उच्चतम न्यायालय ने सामाजिक कार्यकर्ता तीस्ता सीतलवाड और उनके पति जावेद आनंद को अहमदाबाद की गुलबर्ग सोसायटी में संग्रहालय के निर्माण के निमित्त एकत्रित कोष के कथित गबन के मामले में आज गिरफ्तारी से और छह दिन के लिये संरक्षण प्रदान कर दिया। गुलबर्ग सोसायटी 2002 के दंगों में अग्निकांड में नष्ट हो गयी थी।

शीर्ष अदालत ने कहा कि वह प्राथमिकी के आधार पर स्वतंत्र रूप से यह जांच करेगी कि क्या यह अग्रिम जमानत देने का मामला बनता है या नहीं जिससे सीतलवाड और उनके पति को वंचित किया गया है।

न्यायमूर्ति एस जे मुखोपाध्याय और न्यायमूर्ति एन वी रमण की खंडपीठ ने स्पष्ट किया, ‘‘हम प्राथमिकी निरस्त नहीं करेंगे।’’

सीतलवाड दंपति की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा, ‘‘हम भी सिर्फ अग्रिम जमानत के मुद्दे पर ही हैं’’ और सारे दस्तावेज पेश करके यह संतुष्ट करने का प्रयास किया जायेगा कि ‘‘यह हिरासत में लेकर पूछताछ का मामला नहीं है।’’

करीब आधे घंटे की सुनवाई के बाद न्यायालय ने इस मामले की सुनवाई 19 फरवरी के लिये स्थगित कर दी और संबंधित पक्षों को गुजरात उच्च न्यायालय का फैसला और अतिरिक्त दस्तावेज पेश करने का निर्देश दिया। इस दौरान अतिरिक्त सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने जमानत याचिका का विरोध किया।

न्यायालय ने कहा कि इस दौरान कल दिया गया अंतरिम संरक्षण का आदेश प्रभावी रहेगा। न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘हम मुख्य रूप से प्राथमिकी में लगाये गये आरोपों पर गौर करेंगे। यह स्पष्ट रहना चाहिए कि हम इस मामले को किसी भी सामान्य व्यक्ति के प्रकरण की तरह ही देखेंगे।’’

शीर्ष अदालत गुजरात उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ सीतलवाड दंपति की अपील पर सुनवाई कर रहा था। उच्च न्यायालय ने कल इस दंपति की अग्रिम जमानत याचिका यह कहते हुये खारिज कर दी थी कि वे जांच में सहयोग नहीं कर रहे हैं।

उच्च न्यायालय ने यह टिप्पणी भी की थी कि सीतलवाड जांच में सहयोग नहीं कर रही हैं और उन्हें जांच में सहयोग नहीं करने की वजह से अग्रिम जमानत का संरक्षण नहीं दिया जा सकता है।

सीतलवाड और उनके पति के खिलाफ गुजरात पुलिस की अपराध शाखा ने धोखाधड़ी, अमानत में खयानत और आयकर कानून के तहत मामला दर्ज किया है। यह मामला 2002 के सांप्रदायिक दंगों में बर्बाद हुयी गुलबर्ग सोसायटी में ‘म्यूजिम ऑफ रेजिस्टेन्स’ के निर्माण से संबंधित धन के कथित गबन से जुड़ा है।

गोधरा में 28 फरवरी, 2002 को ट्रेन में अग्निकांड की घटना के बाद हथियारबंद दंगाईयों ने गुलबर्ग सोसायटी पर धावा बोला था। इस हमले में कांग्रेस के पूर्व सांसद एहसान जाफरी सहित 69 व्यक्ति मारे गये थे।

सुनवाई के दौरान जब सिब्बल ने उच्च न्यायालय के फैसले के खिलाफ बहस करते हुये राज्य सरकार पर निजी प्रतिशोध लेने का आरोप लगाया तो न्यायाधीशों ने जानना चाहा कि क्या यह वही मामला है जिसमे धर्म के नाम पर निजी कार्यो में करोड़ों रुपए का इस्तेमाल कर लिया गया।

न्यायाधीशों ने सिब्बल को टोकते हुये कहा कि चूंकि वह फैसले की प्रति उपलब्ध हुये बगैर ही बहस कर रहे हैं, इसलिये हम यह विचार कर रहे हैं कि क्या यह अग्रिम जमानत का मामला है या नहीं।

इस पर सिब्बल ने कहा कि सीतलवाड और उनके पति के पास न्यायालय की शरण में आने के अलावा कोई चारा ही नहीं बचा है क्योंकि राज्य सरकार उन्हें गिरफ्तार करने पर तुली हुयी है। उन्होंने कहा, ‘‘देश में हम कुछ ही लोग हैं जिनके पास शासन के खिलाफ लड़ने का साहस है।’’

इस पर न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘हम राजनीतिक पहलू पर नहीं जा रहे हैं। हम इसे किसी भी अन्य साधारण नागरिक सरीखा मामला ही मान रहे हैं।’’

प्राथमिकी में बैंक खातों और दूसरे बिन्दुओं का जिक्र करते हुये न्यायाधीशों ने कहा, ‘‘यह प्राथमिकी रद्द करने का मामला नहीं है।