कोरोना काल में सोशल मीडिया पर चल रही एक्टिविटी सरकार की आंखों में चुभने लगी है। जिस तरह से लोग मोदी सरकार के खिलाफ शब्दबाण चला रहे हैं, वो सरकार को अखरने लगा है। कयास लगाए जा रहे हैं कि मोदी सरकार सोशल मीडिया पर नकेल कसने के लिए कोई बड़ा कदम उठा सकती है। इस पर मंथन लगातार चल रहा है।

सरकार और सोशल मीडिया कंपनियों के बीच रस्साकसी काफी समय से चल रही थी। कुछ अर्सा पहले मोदी कैबिनेट ने सोशल मीडिया कानून के जरिए कंपनियों के प्लेटफार्म पर चलने वाले कंटेट को सीमित करने की दिशा में कदम उठाया था, लेकिन संबंधों में तल्खी उस समय ज्यादा दिखी जब कोरोना काल में लोग सरकार के खिलाफ मुखऱ होने लगे। सोशळ मीडिया कंपनियों ने सरकार के निर्देशों को अनसुना कर कंटेंट को फिल्टर करने से मना कर दिया। लेकिन जब बीजेपी नेता संबित पात्रा की पोस्ट को ट्विटर ने फर्जी करार दिया तो सरकार का पारा सातवें आसमान पर चढ़ गया।

उधर, अमेरिका में भी गाइडलाइंस न मानने के लिए सोशल मीडिया कंपनियों पर नकेल कसे जाने की बात उठने लगी हैं। फ्लोरिडा प्रांत ने तो सोमवार को दिखा भी दिया कि सिलिकॉन वैली के बड़े खिलाड़ियों को किस तरह से काबू किया जाता है। सूबे के गवर्नर रॉन डीसेंट्स ने फेसबुक, यूट्यूब और ट्विटर जैसी कंपनियों पर फाइन लगाने का प्रावधान अपने नए आदेश में किया है। राजनीतिक उम्मीदवार पर प्रतिबंध लगाने की स्थिति में ये कानून काम करेगा।

दरअसल, फ्लोरिडा रिपब्लिक पार्टी के गढ़ माना जाता है। सूत्रों का कहना है कि गवर्नर का नया फऱमान फेसबुक और ट्विटर के उस कदम का जवाब है जिसके तहत जनवरी में पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड टम्प को बैन कर दिया गया था। डीसेंट्स ने कहा कि नए बिल के जरिए फ्लोरिडा के लोगों को सिलिकॉन वैली की कंपनियों से सुरक्षा मिलेगी। माना जा रहा है कि कानून को संवैधानिक आधार पर चुनौती मिलेगी।

फ्लोरिडा के कानून के मुताबिक- स्टेट ऑफिस में 14 दिनों से ज्यादा समय तक अपनी सेवाएं देने वाले उम्मीदवार पर बैन गलत करार दिया गया है। ऐसी स्थिति में कंपनी पर 250000 डॉलर रोजाना का जुर्माना लगाया जाएगा। दूसरे ऑफिसों में काम करने वाले लोगों को बैन करने की स्थिति में जुर्माने की रकम अलग से तय की गई है। ये स्टेट ऑफिस के राजनीतिक व्यक्तियों की अपेक्षा कम है।

नेवल अकादमी में साइबर सिक्योरिटी लॉ के प्रोफेसर जेफ के. का कहना है कि फ्लोरिडा के नए कानून को कोर्ट में चुनौती मिलेगी। उनका कहना है कि लगता है कि अब अदालतों की सीमा परखने की शुरुआत हो रही है। ये देखना काफी रोचक होगा कि कोर्ट सोशळ मीडिया कंपनियों के खिलाफ किस तरह का रवैया दिखाती हैं।