पठानकोट एयरबेस हमले के लिए जिम्‍मेदार बताए जा रहे आतंकी संगठन जैश ए मोहम्‍मद का इतिहास शायद यह साबित कर सकता है इन हमलों की जांच में पाकिस्‍तान के लिए भारत की मदद करना कैसे आसान होगा और इस दौरान यह तय कर सकता है कि हाल ही में दोनों देशों के बीच शुरु हुई बातचीत का 26/11 हमलों के बाद जैसा हश्र न हो।

साल 2000 के बसंत के दिनों में श्रीनगर के रहने वाले एक 17 साल के स्‍कूली लड़के ने सेना के 15 कॉर्प्स के हैड क्‍वार्टर के गेट पर विस्‍फोटकों से लदी मारुति कार को उड़ा दिया था। यह कश्‍मीर घाटी में पहला आत्‍मघाती बम धमाका था और इसे आतंकवाद में एक नए चरण की तरह माना जाता है। कुछ महीनों बाद क्रिसमस के मौके पर एक बार फिर से 15 कॉर्प्स के गेट पर एक और आत्‍मघाती धमाका हुआ। इस बार 24 साल के एक ब्रिटिश युवक ने विस्‍फोटकों से लदी मारुति को उड़ाया। इसी के साथ जैश ए मोहम्‍मद का आगमन हुआ। जैश ने बाद में इस युवक को अपनी मैगजीन जारब ए मोमीन में भी जगह दी थी। जैश का गठन मौलाना मसूद अजहर ने किया था। मसूद आईसी-814 विमान के यात्रियों की रिहाई के बदले छोड़े गए आतंकियों में से एक था।

जैश की रणनीति लश्‍कर ए तैयबा से अलग थी क्‍योंकि लश्‍कर इस्‍लाम में आत्‍महत्‍या पर कड़ी पाबंदियों के चलते आत्‍मघाती हमलों के बजाय फिदायीन हमलों पर जोर दिया करता था। साथ ही जैश का तालिबान से जुड़ाव था जबकि लश्‍कर का ऐसा मामला नहीं था। 9/11 के हमले के बाद तो जैश ने पाकिस्‍तानी सेना के खिलाफ भी मोर्चा खोल दिया था। जैश के भारत में हमले इतने भयंकर थे कि उनके चलते भारत और पाकिस्‍तान में कई बार भयानक तनाव पैदा हो गया था। 9/11 हमले के बाद श्रीनगर में विधानसभा पर जैश के आत्‍मघाती हमले की पाकिस्‍तान ने भी निंदा की थी और पाक विदेश विभाग ने ऐसा करते हुए आतंकवाद शब्‍द का इस्‍तेमाल भी किया था। इस हमले में 23 स्‍थानीय लोग भी मारे गए थे जिनका सुरक्षा बलों या पुलिस से कोई लेना देना नहीं था और उस समय का यह सबसे बड़ा हमला था। इससे घाटी में काफी विरोध हुआ था और हमले के कुछ ही घंटे बाद जैश ने इसकी जिम्‍मेदारी लेते हुए बताया कि सुसाइड बॉम्‍बर की पहचान उजागर की। यह सुसाइड बॉम्‍बर एक पाकिस्‍तानी वजाहत हुसैन था।

जैश के गुर्गों ने साल 2003 में दो बार पाकिस्‍तानी राष्‍ट्रपति परवेज मुशर्रफ को मारने की कोशिश भी की। 2007 में इस्‍लामाबाद में लाल मस्जिद हमलों में जैश की भूमिका सामने आने के बाद पाक सेना ने सप्‍ताहभर तक आतंकियों के खिलाफ अभियान चलाया था। पाकिस्‍तान में कदम उखड़ने के बाद जैश ने कश्‍मीर में भी जमीन खो दी। 2004 की शुरुआत में भारतीय खुफिया विभाग ने जैश के संगठन में सेंध लगाई और उनकी लोलाब में एक बैठक आयोजित कराकर सबका खात्‍मा कर दिया। इसके बाद जैश ने कई बार कश्‍मीर में कदम जमाने की कोशिश की लेकिन पुलिस और सेना ने इसकी उम्‍मीदों पर पानी फेर दिया। मार्च 2011 में जैश के कश्‍मीर कमांडर सज्‍जाद अफगानी और उसका साथी उमर बिलाल डल झील के किनारे मारे गए। इसके चार महीने बाद भारतीय इंटेलीजेंस ने एक बार फिर सेंध लगाते हुए लोलाब और सोपोर में लश्‍कर के सभी कमांडर्स समेत जैश के एक कमांडर को मार गिराया। अफगानी के उत्‍तराधिकारी कारी यासिर को सुरक्षा बलों ने जुलाई 2013 में लोलाब में मार गिराया। यासिर के मारे जाने के बाद आदिल पठान ने उसकी जगह ली।

