पंकज रोहिला

देशभर की ट्रेन जल्द लोको कैब ऑडियो वीडियो रिकार्डिंग सिस्टम (एलसीवीएआर) से लैस होगी। हवाई जहाज की तर्ज पर रेल मंत्रालय ने ट्रेन में यह तकनीक इस्तेमाल करने की शुरुआत की है। रेल मंत्रालय के मुताबिक अबतक देश की विभिन्न ट्रेन में 32 लोकोमोटिव लगाए जा चुके है। इस समय ऐसी 25 डीजल व 7 इलेक्ट्रिक ट्रेन में उपलब्ध है। जल्द ही 470 लोकोमोटिव ट्रेन में लगाए जाएंगे, इसके लिए मंत्रालय ने प्रक्रिया शुरू कर दी है।

मंत्रालय के मुताबिक हवाई जहाज में प्रयोग किए जाने वाले ब्लैक बॉक्स के जैसा होता है। इसकी गहन जांच पड़ताल के लिए मंत्रालय के पास विस्तृत डाटा उपलब्ध हो सकेगा और रेल हादसों की सही जानकारियां मिल सकेगी। इन जानकारियों के आधार पर मंत्रालय पहल कर दुर्घटनाओं को कम करने की तैयारी कर सकेगा। अब तक मंत्रालय के पास ऐसा कोई एडवांस सिस्टम नहीं है। यह अत्यंत ही अत्याधुनिक तकनीक है।

सूत्रों के मुताबिक ब्लैक बॉक्स 11 हजार सेल्सियस के तापमान को एक घंटे तक सहन कर सकता है। जबकि 260 डिग्री सेल्सियस के तापमान को 10 घंटे तक सहन करने की क्षमता रखता है। देश में 1953-54 में हवाई हादसों की संख्या बढ़ने के बाद इस व्यवस्था को लागू किया गया था। इसकी मदद से किसी भी प्रकार का हादसा होने की स्थिति में सभी जानकारियां रिकार्ड हो जाती है। इसका रिकार्डिंग के प्रयोग से भविष्य के हादसों को कम करने में मदद मिलेगी। विमान में प्रयोग होने वाले ब्लैक बॉक्स में विमान की दिशा, ऊंचाई, ईंधन, गति, हलचल व केबिन के तापमान समेत 88 चीजों की जानकारी रहती है और इसमें करीब 25 घंटे तक की रिकार्डिंग की जा सकती है।

क्या होता है ब्लैक बॉक्स
‘ब्लैक बॉक्स’ वायुयान में उड़ाने के दौरान विमान से जुड़ी सभी प्रकार की गतिविधियों को रिकार्ड करने वाला उपकरण होता है। इस उपकरण को फ्लाइट रिकॉर्डर भी कहा जाता है। आमतौर पर इस बॉक्स को सुरक्षा की दृष्टि से विमान के पिछले हिस्से में रखा जाता है। यह बॉक्स टाइटेनियम से बना होता है और टाइटेनियम के बॉक्स में ही बंद रहता है। ऊंचाई से जमीन पर गिरने या समुद्री पानी में गिरने की स्थिति में इसको कम से कम नुकसान होता है।

कैसे काम करता है ब्लैक बॉक्स
यह बॉक्स जिस भी जगह पर दुर्घटनाग्रस्त होता है। उस जगह पर प्रत्येक सेकेंड पर एक बीप की आवाज करता है। यह आवाज लगातार 30 दिन तक होती है। इस आवाज की वजह से खोजी दस्ता आसानी से इस बॉक्स को तलाश कर सकता है। जानकार बताते हैं कि अगर यह समुद्र में 14 हजार फीट गहरे तक भी चला जाता है तो वहां से संकेत भेजता रहता है।