हाल ही में तेलंगाना में चलती रेलगाड़ी के शौचालय में एक नाबालिग से बलात्कार हुआ। पिछले महीने 24 मार्च को सिकंदराबाद के पास महिला यात्री बलात्कार से बचने के लिए चलती गाड़ी से कूद गई। पंद्रह मार्च को विदिशा के पास गोंडवाना एक्सप्रेस के सामान्य कोच में किन्नर गिरोह ने कथित रूप से पीट-पीट कर एक यात्री को मार डाला। दिसंबर 2023 में कटनी-सतना स्टेशन के बीच चलती यात्री गाड़ी में महिला से बलात्कार की घटना हुई। कुंभ यात्रा के दौरान नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर चौदह यात्रियों की मौत हुई। इसके पूर्व जलगांव रेलवे स्टेशन के पास पुष्पक एक्सप्रेस में अफवाह फैलने से बड़ा हादसा हो गया। इन सभी घटनाओं से यात्री सुरक्षा और सतर्कता को लेकर भारतीय रेल कठघरे में है। दुखद है कि रेल प्रबंधन ने कभी भी हादसों से सबक लेकर उसमें सुधार के प्रयास नहीं किए।

पिछले वर्ष नई दिल्ली रेलवे स्टेशन पर छठ पर्व के दौरान प्लेटफार्म पर हुई भगदड़ में पांच महिला यात्रियों की मौत हुई थी। वर्ष 2010 में भी नई दिल्ली स्टेशन पर अचानक प्लेटफार्म बदलने से हुई भगदड़ में दो यात्रियों की मौत हुई थी। घटना की जांच के लिए रेलवे ने अलग से जांच समिति बनाई थी, लेकिन वास्तविक कारण बताए बगैर मंत्रालय ने जांच रपट दे दी। फरवरी 2013 में इलाहाबाद स्टेशन पर कुंभ के दौरान भगदड़ में छत्तीस यात्रियों की मौत हुई थी।

कागजों पर ही रह गई जांच

यह इस बात का प्रमाण है कि घटना के समय बनने वाली जांच समितियां मात्र कागजी हुआ करती हैं। रेल मंत्रालय भविष्य में ऐसी घटनाओं को रोकने का प्रभावी बंदोबस्त करता नजर नहीं आता है। गाड़ी आने के कुछ समय पहले प्लेटफार्म बदलने की उद्घोषणा से पिछले एक दशक में कई लोगों की मौत हो चुकी है, लेकिन इस दिशा में कोई सुधार नजर नहीं आता है।

देश के अनेक हिस्सों में तीसरी रेल लाइन डालने से रेलगाड़ियों के समय में सुधार अवश्य हुआ है, लेकिन यात्री गाड़ियों के निर्धारित प्लेटफार्म पर आने की अनिश्चितता बढ़ी है। ऐन वक्त पर प्लेटफार्म बदल दिए जाने से बुजुर्ग और बीमार यात्रियों की मुसीबत बढ़ जाती है। आरक्षित डिब्बों में अतिरिक्त यात्रियों की उपस्थिति और अवैध विक्रेताओं को रोकने में रेलवे प्रभावी कार्रवाई करने में हमेशा विफल दिखाई देता है। इस वजह से अपराध की घटनाएं भी होती हैं। यात्रियों की शिकायतों पर रेल मंत्रालय कार्रवाई करने के बजाय कुछ और ही योजनाओं में जुटा है। हैरत है कि रेलवे सुरक्षा बल में भर्ती नहीं हो रही। दूसरी ओर, प्रतिवर्ष कर्मी घट रहे हैं। देश भर में तय पदों की तुलना में रेलवे सुरक्षा बल और जीआरपी पुलिस में संख्या काफी कम है।

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कई वर्ष पहले रेलवे ने यात्री किराए बढ़ाते समय प्रत्येक गाड़ी में सुरक्षा बल की तैनाती का आश्वासन दिया था। मगर सुरक्षा बलों की रेलगाड़ियों में तैनाती को नजरअंदाज कर दिया गया। यात्री गाड़ियों में अवैध विक्रेता और स्टेशनों पर भोजन देने वाले अनधिकृत विक्रेता सुरक्षा और यात्रियों के स्वास्थ्य से खिलवाड़ करते हैं, लेकिन इसे रोकने के लिए रेल विभाग सजग नजर नहीं आता है। विश्व में चौथे क्रम का बड़ा रेल नेटवर्क होने के बावजूद यात्री सुरक्षा और सुविधा विस्तार को अधिक प्राथमिकता देने के बजाय रेल मंत्रालय सजावटी उपाय पर ध्यान केंद्रित किए हुए है। बुलेट ट्रेन, तेजस, वंदे भारत जैसी रेलगाड़ियां प्राथमिकता में हैं। बड़ी आबादी के काम आने वाले सामान्य यात्री कोच और गाड़ियों पर मंत्रालय की प्राथमिकता उपेक्षित ही रही है। देश में प्रतिदिन रेलगाड़ियों से ढाई करोड़ यात्री अपने गंतव्य की यात्रा शिकायतों के साथ करते हैं। उसमें मध्यम आयवर्ग के यात्रियों की संख्या सर्वाधिक हुआ करती है।

