केंद्र सरकार तीन तलाक को प्रतिबंधित करने वाले मुस्लिम वूमन (प्रोटेक्शन ऑफ राइट्स ऑन मैरिज) बिल 2017 गुरुवार (28 दिसंबर) को लोकसभा में पेश करेगी। केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद इसे सदन के पटल पर रखेंगे। इस विधेयक में एक झटके में तीन तलाक देने वालों को कड़ी सजा देने का प्रावधान किया गया है। संसद से यह बिल पारित हो इसके लिए बीजेपी ने अपने सांसदों को व्हिप जारी किया है और उन्हें गुरुवार और शुक्रवार दोनों दिन सदन में रहने को कहा है। बता दें कि इससे पहले इसी महीने की शुरुआत में मोदी कैबिनेट ने इस बिल को मंजूरी दी थी। इससे पहले अगस्त में सुप्रीम कोर्ट भी तीन तलाक को असंवैधानिक करार दे चुका है और सरकार से 6 महीने के अंदर इस पर कानून बनाने को कहा था।

तीन तलाक की लड़ाई करीब साढ़े तीन दशक पुरानी है। शहनाज शेख नाम की महिला ने सबसे पहले इसके खिलाफ लड़ाई छेड़ी थी। उन्होंने साल 1983 में सुप्रीम कोर्ट में मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड को चुनौती देते हुए याचिका दायर की थी। उन्‍हें उनके पति ने आधी रात तीन तलाक बोल कर बेघर कर दिया था। वह 600 रुपए महीने की नौकरी करती थीं। जीवन काफी मुश्किल भरा था। मुश्किलें और बढ़ गई थीं लेकिन उन्‍होंने लड़ने का फैसला किया, ताकि उनकी जैसी लाखों मुस्लिम महिलाओं की जिंदगी आसान बन सके। इस लड़ाई में उन्‍हें किसी मुसलमान का साथ नहीं म‍िला। उन्‍होंने ”इंड‍ियन एक्‍सप्रेस” में एक लेख के जरिए अपनी आपबीती बयां की थी और बताया था क‍ि वह तीन तलाक के ख‍िलाफ क्‍यों खड़ी हुईं।

उन्‍होंने ल‍िखा था, “1983 में मैंने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की थी। मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड की महिलाओं के साथ भेदभाव के खिलाफ यह याचिका दायर की थी। आधी रात को मेरे पति ने मुझे तलाक देकर घर से बाहर निकाल दिया था। मेरे लिए जीना मुश्किल होता जा रहा था। मैंने एक दफ्तर में बतौर ऑफिस असिस्टेंट काम करना शुरू कर दिया। मेरी तनख्वाह 600 रुपये प्रति महीना थी और मैं किराए पर रह रही थी। मेरे तलाकशुदा पति ने मेरा पता लगा लिया और मुझे धमकाया। मैंने उससे कहा, “तुमने मुझे तलाक दे दिया है, मैं अब कहीं भी रह सकती हूं और अपनी मर्जी से काम कर सकती हूं।” इस बात पर उसने(तलाकशुदा पति) कहा, “तुम मेरी बीवी हो, मैं वैवाहिक अधिकारों की बहाली के लिए एक मुकदमा दायर करूंगा” यह बात मेरी मर्जी के खिलाफ थी। मैंने 5 काजी से सलाह-मश्विरा किया लेकिन हर एक ने मुझे अलग-अलग बातें बताईं।

मुझे मालूम ही नहीं था कि कानूनी तौर पर मैं क्या थी? शादीशुदा या फिर तलाकशुदा? इसके बाद ही मैंने तलाक देने के इस तरीके के खिलाफ और मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड के खिलाफ याचिका दायर की थी। ऐसा कोर्ट में पहला मामला था। मेरी याचिका से न सिर्फ कट्टरपंथियों को तकलीफ हुई बल्कि उन्हें भी इससे परेशानी हुई जिनसे मैंने सहारे की उम्मीद की थी- वे थे लिबरल्स, उदार लोग! कुछ लोगों ने कहा कि मुझे इस्लाम की जानकारी ही नहीं है और मैं उसके कानून को चुनौती नहीं दे सकती।कई लोगों को लगा कि मैं अपनी नीजि जिंदगी में सिर्फ एक कुंठित महिला बन चुकी थी।

मुंबई स्थित महिला अधिकारों की लड़ाई लड़ने वाले संस्थान फॉरम अगेंस्ट ओप्रेशन ऑफ विमेन और इंदिरा जयसिंह के वकील मेरी मदद के लिए आगे आए। इन्होंने मेरा केस मुफ्त में लड़ा। जिन्होंने मुझे सहारा दिया, वे गैर मुस्लिम थे। कई मुस्लिम उदारवादियों को लगता है कि बदलाव समाज के अंदर से ही आना चाहिए लेकिन इस बात से पर्सनल लॉ बोर्ड से जुड़े लोगों को परेशानी होती है।