नरेंद्र मोदी सरकार की प्राथमिकताओं में तीन तलाक बिल सबसे ऊपर है। यही वजह है कि 17वीं लोकसभा में सबसे पहले इसी बिल को पेश किया गया। केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने शुक्रवार (21 जून) को संसद के निचले सदन में इसे पेश किया। बिल पेश करने के समर्थन में 187 सांसदों ने जबकि विरोध में 74 सांसदों ने मतदान किया। अब बिल पर व्यापक बहस होगी फिर वोटिंग के जरिए बिल लोकसभा से पास होगा। बहुमत के आंकड़े को देखते हुए सदन से बिल पास होने की उम्मीद है लेकिन राज्यसभा से उसे पारित कराना सरकार के लिए चुनौती होगी क्योंकि टीडीपी के चार सांसदों को तोड़ने के बाद भी सदन में बहुमत के आंकड़े से एनडीए 18 सीट दूर है। जेडीयू ने भी पहले ही ऐलान कर दिया है कि वो तीन तलाक का राज्यसभा में विरोध करेगी। उसके उच्च सदन में छह सांसद हैं।

सपा के सांसद आजम खान ने कहा कि उनकी पार्टी कुरान में लिखी गई बातों के मुताबिक ही बिल का समर्थन या विरोध करेगी। ऐसे में सवाल उठता है कि इस मुद्दे पर क्या कहता है कुरान? भारतीय मुस्लिम महिला आंदोलन की संस्थापक और सुप्रीम कोर्ट की वकील जाकिया सोमन कहती हैं कि कुरान में तीन तलाक का कोई उल्लेख नहीं है। पैगंबर मोहम्मद के शब्दों में, “सभी वैध चीजों में अल्लाह द्वारा तलाक को सबसे हिकारत की नजर से देखा गया है और उससे नफरत किया है।” इस्लाम में प्रतिष्ठित और प्रामाणिक हदीस के मुताबिक, तलाक उन सबसे नापसंद कृत्यों में से एक है जिसका प्रदर्शन इस्लाम को मानने वाले करते हैं। इस्लाम में केवल एक अंतिम उपाय के तौर पर वह भी अत्यधिक प्रतिकूल परिस्थितियों में ही तलाक का प्रावधान किया गया है।

अधिकांश मुस्लिम महिलाएं और उनका संगठन जो तीन तलाक का विरोध कर रहे हैं वो तलाक-ए-बिद्दत (एकबार में तीन तलाक बोलना) की जगह तलाक-ए-सुन्ना (पैगंबर मोहम्मद की कथनी और कुरान में वर्णित श्रुतिलेख के अनुसार) के अनुसार तलाक चाहती हैं। पैगंबर मोहम्मद के मुताबिक इस्लाम में पत्नी को गुस्से में या झगड़े की वजह से एक बार में ही तलाक देना प्रतिबंधित है। कुरान हरेक पति को सलाह देता है कि वो मियां-बीवी के झगड़े, विवाद, मनमुटाव या आपसी कलह को आपसी सद्भाव के साथ निपटाए। कुरान के मुताबिक शौहर को तलाक देने में जल्दबाजी नहीं करनी चाहिए।

मान-मनौव्वल के बाद भी अगर पत्नी नहीं माने तो उसके साथ शारीरिक संबंध नहीं बनाना चाहिए। हालांकि, इस दौरान पति-पत्नी को एक ही कमरे में सोना है। इस बीच भी बातचीत की कोशिश करनी चाहिए। अगर इतने पर भी बात बने तो दोनों पक्षों को बुजुर्गों की मौजूदगी में बात करनी चाहिए और उन्हें अपने मतभेद की बात बतानी चाहिए। बुजुर्गों की सुलह की कोशिशें भी जब काम न आए तब तलाक की प्रक्रिया शुरू की जानी चाहिए। इस प्रक्रिया के बाद भी पति-पत्नी को तीन महीने तक एक ही घर में गुजारना होता है। हालांकि, इस दरम्यान भी रिश्ते को बचाने की पूरी गुंमजाइश रहती है।