद बीजेपी को सपोर्ट कर जाते हैं और उद्धव की शिवसेना के भी 3 सांसद साथ आ जाते हैं तो यूनिफॉर्म सिविल कोड कानून बन जाएगा।
इसी तरह अगर आम आदमी पार्टी और उद्धव गुट के बजाय बीजेपी को नवीन पटनायक की बीजेडी और रेड्डी की YSR कांग्रेस का सपोर्ट मिल जाता है, तब भी यूसीसी आसानी से हकीकत बन जाएगा। इस समय राज्यसभा में दोनों YSR कांग्रेस और बीजेडी के पास 9-9 सांसद हैं, यानी कि कुल आंकड़ा 18 पहुंच रहा है। बीजेपी को बहुमत के लिए सिर्फ 11 का आंकड़ा चाहिए, ऐसे में ये पार्टी के लिए सबसे अनुकूल स्थिति साबित हो सकती है। बीजेपी इन दो पार्टियों का समर्थन इसलिए भी चाहती है क्योंकि कई बड़े फैसलों के दौरान इन दोलों ने विपक्षी एकता से इतर समर्थन दिया है।
क्या जेडीयू भी कर सकती है समर्थन?
वैसे कुछ ऐसे भी समीकरण बन सकते हैं, जिनकी उम्मीद कम है, लेकिन उन्हें पूरी तरह नकारा भी नहीं जा सकता। असल में जेडीयू पूरी तरह यूसीसी के खिलाफ नहीं है, वो बस चर्चा चाहती है। ऐसे में अगर वो संसद में हुई चर्चा से संतुष्ट हो जाती है, तो उस स्थिति में जेडीयू के 5 सांसदों का समर्थन मिल सकता है, यानी कि पार्टी को किसी तरह 6 और सांसदों की जरूरत पड़ेगी। तब आम आदमी पार्टी के अकेले 10 सांसद भी वो काम पूरा कर सकते हैं। वहीं अगर बीजेडी अकेले समर्थन कर दे, तब भी बीजेपी के लिए स्थिति मुफीद बन सकती है।
ऐसे में अगर यूनिफॉर्म सिविल कोड सही मायनों में दोनों सदनों से पारित हो जाता है तो कहा जा सकता है कि बीजेपी की जुगाड़ू पॉलिटिक्स ने विपक्षी एकता में जबरदस्त सेंधमारी की है। उस स्थिति में अरविंद केजरीवाल से लेकर उद्धव ठाकरे तक, कई नेता अपने विपक्षी साथियों के निशाने पर आ सकते हैं।
क्या है यूनिफॉर्म सिविल कोड?
यूनिफॉर्म सिविल कोड को हिंदी में समान नागरिक संहिता कानून कहते हैं। अपने नाम के मुताबिक अगर ये किसी भी देश में लागू हो जाए तो उस स्थिति में सभी के लिए समान कानून रहेंगे। अभी भारत में जितने धर्म, उनके उतने कानून रहते हैं। कई ऐसे कानून हैं जो सिर्फ मुस्लिम समुदाय पर लागू होते हैं, ऐसे ही हिंदुओं के भी कुछ कानून चलते हैं। लेकिन यूनिफॉर्म सिविल कोड के आने से ये सब खत्म हो जाता है, जाति-धर्म से ऊपर उठकर सभी के लिए समान कानून बन जाता है।
यूनिफॉर्म सिविल कोड के पक्ष-विपक्ष में क्या तर्क?
यूनिफॉर्म सिविल कोड के समर्थन में एक बात हमेशा कही जाती है कि इससे लैंगिक समानता बढ़ जाएगी, धर्म के नाम पर जो अभी भेदभाव होता है, वो भी कम होगा। इसके अलावा अभी जो हजारों कानून चल रहे हैं, वो भी काफी कम हो जाएंगे जिससे न्याय प्राणली में भी एक सरलता आएगी। लेकिन इसी के उलट कुछ बुद्धिजीवी मानते हैं कि यूसीसी लागू होने से धार्मिक स्वतंत्रता भी खत्म हो जाती है। तर्क दिया जाता है कि संविधान ने ही धार्मिक स्वंत्रता भी दी है, ऐसे में यूसीसी लागू नहीं हो सकता।