उनका पूरा नाम सैम होर्मूसजी फ्रेमजी जमशेदजी मानेकशा था। उनके नेतृत्व में भारत ने सन 1971 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में जीत हासिल की थी, जिसके परिणामस्वरूप बांग्लादेश का जन्म हुआ था। सैम मानेकशा भारत के पहले फील्ड मार्शल थे। अपने चालीस साल के सैनिक जीवन में उन्होंने दूसरे विश्व युद्ध के अलावा चीन और पाकिस्तान के साथ हुए तीनों युद्धों में भाग लिया था। उन्हें लोग प्यार से ‘सैम बहादुर’ बुलाते थे।
सैम मानेकशा का जन्म अमृतसर में, एक पारसी परिवार में हुआ था। उनकी प्रारंभिक शिक्षा अमृतसर में हुई और फिर बाद में उनका दाखिला नैनीताल के शेरवुड कालेज में करा दिया गया। वे देहरादून के ‘इंडियन मिलिट्री एकेडमी’ के पहले बैच के लिए चुने गए चालीस छात्रों में से एक थे। वहां से वे कमीशन प्राप्त कर भारतीय सेना में भर्ती हुए। सत्रहवीं इनफेंट्री डिवीजन में तैनात सैम मानेकशा पहली बार द्वितीय विश्वयुद्ध में शामिल हुए।
उसमें बर्मा अभियान के दौरान सेतांग नदी के तट पर जापानियों से लोहा लेते हुए वे गंभीर रूप से घायल हो गए। पर मौत को चकमा देकर सैम मानेकशा पहले स्टाफ कालेज क्वेटा, फिर जनरल स्लिम्स की चौदहवीं सेना के बारह फ्रंटियर राइफल फोर्स में लेफ्टिनेंट बनकर बर्मा के जंगलों में एक बार फिर जापानियों से दो-दो हाथ करने जा पहुंचे। वहां भीषण लड़ाई में वे फिर से बुरी तरह घायल हुए।
द्वितीय विश्वयुद्ध खत्म होने के बाद उन्हें स्टाफ आफिसर बनाकर जापानियों के आत्मसमर्पण के लिए भेजा गया, जहां उन्होंने लगभग दस हजार युद्धबंदियों का पुनर्वास कराया। भारत विभाजन के बाद 1947-48 की कश्मीर की लड़ाई में भी उन्होंने महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाई। नगालैंड समस्या सुलझाने में उन्होंने अविस्मरणीय योगदान दिया था। इसके लिए उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया गया।
7 जून, 1969 को मानेकशा ने जनरल कुमारमंगलम के बाद भारत के आठवें सेना प्रमुख का पद ग्रहण किया। उनके इतने सालों के अनुभव के इम्तिहान की घड़ी तब आई जब हजारों शरणार्थियों के जत्थे पूर्वी पाकिस्तान से भारत आने लगे और युद्ध अवश्यंभावी हो गया। दिसंबर 1971 में मानेकशा ने अपने अभूतपूर्व युद्ध कौशल का परिचय दिया और पाकिस्तान की करारी हार हुई। उसके बाद बांग्लादेश का जन्म हुआ।
मानेकशा के सैनिक नेतृत्व ने राष्ट्र को सर्वथा नया आत्मविश्वास दिया। इससे पहले कभी शत्रु सैनिकों ने इस तरह भारत के आगे घुटने नहीं टेके थे। सेल्युकस की यूनानी सेना पर चंद्रगुप्त मौर्य की निर्णायक जीत के बाद शताब्दियों के इतिहास में दूसरा उदाहरण नहीं मिलता। मानेकशा ने 1971 में एक ऐसी रेखा खींच दी, जिसे छोटा करना नामुमकिन रहेगा।
फील्ड मार्शल सैम मानेकशा वह शख्स थे, जिन्होंने 1971 के युद्ध में भारत को पाकिस्तान पर ऐतिहासिक जीत दिलाई। युद्ध के दौरान भारतीय सेना ने पाकिस्तानी सेना को नाकों चने चबवा दिए और इसका श्रेय काफी हद तक फील्ड मार्शल सैम मानेकशा को जाता है। उन्होंने सेना का उत्साह बढ़ाने के साथ-साथ एक मजबूत रणनीति बनाई। उनकी कुशल रणनीति की बदौलत ही पाकिस्तानी सेना पर बहुत जल्द जीत हासिल हुई।
इस युद्ध का परिणाम था पाकिस्तानी सेना का बिना शर्त आत्मसमर्पण। इस युद्ध में पैंतालीस हजार से ज्यादा पाकिस्तानी सैनिकों और इतने ही उसके नागरिकों ने आत्मसमर्पण किया था।उनके देशप्रेम और देश के प्रति निस्वार्थ सेवा के चलते उन्हें 1972 में पद्म विभूषण तथा 1 जनवरी, 1973 को फील्ड मार्शल के मानद पद से अलंकृत किया गया।