महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे को शपथ ग्रहण किए अभी तक दो महीने भी नहीं हुए हैं, लेकिन उनकी सरकार में पांच दिन पहले राज्यमंत्री बनाए गए अब्दुल सत्तार ने बड़ा झटका देते हुए शनिवार को इस्तीफा सौंप दिया। उनके इस्तीफे पर विपक्षी नेता चुटकी लेने लगे। वरिष्ठ नेता संजय राउत ने कहा, “सरकार में अब्दुल सत्तार को पूरा सम्मान मिला। उन्हें उनकी नाराजगी की वजह का पता नहीं है।” जबकि पूर्व मुख्यमंत्री और बीजेपी नेता देवेंद्र फडणवीस ने कहा, “उनके साथ धोखा हुआ है। वह औरंगाबाद से शिवसेना के विधायक हैं।” शिवसेना में शामिल होने से पहले वह कांग्रेस पार्टी में थे। बताया जा रहा है कि वह अपनी वरिष्ठता को देखते हुए राज्य मंत्री बनाए जाने से नाराज हैं।

25 साल पहले सामना में छपे लेख के वायरल होने से भी नाराज : उनकी नाराजगी की एक दूसरी वजह सोशल मीडिया पर वायरल शिवसेना के मुखपत्र ‘सामना’ का एक लेख है, जिसमें दावा किया गया था कि कि वह अंडरवर्ल्ड डान दाऊद इब्राहिम के करीबी हैं। हालांकि सामना में यह लेख 25 साल पहले  11 जून 1994 को प्रकाशित हुआ था। इसका शीर्षक था- ‘शेख सत्तार के दाऊद गिरोह से करीबी संबंध’। अब सत्तार के इस्तीफा दिए जाने से उद्धव ठाकरे की मुसीबत बढ़ गई है। चर्चा है कि सीएम उद्धव ठाकरे ने शिवसेना के एक नेता को अब्दुल सत्तार को मनाने के लिए भेजा है।

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कैबिनेट मंत्री बनाने की बात कही गई थी, लेकिन दिलाई गई राज्यमंत्री की शपथ : वरिष्ठ नेता अब्दुल सत्तार को पहले कैबिनेट मंत्री बनाए जाने की बात कही गई थी, लेकिन जब शपथ ग्रहण शुरू हुआ तो उन्हें राज्यमंत्री के लिए बुलाया गया। अपने लंबे राजनीतिक अनुभव और कैरियर को देखते हुए इससे वह असहज महसूस करने लगे। इस बीच शिवसेना ने उनके विधान सभा क्षेत्र औरंगाबाद में जिला परिषद का अध्यक्ष पद कांग्रेस को देने का फैसला किया। इससे वह और भी नाराज हो गए और शनिवार को राज्यमंत्री बनाए जाने के पांच दिन बाद ही पद से इस्तीफा दे दिया।

औरंगाबाद जिला परिषद का अध्यक्ष पद कांग्रेस को देने पर भी भड़के : औरंगाबाद में शिवसेना के छह विधायक हैं। वहां कांग्रेस का कोई विधायक नहीं है। जिला परिषद में शिवसेना के तीन सदस्य हैं। ऐसे में शिवसेना के जिला परिषद का अध्यक्ष पद कांग्रेस को देना उनको अच्छा नहीं लगा। शिवसेना ने अब्दुल सत्तार को इस बारे में विश्वास में भी नहीं लिया, इससे वह और खफा हो गए। जिले में शिवसेना के स्थानीय नेताओं ने इसका विरोध भी किया था और कहा भी था कि मंत्री बनने से क्या फायदा। सत्तार ने इस सवाल को उठाया भी था। लेकिन कोई सुनवाई नहीं हुई