मणिपुर में एक अनोखा मामला सामने आया है। एक शख्स को पुलिस ने दस साल पहले 90 हजार की रकम के साथ अरेस्ट किया और फिर प्रतिबंधित पीपल्स लिबरेशन आर्मी और रिवोल्यूशनरी पीपल्स फ्रंट के साथ उसका नाता जोड़कर UAPA लगा दिया। हालांकि अगले साल आरोपी को बेल मिल गई। कहानी यहीं पर खत्म हो जाती तो कोई बात नहीं। लेकिन दस साल बाद भी पुलिस इस मामले में चार्जशीट तक तैयार नहीं कर पाई। उलटे हर 26 जनवरी और 15 अगस्त पर आरोपी को पुलिस अरेस्ट करके ले जाती है और फिर टीम के साथ फोटो खींचकर सार्वजनिक कर दी जाती है।

हर साल दो बार होने वाली जलालत से बचने के लिए आरोपी ने मणिपुर हाईकोर्ट का रुख करके सारी कहानी बताई और इंसाफ मांगा। आरोपी का कहना था कि अदालत उसे इस जलालत से बचाए। अगर उसने कोई गुनाह किया है तो उसके खिलाफ चार्जशीट दायर की जाए। नहीं तो हर साल दो बार उसे इस तरह से अपमानित न किया जाए। पुलिस जो फोटो खींचती है उसे सार्वजनिक कर देती है। उसके परिवार वाले भी शर्मसार होते हैं।

हाईकोर्ट ने कहा- अरेस्ट से पहले दिया जाए समन, छह माह में दाखिल हो चार्जशीट

जस्टिस गुणेश्वर शर्मा भी उसकी कहानी को सुनकर आवाक रह गए। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों और संविधान का हवाला देकर कहा कि हर शख्स को मान सम्मान से जीने का हक है। पुलिस ऐसे किसी को अपमानित नहीं कर सकती। उनका कहना था कि अगर पुलिस को लगता है कि आरोपी से पूछताछ करने की जरूरत है तो उसे सीआरपीसी के सेक्शन 41 ए के तहत बाकायदा समन किया जाए। वो पेश नहीं होता तो पुलिस उसके खिलाफ कानून एक्शन ले सकती है। लेकिन 26 जनवरी और 15 अगस्त की आड़ में उसे साल में दो बार गिरफ्तार करना पूरी तरह से गलत है। जस्टिस ने ये भी कहा कि दस साल तक पुलिस चार्जशीट क्यों नहीं दाखिल कर रही। आदेश दिया गया कि छह माह के भीतर आरोप पत्र पुलिस दाखिल करे।

पुलिस बोली- मणिपुर संवेदनशील सूबा, एहतियात के तौर पर करते हैं अरेस्ट

हालांकि पुलिस ने अपने बचाव में कहा कि मणिपुर संवेदनशील सूबा है। 26 जनवरी और 15 अगस्त पर खास एहतियात बरतनी होती है। आरोपी UAPA के तहत नामजद किया गया है। लिहाजा उसे अरेस्ट करना जरूरी होता है। केस को लेकर पुलिस का कहना था कि इस मामले में और भी गिरफ्तारी होनी हैं। जब तक बाकी बचे लोगों को गिरफ्तार नहीं कर लिया जाता तब तक इस मामले में चार्जशीट दाखिल नहीं की जा सकती।

मामले के मुताबिक याचिककर्ता मोबाइल फूड ट्रक चलाता था। पुलिस ने उसे 21 अप्रैल 2012 को गिरफ्तार किया था। उसके पास उस समय 90 हजार रुपये थे। पुलिस ने उसके खिलाफ UAPA लगा दिया। हालांकि आरोपी को 30 अप्रैल को ही अदालत से जमानत पर रिहा कर दिया गया था।