उत्तराखंड राज्य के निर्माण के लिए सबसे पहले आवाज उठाने वाले क्षेत्रीय दल उत्तराखंड क्रांति दल को राज्य की जनता ने पूरी तरह से खारिज कर दिया है और यह दल अपनी राजनीतिक जमीन खोता जा रहा है। एक जमाने में उत्तराखंड के पर्वतीय क्षेत्रों में इसकी तूती बोलती थी। उत्तराखंड राज्य निर्माण के लिए 1994 में उत्तराखंड क्रांति दल ने जबरदस्त आंदोलन छेड़ा था। इसकी वजह से उत्तराखंड राज्य 9 नवंबर 2000 में अस्तित्व में आया परंतु इसके बनने के बाद जनता ने इस राजनीतिक दल को 2002 के पहले विधानसभा चुनाव में आईना दिखा दिया था।

राज्य की 70 विधानसभा सीटों में से उत्तराखंड क्रांति दल केवल 4 सीटें ही मिलीं। इसके बाद इस क्षेत्रीय दल का राजनीति ग्राफ लगातार गिरता गया। 2007 के विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड क्रांति दल के विधायकों की तादाद विधानसभा में तीन रह गई। 2012 के विधानसभा चुनाव में इस दल का केवल एक विधायक प्रीतम पंवार यमुनोत्री विधानसभा सीट से जीत कर सदन में पहुंचे। बाद में प्रीतम पंवार ने भी उत्तराखंड क्रांति दल से इस्तीफा देकर कांग्रेस की सरकार में मंत्री पद ले लिया। 2017 के विधानसभा चुनाव में तो उसका एक भी विधायक विधानसभा में चुनकर नहीं आया। इस क्षेत्रीय दल का सूपड़ा साफ हो गया। आज यह क्षेत्रीय दल अपने राजनीतिक अस्तित्व के लिए संघर्ष कर रहा है

अपने 42 साल के राजनीतिक इतिहास में उत्तराखंड क्रांति दल के लिए यह वक्त सबसे बुरा है। इस दल का दो बार बंटवारा हुआ। इस दल के संस्थापक दिवाकर भट्ट और काशी सिंह ऐरी की राजनीतिक महत्त्वाकांक्षा ने इसे आज जनाधारहीन बना दिया है। दोनों नेताओं ने एक दूसरे को पार्टी से निलंबित कर दिया था। पार्टी दो भागों में बंट गई थी। 2007 के विधानसभा चुनाव में पार्टी के सबसे ताकतवर नेता दिवाकर भट्ट मंत्री पद के लालच में भाजपा की भुवन चंद्र खंडूरी सरकार में मंत्री बन बैठे थे। उनके इस रवैये से काशी सिंह ऐरी ने उन्हें पार्टी से निष्कासित कर दिया था। इस वजह से 2017 के विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड क्रांति दल एक भी सीट नहीं जीत पाया।

2002 के विधानसभा चुनाव में उत्तराखंड क्रांति दल को को 5.49 फीसद वोट मिले थे। 2007 के चुनाव में इस क्षेत्रीय दल का जनाधार और अधिक घट गया। क्षेत्रीय दल को केवल 3.7 फीसद ही वोट पड़े। 2012 के विधानसभा चुनाव में इस दल का जनाधार गिरकर 1.93 फीसद ही रह गया। 2017 विधानसभा चुनाव में पार्टी का एक भी विधायक नहीं जीत सका और जनाधार बुरी तरह खिसक कर मात्र 0.7 फीसद ही रह गया। दल के लगातार सिकुड़ते जनाधार के लिए इसके नेता भाजपा और कांग्रेस दोष देते हैं कि इन दोनों राष्ट्रीय राजनीतिक दलों ने एक रणनीति के तहत क्षेत्रीय दल का अस्तित्व खत्म करने की सुनियोजित योजना बनाई। राजनीतिक विश्लेषक अवनीत कुमार घिल्डियाल का कहना है कि उत्तराखंड क्रांति दल अपनी गिरती हुई राजनीतिक साख और जनाधार के लिए खुद दोषी है। इस दल के नेताओं ने अपनी राजनीति में आकांक्षा के लिए पार्टी की बलि चढ़ा दी।

उत्तराखंड क्रांति दल का गठन

उत्तराखंड क्रांति दल की स्थापना 26 जुलाई 1969 में हुई थी। इसका उद्देश्य पर्वतीय राज्य बनाना था। तब उत्तराखंड उत्तर प्रदेश का अंग था। इस क्षेत्रीय राजनीतिक दल की मांग थी कि उत्तर प्रदेश के पर्वतीय क्षेत्र उत्तराखंड को एक अलग राज्य के रूप में मान्यता दी जाए जिसके लिए क्षेत्रीय दल ने जबरदस्त जन आंदोलन चलाया।

उत्तराखंड क्रांति दल 70 विधानसभा सीटों पर लड़ेगा चुनाव

उत्तराखंड क्रांति दल के केंद्रीय अध्यक्ष काशी सिंह ऐरी ने कहा कि पार्टी राज्य की 70 विधानसभा सीटों पर अपने उम्मीदवार खड़े करेगी। उन्होंने पार्टी का चुनावी घोषणा पत्र भी जारी किया। इस तरह उत्तराखंड क्रांति दल राज्य का पहला ऐसा दल है जिसने सबसे पहले अपना घोषणा पत्र जारी किया है। ऐरी ने कहा कि राजधानी का सवाल उत्तराखंड क्रांति दल के लिए सबसे महत्त्वपूर्ण है और वह गैरसैंण को पहाड़ की आत्मा मानता है।

ऐसे में हमारा शुरू से ही मानना है कि गैरसैंण राजधानी एक जगह का नाम नहीं है, क्योंकि यह पहाड़ में विकास के विकेंद्रीकरण का दर्शन भी है। गैरसैंण को उत्तराखंड की स्थायी राजधानी बनाने राज्य के पर्वतीय क्षेत्र की जनता के सपने को कांग्रेस और भाजपा दोनों ने मिलकर चकनाचूर किया है और दोनों दलों ने राज्य की जनता ने छल किया है। उत्तराखंड क्रांति दल गैरसैण के मुद्दे के साथ साथ चुनाव मैदान में शिक्षा और स्वास्थ्य के मुद्दे को भी लेकर जनता के बीच जाएगा।