नेपाल में करीब 12 साल पहले राजशाही को खत्म कर दिया गया था। अब एक बार फिर इसे वापस लाने की मांग की जाने लगी है। नेपाल में इस हफ्ते पोखरा और बुटवाल समेत विभिन्न शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों में विरोध प्रदर्शन कर प्रजातंत्र को खत्म करने की मांग की गई है। प्रदर्शनकारियों की मांग है कि दुनिया की आखिरी हिंदू राजशाही को वापस लाया जाए। आखिर ऐसा क्या हुआ कि महज 12 साल में ही नेपाल सदियों पुरानी परंपरा की ओर लौटना चाहता है।

ढाई साल पहले दो नेपाली नौजवानों को बुटवाल में पुराने राष्ट्रगान को गाने की वजह से पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया था। पुलिस ने उन पर अभद्रता के प्रदर्शन का आरोप लगाया था। इन दोनों नौजवानों की गिरफ्तारी के बाद काठमांडू में उनके साथियों ने देश भर में पुराने राष्ट्रगान को गाने का अभियान शुरू करने की घोषणा की।

ये नौजवान नेपाल में फिर से राजतंत्र और हिंदू राज की स्थापना की मांग कर रहे थे। नौजवानों के इस समूह ने राजा ज्ञानेंद्र और महारानी कोमल की तस्वीर वाली टी-शर्ट भी लोगों के बीच में बांटनी शुरू की। टी-शर्ट बांटने के दौरान वे पुराने राष्ट्रगान को भी गाते थे। युवकों के इस समूह का नाम है ‘वीर गोरखाली अभियान।’ नेपाल में कमल थापा के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय प्रजातांत्रिक पार्टी से असंतुष्ट नौजवानों ने इस अभियान की शुरुआत की थी।

टी-शर्ट बांटने और राष्ट्रगान गाने से आगे बढ़ते हुए राजतंत्र की मांग करने वाला यह अभियान अब विरोध-प्रदर्शनों की शक्ल लेने लगा है। देश भर में अब इसे लेकर आंदोलन खड़े होने लगे हैं। कई गैर मान्यता प्राप्त पार्टियां इस आंदोलन में बढ़-चढ़ कर हिस्सा ले रही हैं। खास तौर पर बड़े शहरों में नौजवान मोटर बाइक पर रैलियां निकाल रहे हैं और ‘राजा ही आकर देश को बचाएंगे’ का नारा दे रहे हैं। लोग अपनी इन गतिविधियों को सोशल मीडिया पर बड़े पैमाने पर प्रचारित-प्रसारित करने में भी लगे हुए हैं।

आंदोलन की शक्ल लेते इन विरोध प्रदर्शनों को लेकर लोकतंत्र समर्थकों का कहना है कि यह मौजूदा सरकार के प्रति लोगों के अंसतोष की वजह से हैं। इसकी वजह से राजतंत्र की हिमायत करने वाले लोगों को मौका मिल गया है।

लोगों में इस बात को लेकर आक्रोश है कि पार्टियां एक-दूसरे के खिलाफ लड़कर सत्ता हासिल करने और अंदरूनी कलह सुलझाने में ही व्यस्त रहती हैं। केपी शर्मा ओली की सरकार के खिलाफ लोगों में गुस्सा बढ़ता जा रहा है। जवाबदेही की कमी और भ्रष्टाचार से अब लोग त्रस्त आ चुके हैं। लोगों का मानना है कि किसी भी राजा के समय से बदतर हालात इस वक्त सरकार के शासन में हैं।

दरअसल, राष्ट्रीय प्रजातंत्र पार्टी शुरू से ही प्रजातंत्र के विरोध में प्रदर्शनों का नेतृत्व करती आ रही है। इस बार हालात अलग हैं। पहले जहां इस आंदोलन के कुछ ही समर्थक होते थे, अब युवा इसमें बड़ी संख्या में कूद पड़े हैं। नेपाली कांग्रेस और नेपाल कम्युनिस्ट पार्टी के नेता ऐसे प्रदर्शनों को खारिज करते आए हैं और इनके पीछे साजिश को जिम्मेदार बताते रहे हैं।

नेपाल की मीडिया के मुताबिक लोग राजशाही को बहुत ज्यादा पसंद नहीं करते हैं, लेकिन फिर भी लोग नए अभियान का समर्थन कर रहे हैं। दरअसल, साल 2008 के बाद सरकारें लोगों की उम्मीदों पर खरी नहीं उतर सकीं। जो बुराइयां पहले थीं, वे अभी बरकरार हैं। नेपाल अब भी सबसे भ्रष्ट देशों में से एक है और यहां भ्रष्टाचारियों को सजा देने का प्रभावशाली तरीका नहीं है। राजनीतिक दल संविधान के मुताबिक केंद्रीय लोकतांत्रिक सरकार चलाने में नाकामयाब रहे हैं।