सुप्रीम कोर्ट ने आज (11 मई) को राष्ट्रीय राजधानी में नौकरशाही को कंट्रोल करने के मुद्दे पर दिल्ली सरकार के पक्ष में फैसला सुनाया है। भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली 5-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने कहा कि सार्वजनिक व्यवस्था, पुलिस और भूमि संबंधित मामलों को छोड़कर राष्ट्रीय राजधानी में प्रशासनिक सेवाओं पर दिल्ली सरकार का नियंत्रण है।

सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने जस्टिस अशोक भूषण के आदेश से असहमति जताई हैं जिसमें उन्होंने कहा था कि सेवाएं पूरी तरह से दिल्ली सरकार के दायरे से बाहर हैं। .

सीजेआईडी वाई चंद्रचूड़ ने कहा कि दिल्ली में चुनी हुई उत्तरदायी सरकार है, लेकिन उसके पास अधिकार कम हैं। प्रशासनिक फेरबदल पर किसका नियंत्रण हो, इसे लेकर अरविंद केजरीवाल सरकार और केद्र के बीच विवाद था। अरविंद केजरावील सरकार और एलजी विनय कुमार सक्सेना के बीच लंबे समय से तल्खी की खबरें आती रहती हैं। आज इस विवादास्पद मामले पर सुप्रीम कोर्ट की संविधान पीठ ने अपना फैसला सुनाया है।

कैसे न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ तक पहुंचा मामला?

साल 2019 में इस मामले की सुनवाई जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण की दो जजों की बेंच कर रही थी, लेकिन इस बेंच ने आखिर में बंटा हुआ फैसला सुनाया, यही वजह बनी की इसे तीन जजों की बेंच को रेफर किया गया था। दिल्ली सरकार बनाम उप राज्यपाल के बीच का यह मामला हाईकोर्ट से गुज़र कर सुप्रीम कोर्ट तक पहुंचने में कई स्टेप्स पार कर चुका है।

दो जजों की बेंच की सुनवाई के पूरा होने के बाद भी जब यह मामला नहीं सुलझा तो 6 मई, 2022 को मौजूदा सीजेआई एन वी रमना की अध्यक्षता वाली तीन जजों की बेंच ने इसे एक बड़ी बेंच को भेज दिया था। तीन-न्यायाधीशों की खंडपीठ ने निर्णय लिया था कि प्रशासनिक सेवाओं पर नियंत्रण के सवाल पर गहनता से विचार की जरूरत है और प्राथमिक विवाद संविधान के अनुच्छेद-239 AA (3) की व्याख्या से संबंधित है। यह प्रावधान करता है कि दिल्ली विधानसभा पुलिस, भूमि और लोक व्यवस्था छोड़कर राज्य सूची और समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बना सकती है।

जस्टिस एके सीकरी और जस्टिस अशोक भूषण की बेंच ने अपने फैसले में एलजी की शक्तियों से जुड़े कई मसलों को सुलझाया था, लेकिन सेवाओं पर नियंत्रण के मुद्दे पर बेंच के दो जजों ने अलग-अलग फैसला सुनाया था।

जस्टिस अशोक भूषण ने कहा था कि दिल्ली सरकार का प्रशासनिक सेवाओं पर कोई अधिकार नहीं है। हालांकि जस्टिस एके सीकरी का मानना था कि भारत सरकार के संयुक्त सचिव और उससे ऊपर के सचिवों, एचओडी और अन्य अधिकारियों के ट्रांसफर और पोस्टिंग उपराज्यपाल द्वारा किए जा सकते हैं और फाइल सीधे उन्हें सौंपी जा सकती है। लेकिन DANICS (दिल्ली, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह सिविल सेवा) अधिकारियों सहित अन्य स्तरों के लिए फाइलें मुख्यमंत्री के माध्यम से LG तक पहुंचाई जानी चाहिए।

इस बंटे हुए फैसले के पारित होने के बाद प्रोसेस के मुताबिक मामला मुख्य न्यायधीश डी वाई चंद्रचूड़ के सामने लिस्ट किया गया ताकि इसे एक बड़ी बेंच द्वारा नए सिरे से सुना जा सके।

अनुच्छेद 239AA(3)(a) क्या है?

अनुच्छेद 239AA(3) को 69वें संशोधन अधिनियम, 1991 द्वारा संविधान में डाला गया था। इसने एस बालकृष्णन समिति की सिफारिशों के बाद दिल्ली को विशेष दर्जा प्रदान किया था जिसे 1987 में दिल्ली की राज्य की मांगों को देखने के लिए स्थापित किया गया था। इस प्रावधान के अनुसार, राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र दिल्ली में एक प्रशासक और एक विधान सभा होगी। यह प्रावधान करता है कि दिल्ली विधानसभा पुलिस, भूमि और लोक व्यवस्था छोड़कर राज्य सूची और समवर्ती सूची के विषयों पर कानून बना सकती है।