इंडिगो संकट की वजह से हजारों उड़ानें रद्द हुईं, घंटों यात्रियों ने एयरपोर्ट पर इंतजार किया और एक सवाल फिर चीख-चीख कर सोशल मीडिया पर पूछा गया- क्या एक आम आदमी के समय की कोई कीमत नहीं? क्या सारी सुविधा सिर्फ नेताओं और बड़े वीआईपी तक सीमित है? अब इन दो सवालों के जवाब सभी जानते हैं, लेकिन अब जो समझने वाली बात है वो ज्यादा जरूरी है। समय की बर्बादी इस देश का एक न्यू नॉर्मल है। ट्रेन देरी की वजह से चाहे समय बर्बाद हो, घंटों सड़क पर हॉर्न बजाने को आप मजबूर हों या फिर एयरपोर्ट पर एयरलाइन्स की मनमानी, हर स्थिति का एक ही निष्कर्ष निकलता है- टाइम की कोई कीमत नहीं।
भारतीय रेल का हाल समझते हैं
इंडियन रेलवे के आंकड़ों के मुताबिक भारत में रोजाना 11000 से 13500 पैसेंजर ट्रेने चलती हैं। इसके अलावा हजारों की संख्या में दूसरी मालगाड़ियां होती हैं। ऐसे में भारत का रेल नेटवर्क काफी मजबूत और व्यापक माना जाता है। रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव ने हाल ही में देश की संसद में बताया था कि 70 रेल डिविजन में ‘पंक्चुअलिटी मार्क’ 90 प्रतिशत से ज्यादा चल रहा है, कुल आंकड़ा तो 80 फीसदी के आसपास बैठता है। अब यहां पर पंक्चुअलिटी मार्क का मतलब है कि ट्रेन कितने टाइम पर पहुंच रही है।
पंक्चुअलिटी मार्क सबकुछ तय करता
Not Late by Train (NLT) एक ऐसा पैमाना है जिसके जरिए पंक्चुअलिटी मार्क को कैलकुलेट किया जाता है। यहां भी अगर कोई ट्रेन 15 मिनट के भीतर अपने गंतव्य स्टेशन पर पहुंच जाए तो भारत में उस ट्रेन को लेट नहीं माना जाएगा। अब उस यात्रा के दौरान बीच के स्टेशनों पर कोई ट्रेन कितनी भी देर रुकी हो, वो यहां काउंट नहीं होता। ऐसे में इस पैमाने को लेकर जानकारों के बीच मतभेद दिख जाता है, इसे ज्यादा भरोसेमंद नहीं माना जाता, लेकिन फिर भी रेल मंत्री इसे एक बड़ी उपलब्धि के तौर पर देख रहे हैं।
रेल के ये आंकड़े काफी कुछ बता रहे
हैरानी की बात यह है कि 2020 में भारतीय ट्रेनों का पंक्चुअलिटी रेट 94.17 फीसदी तक दर्ज किया गया था, वो 2023 आते-आते 73.62 फीसदी पर जा पहुंचा। अब वो आंकड़ा 80 फीसदी के आसपास घूम रहा है। ऐसे में स्थिति में तो पहले बेहतर थी, अब ज्यादा खराब हुई है, फिर कैसे सरकार इसे एक उपलब्धि के तौर पर देख सकती है? भारत में रेलवे के साथ एक बड़ी समस्या यह है कि ज्यादातर ट्रेनें अभी भी डीजल इंजन पर चल रही हैं, इस वजह से पंक्चुअलिटी लॉस के मामले ज्यादा रहे हैं। 2023-24 की एक रिपोर्ट बताती है कि डीजल इंजन में आई खराबी की वजह से “पंक्चुअलिटी लॉस” के 4,400+ मामलों का सामना करना पड़ा था। दूसरे शब्दों में कहें तो औसतन पांच ट्रेने रोज सिर्फ इन्हीं खराबियों की वजह से लेट हो रही थीं।
अब यात्रियों को ट्रेनों का लंबा इंतजार तो करना ही पड़ता है, इसके ऊपर ओवरक्राउडिंग की समस्या भी कई दशकों से चली आ रही है। रेलवे के ही आंकड़े बताते हैं कि 2023-24 में 690 करोड़ के करीब लोगों ने ट्रेन से सफर किया, इसका मतलब है कि औसत एक दिन में 1.9 करोड़ यात्री भारतीय रेल का इस्तेमाल कर रहे हैं। सरकार खुद मानती है कि त्योहारों के समय स्पेशल ट्रेनें चलाने के बावजूद भी भारी भीड़ देखने को मिलती है, कुंभ के दौरान हुई मिसमैनेजमेंट और कई स्टेशनों पर मची भगदड़ इसका बड़ा उदाहरण है।
जानकार मानते हैं कि ट्रेनों में कई बार टिकटों का बुक नहीं होना भी जनरल बोगियों में भीड़ को बढ़ा देता है। कई बार तो क्षमता से कहीं अधिक यात्री ट्रैवल करते हैं जो अपने आप में एक बड़ा खतरा है।
दूसरे देशों का रेल नेटवर्क कैसा है?
