तीन तलाक पर संशोधित नया बिल ‘मुस्लिम महिला विवाह अधिकार संरक्षण विधेयक-2018’ लोकसभा में गुरुवार (27 दिसंबर) को पेश कर दिया गया है। बिल पारित होने पर यह तीन तलाक अध्यादेश का स्थान लेगा। सरकार ने पुराने बिल में कई संशोधन किए हैं। नए बिल के ड्राफ्ट के मुताबिक अब आरोपी को मजिस्ट्रेट सशर्त जमानत दे सकता है। पुराने बिल में पुलिस बिना वॉरंट के गिरफ्तार कर सकती थी, जिसे हटा लिया गया है। एक झटके में तीन तलाक को अपराध मानते हुए इसे पहले गैर जमानती करार दिया गया था लेकिन अब जमानत मिल सकेगी। झटके में तीन तलाक देने पर बिल में तीन साल की सजा का प्रावधान किया गया है। संशोधित नए बिल में मजिस्ट्रेट के सामने पति-पत्नी में समझौते का विकल्प भी खुला रखा गया है।
इसके अलावा नए बिल के मुताबिक अब पीड़िता और उसके सगे रिश्तेदार ही केस दर्ज करा सकेंगे। इस मामले में पहले कोई भी केस दर्ज करा सकता था। इतना ही नहीं पहले पुलिस संज्ञान लेकर भी खुद मामला दर्ज कर सकती थी लेकिन अब इसमें बदलाव किया गया है। भाजपा ने लोकसभा में बिल को पास कराने के लिए कमर कस लिया है और अपने सभी सांसदों को व्हिप जारी कर सदन में मौजूद रहने को कहा है। उम्मीद जताई जा रही है कि देर शाम तक यह बिल लोकसभा में चर्चा के बाद पास हो सकेगा। पक्ष और विपक्ष के बीच इस बिल पर पिछले सप्ताह सदन में चर्चा कराने की सहमति बनी थी।
सूत्र बता रहे हैं कि चुनावी मौसम में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) तीन तलाक को तुरूप के पत्ते के रूप में इस्तेमाल करना चाह रही है। संभवत: यही वजह है कि उत्तर प्रदेश में भाजपा राज्यभर में 100 तीन तलाक प्रमुखों की नियुक्ति करने जा रही है। पार्टी के अल्पसंख्यक मोर्चे की तरफ से इन पदों पर मुस्लिम महिलाओं की नियुक्ति होगी जो तीन तलाक पीड़िताओं को कानूनी और अन्य सहायता उपलब्ध कराएगी। भाजपा अल्पसंख्यक मोर्चा के राज्य अध्यक्ष हैदर अब्बास चांद ने ईटी को बताया कि इस पद की नियुक्ति के लिए आए नामों और आवेदन पर पार्टी विचार कर रही है और संभवत: नए साल में जनवरी तक उनकी तैनाती कर दी जाएगी। तीन तलाक प्रमुख तलाक पीड़िताओं, उनके बच्चों के पुनर्वास और उन्हें कानूनी और गैर कानूनी सहायता मुहैया कराएंगी।
संसदीय कार्य मंत्री विजय गोयल ने मुस्लिम महिलाओं के लिए आज के दिन को ऐतिहासिक करार देते हुए कहा है कि उन्हें 1000 सालों से चली आ रही गलत प्रथा और अन्याय से आजादी मिल सकेगी। उन्होंने कहा कि यह 2017 में ही हो जाता लेकिन विपक्ष ने इसमें टांग अड़ा दी। इधर, लोकसभा में कांग्रेस के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने कहा है कि सरकार को धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए। उन्होंने कहा, “हम बिल पर चर्चा करेंगे। सरकार को धार्मिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए,” खड़गे ने कहा, “संविधान का अनुच्छेद 25 लोगों को ‘अंतरात्मा की स्वतंत्रता और मुक्त पेशा, अभ्यास और धर्म का प्रचार’ करने की आजादी देता है लेकिन सरकार इसमें हस्तक्षेप कर रही है।” उन्होंने कहा कि सभी दलों से चर्चा के बाद तय करेंगे कि बिल को संसदीय समिति के पास भेजा जाना चाहिए या नहीं। उधर सीपीआई के डी राजा ने बिल को सेलेक्ट कमेटी के पास भेजने की मांग की है।
बता दें कि मोदी सरकार पिछले साल भी तीन तलाक बिल लाई थी। लोकसभा में बिल पारित भी हो गया था लेकिन विपक्ष के विरोध की वजह से बिल राज्यसभा में पास नहीं हो पाया था। सितंबर में मोदी सरकार ने इस पर अध्यादेश लाया था। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट ने भी एक झटके में तीन तलाक को अपराध माना था और इस पर प्रतिबंध लगा दिया था। संसद में पिछले दिनों कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने बताया था कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा बैन लगाने के बाद देशभर में तीन तलाक के कुल 248 मामले सामने आए हैं। इनमें से सबसे ज्यादा मामले यूपी से आए हैं। माना जा रहा है कि इसी को देखते हुए भाजपा ने यूपी में तीन तलाक प्रमुखों की नियुक्ति का फैसला किया है।