Jallianwala Bagh Massacre: हाल में आई एक किताब में कहा गया है कि अनुदार ब्रिटिश अखबार ‘मॉर्निंग पोस्ट’ ने जलियांवाला बाग नरसंहार को अंजाम देने वाले जनरल रेजीनल्ड डायर की मदद के लिए 26 हजार पौंड जुटाए थे। ‘जलियांवाला बाग’ नाम की किताब के अनुसार इसकी शुरुआत जुलाई 1920 में ब्रिटिश शासन द्वारा डायर को उसके पद से हटाए जाने के चंद दिन बाद ‘द मैन हू सेव्ड इंडिया’ नामक शीर्षक वाले लेख से हुई। इस आलेख के लेखक किम वागनेर के अनुसार डायर की मदद के लिए समूचे ब्रिटिश साम्राज्य के लोगों और कई तबकों की ओर से धनराशि मिली थी। रुडयार्ड किपलिंग ने 10 पाउंड की मदद की थी। किताब पेंगुइन विकिंग द्वारा प्रकाशित की गई है।

वहीं, ब्रिटेन में एक संग्रहालय ने अमृतसर के ‘विभाजन संग्रहालय’ के साथ मिलकर जलियांवाला बाग जनसंहार पर एक प्रदर्शनी शुरू की है। ब्रिटिश औपनिवेशक काल में हुए इस जनसंहार के 100 साल पूरे होने के मौके पर प्रदर्शनी शुरू की गई है।
मैनचेस्टर संग्रहालय ने ‘जलियांवाला बाग 1919 : पंजाब अंडर सीज’ नाम से प्रदर्शनी शुरू की है। इस प्रदर्शनी में 13 अप्रैल 1919 को हुए जलियांवाला बाग जनसंहार से जुड़ी कहानियों को प्रर्दिशत किया जा रहा है। यह कहानियां जनसंहार पीड़ितों के वंशजों और समुदायों के साथ मिलकर किए गए काम पर आधारित हैं।

मैनचेस्टर संग्रहालय ने एक बयान में कहा, ‘‘फिर से घटना, इसके कारणों और परिणामों को याद करते हुए इस प्रदर्शनी में यह तलाशा जा रहा है कि हमें क्या याद है, हम इसे कैसे याद करते हैं और भारत एवं ब्रिटेन में हम क्या भूल चुके हैं।’’ जलियांवाला बाग शताब्दी स्मारक समिति (जेबीसीसीसी) द्वारा इस प्रदर्शनी का समर्थन किया जा रहा है। जेबीसीसीसी में जानेमाने भारतीय और अनिवासी भारतीय सदस्य हैं।

जेबीसीसीसी के प्रमुख संरक्षक मनजीत सिंह जीके ने कहा, ‘‘ब्रिटिश सरकार के लिए उचित अवसर है कि वह भारत से माफी मांगे।’’ जेबीसीसीसी के संरक्षक विक्रमजीत एस साहनी ने कहा, ‘‘उस वक्त युद्ध मंत्री सर विंस्टन र्चिचल और पूर्व प्रधानमंत्री एच एच एसक्विथ ने खुलकर हमले की निंदा की थी, इसे हमारे संपूर्ण इतिहास में सबसे भयावह और बदतरीन बताया था।’’ गौरतलब है कि बड़े पैमाने पर मांग की जा रही है कि ब्रिटिश सरकार जलियांवाला बाग के 100 साल पूरे होने के मौके पर इस जनसंहार के लिए माफी मांगे।

ब्रिटिश प्रधानमंत्री टेरेसा मे ने इस हफ्ते की शुरुआत में हाउस ऑफ कॉमंस में बयान दिया था कि ब्रिटेन इस त्रासदी पर ‘‘गहरा खेद’’ प्रकट करता है। उन्होंने इसे ब्रिटिश भारतीय इतिहास का ‘‘शर्मनाक धब्बा’’ करार दिया था। हालांकि, टेरेसा के बयान की निंदा की गई। विपक्षी लेबर पार्टी के नेता जेरेमी कॉरबिन ने कहा कि टेरेसा को ‘‘पूर्ण और स्पष्ट माफी’’ मांगनी चाहिए।