पठान अपने साथी अब्‍दुल रहमान उर्फ छोटा बर्मी के साथ त्राल में अक्‍टूबर 2015 में मारा गया। पठान जैश के पाकिस्‍तान ऑपरेशंस के मुखिया मुफ्ती असगर का भाई और 2001 संसद हमले के मास्‍टरमाइंड गाजी बाबा का साथी था। गाजी बाबा के 2003 में मारे जाने के बाद वह पाकिस्‍तान लौट गया था लेकिन 2012 में वह वापस लौट आया। जैश ने अलग से कश्‍मीर ग्रुप बनाने का प्रयास भी किया लेकिन अल्‍ताफ बाबा के मारे जाने के कारण ऐसा नहीं हो पाया। अल्‍ताफ 2013 में पुलवामा में मारा गया था। पुलिस सूत्रों का कहना है कि वर्तमान में कश्‍मीर में जैश के केवल पांच आतंकी सक्रिय हैं और वे सभी कुपवाड़ा में हैं। इन्‍होंने नवंबर 2015 में तंगधार ब्रिगेड हैडक्‍वार्टर पर हमले की जिम्‍मेदारी ली थी लेकिन सेना और पुलिस ने इससे इनकार किया।

कौन है मौलाना मसूद अजहर
मौलाना मसूद अजहर का जन्‍म बहावलपुर में 10 जुलाई 1968 को एक सरकारी अध्‍यापक के घर में हुआ था। अजहर के छह बहनें और पांच भाई और थे। उसका परिवार डेयरी और पॉल्‍ट्री फार्म भी चलाता था। अजहर ने अपनी किताब ‘ जेहाद के गुण में’ लिखा है कि उसके पिता अल्‍लाह बख्‍श शबीर का देवबंदी की ओर झुकाव था। अजहर के पिता ने उसका कराची के बिनोरी मदरसे में दाखिला कराया जहां पर पढ़ने के बाद वह अध्‍यापक बन गया। हरकत उल मुजाहिदीन के संपर्क में आने के बाद अजहर जेहाद प्रशिक्षण शिविर में हिस्‍सा लेने के लिए अफगानिस्‍तान चला गया। बताया जाता है कि अजहर कमजोर था और इसके चलते 40 दिन तक चलने वाली सैन्‍य प्रशिक्षण को पास नहीं कर पाया लेकिन उसने सोवियत संघ के खिलाफ लड़ाई में भाग लिया और वहां घायल हो गया। इसके बाद हरकत ने उसे अपने मोटिवेशन का उसे मुखिया बना दिया। यहां पर वह पाकिस्‍तान के जमियत उल उलेमा इस्‍लाम के सरगना मौलाना फजल उर रहमान के संपर्क में आया। जमियत उल उलेमा इस्‍लाम के चलते ही तालिबान का जन्‍म हुआ। अजहर हरकत का महासचिव बन गया। इस दौरान उसने जांबिया, अबू धाबी, सउदी अरब और ब्रिटेन की यात्राएं की।

जनवरी 1994 में अजहर वली एडम इसा के नाम से ढाका से नई दिल्‍ली आया। यहां से वह देवबंद गया और फिर श्रीनगर चला गया। 10 फरवरी को उसे और हरकत के कमांडर सज्‍जाद अफगानी को सुरक्षा बलों ने पकड़ लिया। इसके बाद हरकत ने दोनों को छुड़ाने के कई प्रयास किए। आईसी-814 अपहरण के बाद अजहर को उमर शेख और मुश्‍ताक अहमद जरगार के साथ छोड़ा गया। विमान अपहरण के दौरान अजहर के तालिबान से रिश्‍ते मजबूत हुए। रिहा होने के बाद तालिबान कंधार कॉर्प्‍स कमांडर मौलवी मोहम्‍मद अख्‍तर उस्‍मानी ने उसका स्‍वागत किया। अजहर ने हरकत के विश्‍वस्‍त साथियों केसाथ मिलकर जैश का गठन किया। 11 सितम्‍बर 2001 के हमलों के बाद कश्‍मीरी उग्रवाद का पूरा चेहरा बदल गया। जैश ने कश्‍मीर में पाकिस्‍तान के हितों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया।

श्रीनगर विधानसभा पर हमले को पाकिस्‍तान के तालिबान के खिलाफ लिए गए यू टर्न के विरोध के रूप में माना जाता है। संसद हमले के बाद भारत ने पाक से टॉप 20 आतंकियों को मांगा जिसमें अजहर टॉप पर था। पाकिस्‍तान ने उसे गिरफ्तार किया लेकिन 2002 में उसे रिहा कर दिया लेकिन उसे अपनी गतिविधियों पर रोक लगाने को कह दिया। दिसंबर 2003 में मुशर्रफ को निशाना बनाकर किए गए हमले के बाद जैश कश्‍मीर से गायब हो गया। इन सालों में अजहर को अपने घर से निकलने की अनुमति नहीं दी गई। आखिर क्‍यों जैश को वापस लौटने दिया गया। क्‍या ये हमले भारत पाकिस्‍तान के बीच तनाव बढ़ाने को गढ़े गए। इन सवालों के जवाब अभी सामने आने बाकी हैं।

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