राधिका नागरथ

सब कुछ जानना इस बुद्धि से संभव नहीं है और सब कुछ जान कर कुछ होगा भी नहीं। मान लीजिए मैंने नहीं जाना की कार का इंजन कैसे बनता है या बालूशाही कैसे बनाई जाती है या फिर और कोई साधारण सी बात की मेरे मन में सुबह से एक मिनट में कौन-कौन से और कितने विचार आए, यह नहीं भी जाना, तो इससे कोई फर्क नहीं पड़ता।

किंतु यह अवश्य जानना जरूरी है कि मैं किस लिए पैदा हुआ हूं। मनुष्य के रूप में, और मैं किस तरह अपने इस जीवन को बिना दुखी हुए बीता सकता हूं। संत कबीर ने ठीक ही लिखा है -जो यह एक न जानिया, तौ बहु जाने का होय।

हमारे आसपास जितना भी दिख रहा है – जड़ और चेतन, विभिन्न प्रकार के पशु पक्षी, तमाम जगत की वस्तुएं, उन सबको न भी जाना जाए तो भी जिंदगी का मकसद अधूरा ना होगा, किंतु खुद को जानना अहम है और मनुष्य को बाकी जीवों से यही अलग करता है कि उसे बुद्धि मिली है, जिसके द्वारा वह खुद को जान सके ,वरना आहार, निद्रा और मैथुन यह तो हर प्राणी सृष्टि का करता ही है। अगर हमारा भी पूरा जीवन एक के बाद एक इच्छा को पूर्ति में निकल गया तो फिर जानवर और हमारे में कोई फर्क ना रह गया।

वेदांत कहता है कि मेरा असली रूप भी सीमित नहीं है मैं भी असीम हूं। उस असीम को जानने के लिए आधार तो सीमित का ही लेना पड़ता है क्योंकि हमारी बुद्धि ने सिर्फ अभी तक सीमित को ही देखा, समझा और जाना है।

शास्त्र कहते हैं कि ‘यद् पिण्डे तद् ब्रह्माण्डे’ अर्थात यह जो कुछ भी विस्तृत दिख रहा है मेरे आसपास, उसका और मेरा एक ही आधार है। वहीं पांच तत्व -आकाश, धरती, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी इन्हीं पांच तत्वों से सारा जगत और मेरा शरीर बना है और इन्हीं पांच तत्व में विलीन होता है।

जब इस बात का अहसास हो जाए और विज्ञान की कसौटी पर बात समझ आ जाए कि यह पूरा जगत जिसमें पेड़, पौधे, पशु-पक्षी और यहां तक कि मानव भी 72 फीसद पानी, 12 फीसद धरती, 6, फीसद वायु, 4 फीसद अग्नि और 6 फीसद आकाश है।

फिर खुद को इंसान कुछ-कुछ पहचानने लगता है और यह भी जानने लगता है कि इन्हीं तत्वों से हर चीज बनी है तो फिर मेरा और सबका आधार एक है, तो किसी से नफरत या किसी से ईर्ष्या कैसे होगी। जो अच्छा- बुरा, गुण- दोष दिखता है, वह तो बाहरी आवरण है, मूलत: तो सब एक ही है तो फिर झगड़ा कैसा। बस इस चीज को हमेशा याद रखते हुए चैन से जीवन जीना है।

शांतिपूर्ण जीवन जीने के लिए तीन प्रकार के शास्त्र बताए गए हैं – धर्मशास्त्र, उपासना शास्त्र और अध्यात्म शास्त्र। धर्मशास्त्र वह नियम बताता जाता है कि क्या अच्छा है क्या बुरा है, अच्छा करने से क्या होगा, बुरा करने से क्या होगा, तो सुखी रहने के लिए अच्छा ही करो।

उपासना शास्त्र उस चैतन्य, जिसके द्वारा यह सब सृष्टि- जड़ और चेतन चल रही है, वर्तमान, भूत और फिर भविष्य में परिणित हुए जा रहा है -उस सत्ता के प्रति आभार व्यक्त करना। अध्यात्म शास्त्र यह बतलाता है कि जो अब तक जाना है, समझा है, उसको रोजमर्रा की जिंदगी में कैसे उतारना है।