अब भारत में ट्रेनें लेट होती हैं, यह सच है, लेकिन दूसरे देशों का हाल भी जान लेना चाहिए। वहां भी ट्रेनें लेट चलती हैं, लेकिन स्थिति, इंफ्रास्ट्रक्चर बेहतर है। कहना चाहिए कि वहां पर यात्रियों की सहुलियत का ज्यादा ध्यान रखा जाता है, उनके समय की ज्यादा कीमत दिख जाती है। उदाहरण के लिए जापान में Tokaido Shinkansen जैसी हाई स्पीड ट्रेनों का औसत डीले टाइम मात्र 1.6 मिनट रहता है। उस देरी के लिए भी वहां माफी मांगी जाती है। कई यूरोपीय देशों का पंक्चुअलिटी मार्क भी इस समय भारत से बेहतर चल रहा है। स्विट्जरलैंड में ये आंकड़ा 95% रहता है, नीदरलैंड में 94% और बेलजियम में 90%।
एक दिलचस्प पहलू यह भी है कि भारतीय रेलवे किसी भी ट्रेन का 15 मिनट देरी से पहुंचना या चलना लेट नहीं मानती है, लेकिन जापान में यह आंकड़ा सिर्फ एक मिनट होता है, स्विट्जरलैंड तीन मिनट और फ्रांस-इटली और ऑस्ट्रिया में 5 मिनट।
सड़कों पर जाम की स्थिति और घंटों फंसते लोग
अब रेल नेटवर्क से परेशान भारतीय जब सड़क मार्ग से ही यात्रा करने का फैसला करता है, लंबा ट्रैफिक जाम उसका स्वागत करता है। कोई भी राज्य हो, कोई भी शहर हो, जाम की स्थिति एक समान दिखाई दे जाती है। जिस न्यू नॉर्मल का जिक्र किया जा रहा था, उसी श्रेणी में इसे भी रखा जाना चाहिए। लोग भी अब भूल चुके हैं कि वे ट्रैफिक जाम में अपनी जिंदगी का कितना वक्त बर्बाद कर रहे हैं। कुछ ऐसी रिपोर्ट्स जरूर सामने आई हैं जो हैरान कर देने वाले आंकड़े प्रस्तुत करती हैं।
TomTom Traffic Index की 2023-24 की रिपोर्ट बताती है कि भारत में बेंगलुरु दुनिया का सबसे ट्रैफिक जाम वाले शहरों में शामिल है। इसी तरह दिल्ली, मुंबई, पुणे और कोलकाता में भी हालात काफी खराब हैं। रिपोर्ट के मुताबिक अगर इन शहरों में आपको सिर्फ 10 किलोमीटर का भी रास्ता तय करना हो तो कितना समय आपका जाया होने वाला है।
शहर दर शहर, ट्रैफिक का बुरा हाल
10 किलोमीटर की यात्रा करने में सबसे अधिक समय कोलकाता में लगता है, जहां औसतन 34 मिनट 33 सेकंड लगते हैं। इसके बाद बेंगलुरु का स्थान आता है, जहां 28 से 33 मिनट का समय लगता है। मुंबई में इस दूरी को तय करने में औसतन 27 से 30 मिनट लगते हैं, जबकि चारों बड़े शहरों में सबसे कम समय दिल्ली में लगता है, जहां 10 किमी की यात्रा आम तौर पर 22 से 25 मिनट में पूरी होती है। उसी रिपोर्ट में एक और आंकड़ा बताता है कि बेंगलुरु में एक आम आदमी साल का ट्रैफिक में 117 घंटे खराब कर रहा है, कोलकाता के लिए आंकड़ा 110 घंटे बैठता है, पुणे के लिए 108 घंटे और हैदराबाद के लिए 85 घंटे।
Centre for Science and Environment (CSE) का सर्वे भी इस बात की तस्दीक करता है। रिपोर्ट के मुताबिक आम आदमी हफ्ते का 7 से 10 घंटा ट्रैफिक में निकाल देता है। इसे दूसरे शब्दों में कहें तो साल का 500 घंटा जाम में खराब हो रहा है।
आंदोलन की भेंट चढ़ता आम आदमी का टाइम
वैसे एक आम आदमी के समय की कीमत तो वो आंदोलनकारी भी नहीं समझते जो कई दिनों के लिए सड़कों को बंद करवा देते हैं, जो कई दिनों तक एक ही जगह बैठ सड़कें जाम कर देते हैं। उस वजह से भी लोगों का काफी समय खराब होता है, सड़कों पर वे जाम में फंसने को मजबूर हो जाते हैं। दिल्ली पुलिस के आंकड़े बताते हैं कि 2023 में अकेले राजधानी में 2041 धरने हुए थे, 1627 विरोध प्रदर्शन, 929 जुलूस, 172 रैलियां, 107 बंद के आह्नान। इसका मतलब यह है कि औसतन दिल्ली में रोज के 23 विरोध प्रदर्शन देखने को मिल रहे हैं, किसी ना किसी कारण से राजधानी की कोई ना कोई सड़क ऐसे ही किसी मार्च या आंदोलन के हत्थे चढ़ जाती है।
दूसरे देशों में ट्रैफिक की क्या स्थिति?
