Governor TN Ravi And Supreme Court Verdict: सुप्रीम कोर्ट से तमिलनाडु के राज्यपाल टीएन रवि को बड़ा झटका लगा। सर्वोच्च अदालत ने साफ कर दिया कि राज्यपाल चुनी हुई सरकार के फैसलों को नहीं रोक सकते हैं, वे अपने पास फाइलों को पूरे समय के लिए नहीं रख सकते हैं। अब सुप्रीम कोर्ट का एक फैसला अपने साथ कई व्यापक असर लेकर आया है। आइए यहां पर समझने की कोशिश करते हैं कि एक राज्यपाल के पास क्या ताकतें होती हैं, उसका अधिकार क्षेत्र कितना बड़ा होता है और क्या काम वो नहीं कर सकता है।
बिलों की रोकने को लेकर राज्यपाल के पास क्या ताकत?
संविधान का जो अनुच्छेद 163 रहता है, वहां राज्यपाल की ताकतों के बारे में काफी विस्तार से बताया गया है। इसके अलावा आर्टिकल 200 में बिलों का जिक्र हुआ है, बताया गया है कि राज्यपाल उन बिल्स के साथ क्या कर सकते हैं। अब जब भी कोई राज्य सरकार किसी बिल को विधानसभा से पारित कर राज्यपाल के पास भेजती है, गर्वनर के पास तीन ऑप्शन रहते हैं- वे बिल को अपनी मंजूरी दे सकते हैं, वे बिल को मंजूरी नहीं दे सकते हैं, वे बिल को वापस विचार करने के लिए भेज सकते हैं, बिल को राष्ट्रपति के विचार करने के लिए छोड़ सकते हैं।
स्टालिन सरकार को मिली ‘सुप्रीम’ राहत
अब अगर मनी बिल को छोड़कर राज्यपाल किसी भी बिल को वापस राज्य सरकार के पास भेजते हैं, तब राज्यपाल उस बिल को नहीं रोक सकते, उन्हें उसे मानना पड़ेगा। अब अभी तक बड़ी समस्या यह है कि राजभवन से समय रहते बिल वापस ही नहीं आते, कोई ऐसा टाइमफ्रेम सेट नहीं है, यही विवाद की एक वजह भी बन जाता है। इसी बात को लेकर लेकर जा रहा है कि राज्यपाल बिल पर लंबे समय के लिए नहीं बैठ सकते हैं।
सुप्रीम कोर्ट ने ऐसे मामलों में पहले भी कुछ कहा है?
सुप्रीम कोर्ट ने समय-समय पर राज्यपाल की ताकतों को लेकर बहस की है। साल 2016 में अरुणाचल प्रदेश के एक मामले में सुनवाई के दौरान कहा था कि राज्यपाल अनिश्चित काल के लिए किसी बिल पर नहीं बैठ सकते हैं, अगर कोई दिक्कत भी है तो उसे वापस राज्य सरकार को भेजना होगा, अपने सुझाव देने होंगे। इसी तरह जब पंजाब की आम आदमी पार्टी सरकार के साथ जब तत्कालीन राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित के साथ ठनी थी, सुप्रीम कोर्ट ने बोला था कि राज्यपाल किसी भी राज्य के लिए मनोनीत किए जाते हैं। लेकिन इसका मतलब यह नहीं होता कि आप राज्य विधानसभाओं द्वारा कानून बनाने की सामान्य सी प्रक्रिया में भी हस्तक्षेप करने लग जाएं।
बाकी मामलों पर भी क्या कुछ असर पड़ेगा?
तमिलनाडु सरकार का कहना था कि उनकी सरकार द्वारा पारित हो रहे बिलों को मंजूरी नहीं मिल रही थी। ऐसा ही हाल अभी केरल, तेलंगाना में भी देखने को मिल रहा है। केरल की सरकार का आरोप है कि राज्यपाल आरिफ मोहम्मद खान ने तीन बिलों को पिछले दो सालों से मंजूरी नहीं दी है। हाई कोर्ट ने इस मामले में अभी हस्तक्षेप नहीं किया था, ऐसे में केस सुप्रीम कोर्ट जा चुका है। इसी तरह तेलंगाना सरकार का दावा है कि उनके 10 बिल अभी भी पूर्व राज्यपाल तमिलिसाई सुंदरराजन ने अपने पास रखे थे।
वैसे राज्यपाल की ताकत अगर आसान शब्दों में समझनी है तो इस खबर का तुरंत रुख करें