रेल दुघर्टनाओं के मुख्य कारणों में पटरियों के रखरखाव में कमी

इन दिनों सामान्य शयनयान आरक्षित कोच और सामान्य श्रेणी की बोगियों की संख्या कम कर इसके स्थान पर वातानुकूलित यान की संख्या बढ़ाई जा रही है। जिसका उद्देश्य अधिक आय अर्जित करना है। सामान्य श्रेणी की बोगियों की संख्या कम होने के कारण कई यात्री दरवाजे पर खड़े होकर या पायदान पर बैठ कर यात्रा करने की कोशिश करते हैं। इस अव्यवस्था में रेलगाड़ियों से गिर कर यात्रियों की मौत हो जाती है। वर्ष 2022 की महालेखा परीक्षा रपट में रेल दुघर्टनाओं के मुख्य कारणों में पटरियों के रखरखाव में गुणवत्ता की कमी को रेखांकित किया गया था।

कर्मचारियों की लगातार कमी, नए पदों पर योग्य स्थायी कर्मचारियों की भर्ती के बजाय, कार्यों को ठेके पर देने से गुणवत्ता में कमी और लापरवाही भी बढ़ी है। यात्रियों की संख्या बढ़ने के बावजूद सुरक्षा बल की भर्ती में निरंतर कटौती की जा रही है। जून 2023 में ओड़ीशा के बालासोर में रेलगाड़ियों की टक्कर में 296 यात्रियों की मौत के बाद रेल मंत्रालय ने स्वचालित ट्रेन सुरक्षा प्रणाली की मंजूरी दी थी। यह प्रणाली घने कोहरे से होने वाली दुर्घटनाओं और आग रोकने में मदद करती है। मगर इसके क्रियान्वयन में सुस्ती बनी हुई है। मिसाल के लिए पश्चिम एवं मध्य रेलवे के लिए चौदह हजार करोड़ का बजट और सुरक्षा कवच मंजूर होने बाद अब भी कार्य की गति बहुत धीमी है।

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रेल सुरक्षा एवं यात्री सुविधा की गुणवत्ता और रखरखाव के लिए तीन लाख कर्मचारियों के पद वर्षों से खाली हैं। यात्री गाड़ियों में सामान्य बोगियों की संख्या रेलवे ने कम जरूर की है, लेकिन इसके अनुपात में यात्री टिकट बेचना कम नहीं किया है। जिससे सामान्य कोच में यात्री कोच क्षमता से कई गुना अधिक संख्या में प्रतिदिन विषम हालात में सफर करने के लिए मजबूर होते हैं। इस प्रकार की यात्रा से दम घुटने, हृदयाघात सहित प्यास से मौत की घटनाएं हो चुकी हैं। हाल में दिल्ली उच्च न्यायालय ने क्षमता से अधिक टिकट बेचने पर रेलवे से जवाब मांगा है। सामान्य शयनयान और वातानुकूलित यानों में अनधिकृत और प्रतीक्षा सूची वाले यात्रियों को रोकने रेलवे प्रभावी कदम उठाने में निष्क्रिय रहा है।

अतिरिक्त कमाई में वृद्धि के लिए उसने सस्ते वातानुकूलित यान की ‘एम’ शृंंखला प्रणाली प्रारंभ की है। तृतीय वातानुकूलित की तुलना में किराए में मामूली कमी कर इसमें अठारह यात्री सीटें बढ़ाई गई हैं। इस कोच में यात्री बर्थ के आकार में कमी की गई है। इससे बुजुर्ग और बीमार यात्रियों के लिए लंबी दूरी की यात्रा न केवल कष्टप्रद, बल्कि स्वास्थ्य की दृष्टि से यह सजा से कम नहीं है। वर्ष 2023-24 में यात्री और मालभाड़े से 2.40 लाख करोड़ कमाने वाला रेल विभाग सामान्य रेल सुरक्षा और यात्री सुविधा को अधिक जिम्मेदार बनाने के बजाय उसका ध्यान बुलेट और वंदे भारत जैसी उच्च गति की ट्रेनों के परिचालन में अधिक है। लेकिन रेल सुरक्षा और भीड़ के हिसाब यात्री गाड़ियों की व्यवस्था करने में सुस्ती चिंता का विषय है।