अब भारत के लोग ट्रैफिक में अपना इतना टाइम खराब कर रहे हैं, लेकिन दूसरे कई मुल्कों में हालात बेहतर दिखाई देते हैं। उदाहरण के लिए जापान के टोक्यो और ओसाका ऐसे शहर हैं जहां ट्रैफिक मैनेजमेंट शानदार रहती है। वहां 10 किलोमीटर का रास्ता तय करने में सिर्फ 12 मिनट लगते हैं। इसी तरह स्विट्जरलैंड के Zurich, Geneva कुछ ऐसे शहर हैं जहां ट्रैफिक की स्थिति काफी बेहतर रहती है। वहां पर ट्रेन, ट्राम, बस, सबकी हाई-फ्रीक्वेंसी देखने को मिलती है। INRIX Traffic Scorecard 2024 की रिपोर्ट बताती है कि सिंगापुर में भी 10 किलोमीटर का रास्ता तय करने में सिर्फ 11 मिनट लगते हैं।
भारतीय एयरलाइन्स कैसा परफॉर्म कर रहीं?
अब रेल और सड़क को छोड़ जब कोई शख्स हवाई यात्रा करने की सोचता है, उसकी एक आस जरूर रहती है- मूलभूत सुविधाएं मिलेंगी, बेहतर सफर करने को मिलेगा। अब ऐसा होता भी है, पिछले कुछ सालों में कई लोगों ने काफी हवाई यात्रा की है। लेकिन 2024 का सरकार का ही आंकड़ा बताता है कि कई एयरलाइन्स पंक्चुएलिटी के मामले में 80 फीसदी वाले बेंचमार्क को नहीं छू पा रही हैं। आंकड़े बताते हैं कि अकासा एयर ने औसतन 74.85 प्रतिशत के साथ सबसे बेहतर ऑन-टाइम परफॉर्मेंस दर्ज किया। AIX कनेक्ट का आंकड़ा 73 फीसदी रहा, विस्तारा का 72.26 फीसदी, एअर इंडिया का 63.48 फीसदी और सबसे कम स्पाइसजेट का दर्ज किया गया, मात्र 48.61 प्रतिशत।
अगर पिछले महीने की ही बात कर ली जाए तो दिल्ली एयरपोर्ट से नवंबर में 200 से ज्यादा उड़ानों ने देरी से उड़ान भरी थी। ज्यादातर मामलों में एयर ट्रैफिक कंट्रोल को ही जिम्मेदार माना गया।
हवाई यात्रा में दूसरे देशों की स्थिति समझें
DGCA की रिपोर्ट बताती हैं कि देश में जो उड़ाने लेट होती हैं, वहां लगभग 60 से 70 प्रतिशत फ्लाइट ‘रिएक्शनरी’ कारणों से प्रभावित होती हैं। इसका मतलब होता है कि किसी एक उड़ान के प्रस्थान या आगमन में हुई देरी पूरी नेटवर्क में डोमिनो इफेक्ट की तरह काम करती है और उसके बाद कई अन्य उड़ानों में भी देरी होने लगती है। वैसे हवाई यात्रा के मामले में अगर भारतीय एयरलाइन्स पिछड़ रही हैं, दूसरे देश भी कोई बेहतर नहीं कर रहे हैं। न्यूयॉर्क, शिकागो में फ्लाइट्स का डीले होना एक आम बात है। 2023-24 की रिपोर्ट बताती हैं कि अमेरिकी फ्लाइट्स का औसतन पंक्चुअल रेट 74 से 78 फीसदी के करीब रहा है। कुछ ऐसा ही हाल भारत का भी है, ऐसे में अमेरिका बेहतर नहीं कर रहा।
कनाडा का हाल तो और खराब दिखाई देता है। रिपोर्ट्स बताती हैं कि वहां ओटीपी दर कई बार 60 फीसदी से भी कम चला जाता है, यानी कि फ्लाइटस सिर्फ लेट नहीं होती बल्कि बड़ी संख्या में कैंसिल भी हो रही होती हैं। ब्रिटेन के Heathrow, Gatwick, Manchester जैसे प्रमुख एयरपोर्टों पर भी हाल खराब है, ओटीपी सिर्फ 60 से 75 फीसदी तक दर्ज किया जाता है।
अब ऊपर दी गई ये सारी जानकारी यही निष्कर्ष देती है- कारण कई हो सकते हैं, लेकिन इंसान सड़क, रेल और हवाई यात्रा तीनों में ही खराब मैनेजमेंट से जूझ रहा है। उसका काफी समय बर्बाद हो रहा है।
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