रूस के यूक्रेन पर हमले के बाद तमाम देशों ने जो प्रतिबंध लगाए हैं, उनमें जीवाश्म ईंधन की खरीद पर रोक बड़ा फैसला है। कई देशों ने ऊर्जा के वैकल्पिक स्वरूप को लेकर योजनाएं बनानी शुरू कर दी है। खासकर, यूरोपीय समुदाय ने रूस से तेल और गैस की खरीदारी को चरणबद्ध तरीके से बंद करने और नवीकरणीय ऊर्जा के इस्तेमाल को बढ़ावा देने का फैसला किया है। लेकिन इस तैयारी में कुछ समय के लिए कार्बन के उत्सर्जन में तेजी से वृद्धि होने की आशंका जताई जा रही है। फिलहाल, काम चलाने के लिए ऐसे देश कोयले के इस्तेमाल पर लौट रहे हैं। युद्ध के दौरान यूक्रेन में कोयले की खपत बढ़ी है, जिसकी आपूर्ति आस्ट्रेलिया कर रहा है। कोयले को कार्बन प्रदूषण का सबसे बड़ा स्रोत माना जाता है।

दरअसल, युद्ध की वजह से दुनिया की चार सबसे बड़ी जीवाश्म ईंधन कंपनियों ने रूस से बाहर निकलने का फैसला किया है। इन कंपनियों को 20 अरब डालर से अधिक की संपत्ति को छोड़ना पड़ा है। जर्मनी रूसी गैस के सबसे बड़े खरीदारों में से एक है, लेकिन युद्ध की वजह से जर्मनी ने पूरी तरह तैयार पाइपलाइन के इस्तेमाल पर पाबंदी लगा दी है। इस पाइपलाइन से रूसी गैस सीधे जर्मनी तक लाई जानी थी।

अमेरिका ने भी सभी रूसी जीवाश्म ईंधन की खरीद पर प्रतिबंध लगा दिय है। यूरोपीय संघ ने इस साल रूसी गैस आयात को 80 फीसद तक कम करने की योजना की घोषणा की है। यह भी कहा कि वह कोयला और तेल सहित गैस की खरीद को 2027 तक चरणबद्ध तरीके से पूरी तरह बंद कर देगा। रूसी आक्रमण के दो सप्ताह के भीतर, यूरोपीय संघ ने पहले से कहीं अधिक तेजी से विंड टरबाइन, सौर पैनल और हीट पंप स्थापित करने की योजना की घोषणा की।

जर्मनी ने 2035 तक अपनी बिजली आपूर्ति को डिकार्बोनाइज करने के लिए 200 अरब यूरो खर्च करने की घोषणा की है। इसके साथ ही, जर्मनी ने तरलीकृत प्राकृतिक गैस के आयात के लिए दो टर्मिनल बनाने की भी घोषणा की है, ताकि रूस की जगह अन्य देशों से जीवाश्म ईंधन का आयात किया जा सके। जर्मनी में गैस की कीमतें तेजी से बढ़ रही हैं। इससे लोग कोयले के इस्तेमाल की ओर लौट रहे हैं।

रूस तेल और जीवाश्म गैस का दुनिया का सबसे बड़ा निर्यातक है। यूक्रेन पर हमले के बाद से रूस ने यूरोपीय संघ को 11 अरब यूरो से अधिक का ईंधन बेचा है। इस ईंधन का इस्तेमाल घरों को गर्म रखने और बिजली उत्पन्न करने के लिए किया जाता है। अब वैकल्पिक ईंधन का इंतजाम करने की चुनौती सबके सामने है।

ब्रुसेल्स स्थित आर्थिक थिंक टैंक ब्रूगल के जलवायु विश्लेषक जार्ज जैचमैन के मुताबिक, अगर किसी तरह का प्रतिबंध लगाया जाता है या रूस गैस की आपूर्ति पूरी तरह बंद कर देता है, तो हमें कोयले का ज्यादा इस्तेमाल करना पड़ेगा और इससे काफी कम समय में कार्बन का ज्यादा उत्सर्जन होगा। यूरोपीय संघ ने रूस की गैस पर अपनी निर्भरता को कम करने के लिए दोहरी रणनीति सामने रखी है। रूसी गैस की जगह अन्य देशों से ईंधन का आयात करते हुए हरित ऊर्जा में निवेश को बढ़ावा दिया जाएगा।

ईयू ने कतर, मिस्र और अमेरिका जैसे देशों से हर साल 50 अरब क्यूबिक मीटर एलएनजी (तरलीकृत प्राकृतिक गैस) आयात करने की योजना बनाई है। अंतरराष्ट्रीय ऊर्जा एजंसी (आइईए) के अनुसार, यूरोपीय संघ के घरों में थर्मोस्टैट औसतन 22 डिग्री सेल्सियस (71 डिग्री फारेनहाइट) से अधिक पर सेट है। अगर इसे एक डिग्री सेल्सियस भी कम किया जाता है, तो गैस की मांग में सात फीसद की कमी आएगी।

यह आंकड़ा सामने आने के बाद कई देशों के नेताओं ने अपने नागरिकों से ऊर्जा बचाने की अपील शुरू कर दी है। जर्मनी के अर्थव्यवस्था और जलवायु संरक्षण मंत्री रोबर्ट हाबेक ने अपने नागरिकों से कहा, अगर आप पुतिन को थोड़ा नुकसान पहुंचाना चाहते हैं, तो ऊर्जा बचाएं। यूरोपीय आयोग की अध्यक्ष उर्सुला फान डेय लाएन ने एक बयान में कहा, हम सभी ऊर्जा की बचत करके रूसी गैस पर निर्भरता को खत्म करने में योगदान दे सकते हैं।