गुजरात में एक अनोखा मामला देखने को मिला। पब्लिक सर्विस कमीशन के जरिये एग्रीकल्चर अफसर की नौकरी के लिए आवेदन करने वाले चार कैंडिडेट का रिजल्ट 25 साल बाद हाईकोर्ट ने खोलकर देखा। चार में से दो कैंडिडेट पास निकले। यानि 25 साल पहले अगर फैसला आ जाता तो चार में से दो कैंडिडेट अफसर बन जाते। लेकिन देर से आया फैसला उनके किसी काम का नहीं निकला, क्योंकि वो फिलहाल सरकारी नौकरी में हैं। दूसरा वो अपने रिटायरमेंट के करीब पहुंच चुके हैं। हाईकोर्ट ने अपने फैसले में माना कि समय इतना बीत चुका है कि दोनों को राहत नहीं दी जा सकती।

मामले के मुताबिक चार कैंडिडेट्स ने 1997 में एग्रीकल्चर अफसर बनने के लिए गुजरात पब्लिक सर्विस कमीशन में आवेदन दिया था। उस समय आवेदन करने की अधिकतम आयु सीमा 30 साल थी। कैंडिडेट्स की उम्र 30 के पार थी। कमीशन ने उनके आवेदनों को रिजेक्ट कर दिया। लेकिन चारों हाईकोर्ट चले गए। उनकी दलील थी कि अनुभव को जोड़ने के बाद उनकी आयु सीमा को वैध माना जाए। अदालत के अंतरिम आदेश के बाद उन्हें एग्जाम में बैठने का मौका मिल गया। 1998 में एग्जाम का रिजल्ट आया लेकिन चारों का परिणाम रोक दिया गया।

1999 में पब्लिक सर्विस कमीशन ने तब्दील कर दिए थे नियम

पब्लिक सर्विस कमीशन का कहना था कि 1988 तक District Agricultural Officer Recruitment Rules of 1987 के तहत भरती की जाती थी। उस दौरान आवेदन करने की अधिकतम आयु सीमा 30 साल की थी। लेकिन 1999 में नियम बदले गए थे। उसके बाद आवेदन करने की अधिकतम आयु सीमा 35 साल कर दी गई। सरकार की तरफ से पेश एडवोकेट श्रुति पाठक ने हाईकोर्ट को बताया कि अब इस मामले में कुछ नहीं किया जा सकता है, क्योंकि जो कैंडिडेट पास निकले हैं वो नौकरी में हैं। वो एसोसिएट प्रोफेसर के पद पर तैनात हैं। लिहाजा अब रिजल्ट बेकार है।

जो दो कैंडिडेट पास हुए उनकी उम्र इस वक्त है 57 साल

चारों आवेदकों ने 1997 में एग्जाम के लिए अप्लाई किया था। उनकी डेट ऑफ बर्थ 1965 की थी। लिहाजा आवेदन के समय वो 32 साल के थे। कमीशन ने इसी आधार पर उनके आवेदन को रद कर दिया था। फिलहाल जो दो कैंडिडेट पास हुए उनकी उम्र इस वक्त 57 साल है। जबकि स्टेट पब्लिक सर्विस कमीशन के तहत रिटायरमेंट की उम्र 58 साल की है। लिहाजा वो एक साल में ही रिटायर होने वाले हैं।

हाईकोर्ट बोला- समय इतना बीत गया कि अब राहत नहीं दी जा सकती

गुजरात हाईकोर्ट के एक्टिंग चीफ एजे देसाई और जस्टिस बिरेन वैश्नव ने अपने फैसले में कहा कि कैंडिडेट्स के मौजूदा रोजगार और उम्र को देखते हुए उन्हें नहीं लगता कि District Agricultural Officer Recruitment Rules of 1987 की तह में जाने की कोई जरूरत अब रह भी गई है। ये बेवजह की कसरत होगी।